झाबुआ। खेतों में कड़ी मेहनत करने के बाद भी अन्नदाता को उसकी उपज का यदि सही दाम नहीं मिलता तो किसानों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो जाता है. कोरोना संकटकाल के साथ कहर बनकर बरस रही बारिश के चलते किसानों की फसलें खराब होती जा रही हैं.
झाबुआ जिले में एक माह पूर्व हुई बारिश ने पहले मक्का और सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुंचाया तो रविवार को हुई भारी बारिश ने पेटलावद और खवासा इलाकों में टमाटर और मिर्ची की फसलों को बदहाल कर दिया. इस क्षेत्र में उत्पादित टमाटर की मांग दिल्ली की मंडियों से पाकिस्तान तक रहती है, लेकिन इस बार अतिवृष्टि के चलते क्षेत्र में टमाटर की फसल बर्बाद हो गई है. आलम यह है कि जो किसान टमाटर निर्यात करते थे आज वही किसान 80 प्रति किलो टमाटर खरीद कर खाने को मजबूर है.
झाबुआ जिले के पेटलावद और थांदला विकासखंड के खवासा क्षेत्र में ज्यादातर किसान टमाटर और मिर्ची की पैदावार करते हैं. वैसे तो जिले में मक्का और सोयाबीन प्रमुख फसल मानी जाती है, लेकिन उन्नत खेती के रूप में टमाटर, हरी मिर्च, शिमला मिर्च, लहसुन, प्याज, खीरा ककड़ी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन इस बार यहां सब्जियों की खेती बुरी तरह से प्रभावित हुई है. क्षेत्र के किसानों ने बताया कि उन्होंने अपने खेतों में महंगे बीज लगाकर सोयाबीन की बुवाई की थी लेकिन तेज और ज्यादा बारिश के चलते खेत में फसल खराब हो गई. कई किसान अपने खेत को खाली करने लगे हैं और इन खेतों में दूसरी फसल की तैयारी करने लगे हैं. आलम यह है कि जिन खेतों में सोयाबीन खराब हुई है, उस सोयाबीन के पौधे को मवेशी भी आने को तैयार नहीं.
फिलहाल झाबुआ के रिटेल बाजार में टमाटर के भाव 80 रुपए प्रति किलो चल रहे हैं वहीं मंडियों में भी यह भाव 50 से 60 रुपए प्रति किलो के बीच हैं. बाजार में मिल रहे अच्छे भाव के बावजूद किसानों के पास टमाटर नहीं है. जिस शिमला मिर्च का भाव मंडियों में 40 से 50 रुपए प्रति किलो के भाव मंडियों में बिकती थी, वहीं शिमला मिर्च महज 10 से 12 रुपए में किसानों से खरीदी जा रही है. भारी बारिश के चलते मिर्च की क्वालिटी में भी गिरावट आई है. वहीं हरी मिर्च की बात की जाए तो खेत के खेत खराब हो चुके हैं. टमाटर की खेती से किसानों को अभी उम्मीद है कि आने वाले दिनों में यदि मौसम ठंडा रहा तो इस फसल की री-प्लाटिंग करके नुकसान से बचा जा सकेगा लेकिन ये मौसम पर निर्भर करेगा.
सोयाबीन, मक्का, हरी मिर्च, शिमला मिर्च, खीरा ककड़ी, करेले से लेकर अन्य दूसरी फसलों में हुए नुकसान के बाद किसान की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी है. किसानों का मानना है कि उन्होंने जो लागत अपनी खेती-किसानी में इस बार लगाई है उसे निकलना पाना भी मुश्किल है.