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सूदखोरी का कमजोर कानून ले रहा है सैकड़ों की जान! सूदखोरों में नहीं है कानून का डर - जबलपुर न्यूज

मध्य प्रदेश में साहूकार अधिनियम 1934 के तहत आज भी साहूकारी की जा रही है. आज के समय का कानून नहीं होने के चलते इस कानून का सदुपयोग नहीं हो पा रहा है. विधि विशेषज्ञ इस कानून को कमजोर मानते हुए इसे साहूकारों के पक्ष का बताते हैं, साथ ही सरकार से इसे बदलने की मांग भी कर रहे हैं.

सूदखोरी का कमजोर कानून ले रहा है सैकड़ों की जान
सूदखोरी का कमजोर कानून ले रहा है सैकड़ों की जान
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Published : Sep 22, 2021, 8:56 AM IST

जबलपुर। मध्यप्रदेश में सूदखोरी की वजह से हर साल सैकड़ों लोगों की जान जाती है. लाखों लोग सूदखोरी के जाल में फंसे हुए हैं और सूदखोरी की एक समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है, जो न सरकार के पकड़ में आती है और ना ही सरकार का इस पर कोई नियंत्रण है.

सूदखोरी का कमजोर कानून ले रहा है सैकड़ों की जान

मध्य प्रदेश साहूकार अधिनियम 1934

मध्यप्रदेश में अभी भी 1934 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए साहूकार अधिनियम के तहत की सूदखोरी पर नियंत्रण रखा जा रहा है जाहिर सी बात है यह कानून अंग्रेजों के शासन काल में बनाया गया था. उस समय अंग्रेज आम भारतीय के हित के लिए नहीं सोचते थे. ऐसा ही साहूकार अधिनियम में भी देखने को मिलता है मतलब यदि किसी को सूदखोरी का धंधा चालू करना है तो सामान्य स्थानों पर तहसीलदार बड़े सरल आवेदन पर साहूकारी का लाइसेंस दे देता है और यदि अनुसूचित जाति जनजाति क्षेत्र में कोई साहूकारी करना चाहता है तो यह लाइसेंस एसडीएम देता है.

बेहद कम सजा और जुर्माना

साहूकारी अधिनियम के नियमों के तहत यदि कोई बिना रजिस्ट्रेशन के साहूकारी कर रहा है तो उस पर मात्र ₹200 का जुर्माना होता है. यदि उसने किसी को पैसा वापस लेने के लिए प्रताड़ित किया है तो उसे 3 माह का सामान्य कारावास हो सकता है इससे ज्यादा कोई सजा नहीं है. यह कानून इतने लचर हैं इसका फायदा कोई भी उठा सकता है इसीलिए ज्यादातर लोग साहूकारी का रजिस्ट्रेशन नहीं करवाते हालांकि कानून में इस बात का प्रावधान है कि कोई भी गजटेड ऑफिसर रजिस्टर्ड साहूकार के खाते बही की जांच कर सकता है.

साहूकार के हित में कानून!

इसमें साहूकार के हित में ऐसा लिखा गया है कि यदि अनुसूचित जाति जनजाति के क्षेत्र में कोई शख्स पैसा वापस नहीं कर रहा है तो साहूकार इसकी अपील तहसीलदार या एसडीएम को कर सकता है लेकिन सीधे पैसे नहीं वसूल सकता. सामान्य क्षेत्रों में भी तहसीलदार के माध्यम से पैसे की वसूली की जा सकती है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि लेनदेन नियम के अनुसार किया गया हो.

भारत के प्रस्ताव पर UN की मुहर, 2023 'अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष' घोषित- नरेंद्र सिंह तोमर

कितना ब्याज वसूल सकते हैं साहूकार

कानून के नियम कहते हैं कि यदि किसी ने कुछ गिरवी रखा है तो केवल 6% सालाना ही साहूकार वसूल सकता है और यदि किसी ने कुछ भी गिरवी नहीं रखा है तो यह रकम 12% तक सालाना ब्याज लिया जा सकता है. किसी भी स्थिति में साहूकार दोगुने से ज्यादा ब्याज नहीं वसूल सकता कानून में यह बात स्पष्ट है लेकिन धरातल पर ऐसा नहीं होता और कर्जदार मूल रकम का कई गुने तक पैसा साहूकारों को पटाते हैं और कई बार पूरे जीवन लोग ब्याज ही पटाते रहते हैं और मूलधन कभी खत्म नहीं होता.

सरकार को करना चाहिए कानून में बदलाव

जानकार अधिवक्ता दीपक रघुवंशी का सुझाव है कि इस कानून में बदलाव करने के लिए सरकार को यह नियम बनाना चाहिए कि साहूकारी पूरी तरह से बैंक के जरिए हो. कोई भी साहूकार बिना बैंक अकाउंट के किसी को पैसा ना दे पाए और ना ही ले पाए. इसमें कम से कम ब्याज की दरें और साहूकारों की अघोषित संपत्ति का विवरण सरकार के पास होगा और शोषण पर भी लगाम लग सकेगी.

जबलपुर। मध्यप्रदेश में सूदखोरी की वजह से हर साल सैकड़ों लोगों की जान जाती है. लाखों लोग सूदखोरी के जाल में फंसे हुए हैं और सूदखोरी की एक समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है, जो न सरकार के पकड़ में आती है और ना ही सरकार का इस पर कोई नियंत्रण है.

सूदखोरी का कमजोर कानून ले रहा है सैकड़ों की जान

मध्य प्रदेश साहूकार अधिनियम 1934

मध्यप्रदेश में अभी भी 1934 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए साहूकार अधिनियम के तहत की सूदखोरी पर नियंत्रण रखा जा रहा है जाहिर सी बात है यह कानून अंग्रेजों के शासन काल में बनाया गया था. उस समय अंग्रेज आम भारतीय के हित के लिए नहीं सोचते थे. ऐसा ही साहूकार अधिनियम में भी देखने को मिलता है मतलब यदि किसी को सूदखोरी का धंधा चालू करना है तो सामान्य स्थानों पर तहसीलदार बड़े सरल आवेदन पर साहूकारी का लाइसेंस दे देता है और यदि अनुसूचित जाति जनजाति क्षेत्र में कोई साहूकारी करना चाहता है तो यह लाइसेंस एसडीएम देता है.

बेहद कम सजा और जुर्माना

साहूकारी अधिनियम के नियमों के तहत यदि कोई बिना रजिस्ट्रेशन के साहूकारी कर रहा है तो उस पर मात्र ₹200 का जुर्माना होता है. यदि उसने किसी को पैसा वापस लेने के लिए प्रताड़ित किया है तो उसे 3 माह का सामान्य कारावास हो सकता है इससे ज्यादा कोई सजा नहीं है. यह कानून इतने लचर हैं इसका फायदा कोई भी उठा सकता है इसीलिए ज्यादातर लोग साहूकारी का रजिस्ट्रेशन नहीं करवाते हालांकि कानून में इस बात का प्रावधान है कि कोई भी गजटेड ऑफिसर रजिस्टर्ड साहूकार के खाते बही की जांच कर सकता है.

साहूकार के हित में कानून!

इसमें साहूकार के हित में ऐसा लिखा गया है कि यदि अनुसूचित जाति जनजाति के क्षेत्र में कोई शख्स पैसा वापस नहीं कर रहा है तो साहूकार इसकी अपील तहसीलदार या एसडीएम को कर सकता है लेकिन सीधे पैसे नहीं वसूल सकता. सामान्य क्षेत्रों में भी तहसीलदार के माध्यम से पैसे की वसूली की जा सकती है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि लेनदेन नियम के अनुसार किया गया हो.

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कितना ब्याज वसूल सकते हैं साहूकार

कानून के नियम कहते हैं कि यदि किसी ने कुछ गिरवी रखा है तो केवल 6% सालाना ही साहूकार वसूल सकता है और यदि किसी ने कुछ भी गिरवी नहीं रखा है तो यह रकम 12% तक सालाना ब्याज लिया जा सकता है. किसी भी स्थिति में साहूकार दोगुने से ज्यादा ब्याज नहीं वसूल सकता कानून में यह बात स्पष्ट है लेकिन धरातल पर ऐसा नहीं होता और कर्जदार मूल रकम का कई गुने तक पैसा साहूकारों को पटाते हैं और कई बार पूरे जीवन लोग ब्याज ही पटाते रहते हैं और मूलधन कभी खत्म नहीं होता.

सरकार को करना चाहिए कानून में बदलाव

जानकार अधिवक्ता दीपक रघुवंशी का सुझाव है कि इस कानून में बदलाव करने के लिए सरकार को यह नियम बनाना चाहिए कि साहूकारी पूरी तरह से बैंक के जरिए हो. कोई भी साहूकार बिना बैंक अकाउंट के किसी को पैसा ना दे पाए और ना ही ले पाए. इसमें कम से कम ब्याज की दरें और साहूकारों की अघोषित संपत्ति का विवरण सरकार के पास होगा और शोषण पर भी लगाम लग सकेगी.

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