जबलपुर। कहने को तो इस गांव को सांसद आदर्श ग्राम का तमगा मिला हुआ है. इस क्षेत्र के सांसद राकेश सिंह पिछले एक साल से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं और इन्हीं की पार्टी की सरकार डेढ़ दशक तक सूबे में रही है. फिर भी इन साहब के आदर्श गांव में कुछ भी आदर्श नहीं है. कोहला गांव स्थित विद्यालय में मास्साब की खाली कुर्सी और खाली पड़ी बेंच लचर सरकारी सिस्टम की तस्दीक कर रहे हैं. सरकारी फाइलों में यहां तीन शिक्षक नियुक्त हैं, जिनमें से दो गायब रहते हैं और एक शिक्षक के कंधे पर पूरे स्कूल की जिम्मेदारी रहती है. यही वजह है कि ये स्कूल रिजल्ट के मामले में भी नये आयाम स्थापित किया है क्योंकि यहां 40 में से सिर्फ 7 बच्चे ही पास हुए हैं, बाकी सब फेल.
सरकार सब पढ़ें सब बढ़े का नारा जोर शोर से लगा रही है, लेकिन इस नारे को अमली जामा पहनाने में फिसड्डी साबित हो रही है, सरकारी स्कूलों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है. कहीं स्कूल हैं-शिक्षक नहीं, कहीं शिक्षक हैं-जर्जर इमारत तो कहीं रास्ते बच्चों के सुनहरे भविष्य का रास्ता रोक रहे हैं. गुरूजी के गायब रहने पर बच्चे भी मारे-मारे फिरते हैं.
भले ही गांव के सरपंच-ग्रामीण स्कूल की स्थिति बता रहे हैं, पर गुरूजी हैं कि अपने साथियों की करतूतों पर बचाव की चादर डाले जा रहे हैं. अब एक शिक्षक के भरोसे स्कूल चलेगा तो कितने मुकम्मल भविष्य का निर्माण होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं है.
स्कूल में शिक्षकों की समस्या पर गांव के सचिव सतीश राय कई बार विधायक-कलेक्टर से शिकायत कर चुके हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा, जबकि सरकार शिक्षा की गुणवत्ता को वैश्विक स्तर पर ले जाने के सपने देख रही है, पर इन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जमीन पर काम करना होगा, नहीं तो एक दिन ऐसा आयेगा, जब देश का भविष्य शिक्षित होकर भी अशिक्षित की श्रेणी में खड़ा मिलेगा.