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झाबुआ उपचुनाव से पहले टिकट को लेकर गुटबाजी, भूरिया और मेडा आमने -सामने

झाबुआ उपचुनाव से पहले ही कांग्रेस में टिकट को लेकर चल रही गुटबाजी कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ा कर सकती है और इस गुटबाजी का फायदा भाजपा को मिल सकता है.

टिकट दावेदारी को लेकर भूरिया और मेडा आमने-सामने
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Published : Sep 22, 2019, 6:07 PM IST

झाबुआ। मध्यप्रदेश कांग्रेस में चल रही गुटबाजी और अंतर्कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. झाबुआ उपचुनाव से पहले ही कांग्रेस में टिकट को लेकर गुटबाजी शुरू हो गई है. टिकट की दावेदारी को लेकर विवाद चल रहा है. जिनमें से एक गुट कांतिलाल भूरिया को समर्थन कर रहा है तो वहीं दूसरा गुट पूर्व विधायक जेवियर मेडा को समर्थन कर रहा है. ऐसे में उपचुनाव से पहले ही कांग्रेस के दोनों दावेदार आमने-सामने नजर आ रहे हैं.

झाबुआ उपचुनाव से पहले कांग्रेस दो फाड़

दरअसल, बीजेपी के गुमान सिंह डामोर ने सांसद बनने के बाद विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद से ये सीट खाली हो गई थी. वहीं झाबुआ उपचुनाव की तारीख के ऐलान के बाद से कांग्रेस में टिकट की दावेदारी के लिए विवाद बढ़ रहा है. ऐसे में कांग्रेस विधानसभा में अपनी सीटों की संख्या 114 से बढ़ाकर 115 करना चाहती है तो वहीं बीजेपी 108 सीटों से 109 सीट लाकर सरकार को अस्थिर कर करने के मुड में दिखाई दे रही है.

भूरिया और मेड़ा की इस जंग में कौन जीतेगा और इसका चुनाव पर क्या असर पडेगा ये तो 24 अक्टूबर का साफ हो जायेगा. हालांकि भूरिया और मेडा के विवाद पर कांग्रेस नेता कुछ भी कहने से बच रहे है. भले ही भोपाल के नेता इसे सामान्य मानते हों मगर धरातल पर यही विवाद हार और जीत का सबब बन सकता है.

झाबुआ। मध्यप्रदेश कांग्रेस में चल रही गुटबाजी और अंतर्कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. झाबुआ उपचुनाव से पहले ही कांग्रेस में टिकट को लेकर गुटबाजी शुरू हो गई है. टिकट की दावेदारी को लेकर विवाद चल रहा है. जिनमें से एक गुट कांतिलाल भूरिया को समर्थन कर रहा है तो वहीं दूसरा गुट पूर्व विधायक जेवियर मेडा को समर्थन कर रहा है. ऐसे में उपचुनाव से पहले ही कांग्रेस के दोनों दावेदार आमने-सामने नजर आ रहे हैं.

झाबुआ उपचुनाव से पहले कांग्रेस दो फाड़

दरअसल, बीजेपी के गुमान सिंह डामोर ने सांसद बनने के बाद विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद से ये सीट खाली हो गई थी. वहीं झाबुआ उपचुनाव की तारीख के ऐलान के बाद से कांग्रेस में टिकट की दावेदारी के लिए विवाद बढ़ रहा है. ऐसे में कांग्रेस विधानसभा में अपनी सीटों की संख्या 114 से बढ़ाकर 115 करना चाहती है तो वहीं बीजेपी 108 सीटों से 109 सीट लाकर सरकार को अस्थिर कर करने के मुड में दिखाई दे रही है.

भूरिया और मेड़ा की इस जंग में कौन जीतेगा और इसका चुनाव पर क्या असर पडेगा ये तो 24 अक्टूबर का साफ हो जायेगा. हालांकि भूरिया और मेडा के विवाद पर कांग्रेस नेता कुछ भी कहने से बच रहे है. भले ही भोपाल के नेता इसे सामान्य मानते हों मगर धरातल पर यही विवाद हार और जीत का सबब बन सकता है.

Intro:झाबुआ: 1957 के बाद से मध्यप्रदेष में झाबुआ विधानसभा के 14 बार विधानसभा के चुनाव अब तक हो चुके हैं। इन चुनावों में 10 बार कांग्रेस तो 3 बार बीजेपी और 1 बार सोसिलिस्ट पार्टी ने जीत दर्ज कराई थी। आदिवासी बहुल यह सीट पष्चिम प्रदेष के अंतिम छौर पर गुजरात राज्य से सटी हुई है। इस सीट पर आदिवासीयों ने बीते 45 सालों तक कांग्रेस का साथ दिया किंतु कांग्रेस फिर भी इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार नहीं रख पाई। पहली बार इस सीट पर 2003 में उमा भारती की भगवा लहर ने कांग्रेस के इस गढ़ का पस्त कर दिया मगर भाजपा यहां अपना जनाधार ठीक से नहीं जमा पाई जिसके चलते अगले ही चुनाव याने 2008 में यह सीट फिर से कांग्रेस के खाते में जेवियर मेड़ा के रूप में चली गई। इस दौर में कांग्रेस में विरोध और विद्रोध की राजनीति सुलगने लगी। क्षेत्र में कांतिलाला भूरिया केन्द्र में मंत्री थे लिहाजा रतलाम,झाबुआ आलीराजपुर में भूरिया के बिना कांग्रेस का पत्ता भी नहीं हिलता था। भूरिया ही इन तीनों जिलों के लिए प्रत्याषियों का चयन करते थे।


Body:2013 में कांग्रेस का विद्रोध भूरिया और मेड़ा गुट में दिखाई दिया। 2013 में हुये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से जेवियर मेड़ा को टिकट दी मगर भूरिया मेड़ा के बढ़ते कद से खुष नहीं थे लिहाजा उन्होंने जिला पंचायत की अध्यक्ष और अपनी भतीजी कलावती भूरिया को बागी प्रत्याषी के रूप में यहां खड़ा कर दिया जिससे चुनाव त्रिकोणी हो गया और भाजपा को पहली बार कांग्रेस की फुट से कांग्रेस के किले को ढहाने का मौका मिल गया
जिस शांतिलाल बिलवाल ने पुरा दिया। 2013 की हार जेवियर मेड़ा के राजनैतिक जीवन को समाप्त करने के लिए काफी थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांतिलाल भूरिया ने तमाम विरोधों के बाद भी अपने बेटे डाॅ. विक्रांत भूरिया को झाबुआ सीट से मैदान में उतार दिया उनके सामने भाजपा ने नये प्रत्याषी गुमानंिसह डामोर थे। इस चुनाव में जेवियर मेड़ा ने वहीं भूमिका निभाई जो 2013 में कलावती भूरिया ने निभाई थी और जिसका भाजपा के कमजोर प्रत्याषी होने के बाद भी गुमानसिंह डामोर को जीत की रूप में मिला।Conclusion: अब एक बार फिर से भूरिया और मेड़ा में टिकट की दावेदारी को लेकर विवाद बड़ता जा रहा है प्रदेष के मुख्यमंत्री कमलनाथा के साथ-साथ दिल्ली के नेता भी भूरिया को राज्य सभा का लोलीपाप दे रहे है मगर सीनियर भूरिया और जुनियर भूरिया पुरी ताकत से विधानसभा चुनाव में उतरने का मन बना चुके हैं जिससे भाजपाईयों में खुषी है। आने वाले एक सप्ताह में नामाकंन जमा करना है ऐसे में कांग्रेस विधानसभा में अपनी सीटों की संख्या 114 से बढ़कर 115 करने की फिराग में वहीं भाजपा भी 108 से 109 पर आकर सरकार को अस्थिर करने के मुड में दिखाई दे रही है। भूरिया और मेड़ा की इस जंग में कौन जीतेगा और इसका चुनाव पर क्या असर पडेगा यह 24 अक्टुबर का साफ हो जायेगा। भूरिया और मेड़ा के विवाद पर कांग्रेस नेता कुछ भी कहने से बच रहे है , भले ही भोपाली नेता इसे सामान्य मानते हो मगर धरातल पर यही विवाद हार और जीत का सबब बनेगा। इस मामले पर दोनो नेताओं ने फिल्हाल कैमरे के सामने चुप्पी साध रखी है।
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