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सांसद आदर्श गांव में शिक्षा बेहाल, न शिक्षक-न छात्र, बस गंदगी-सन्नाटे का है वास

सरकार सब पढ़ें सब बढ़े का नारा जोर शोर से लगा रही है, लेकिन इस नारे को अमली जामा पहनाने में फिसड्डी साबित हो रही है, सरकारी स्कूलों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है.

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Published : Jul 8, 2019, 3:26 PM IST

शिक्षा के मंदिर में सिर्फ गंदगी का वास

जबलपुर। कहने को तो इस गांव को सांसद आदर्श ग्राम का तमगा मिला हुआ है. इस क्षेत्र के सांसद राकेश सिंह पिछले एक साल से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं और इन्हीं की पार्टी की सरकार डेढ़ दशक तक सूबे में रही है. फिर भी इन साहब के आदर्श गांव में कुछ भी आदर्श नहीं है. कोहला गांव स्थित विद्यालय में मास्साब की खाली कुर्सी और खाली पड़ी बेंच लचर सरकारी सिस्टम की तस्दीक कर रहे हैं. सरकारी फाइलों में यहां तीन शिक्षक नियुक्त हैं, जिनमें से दो गायब रहते हैं और एक शिक्षक के कंधे पर पूरे स्कूल की जिम्मेदारी रहती है. यही वजह है कि ये स्कूल रिजल्ट के मामले में भी नये आयाम स्थापित किया है क्योंकि यहां 40 में से सिर्फ 7 बच्चे ही पास हुए हैं, बाकी सब फेल.

शिक्षा के मंदिर में सिर्फ गंदगी का वास

सरकार सब पढ़ें सब बढ़े का नारा जोर शोर से लगा रही है, लेकिन इस नारे को अमली जामा पहनाने में फिसड्डी साबित हो रही है, सरकारी स्कूलों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है. कहीं स्कूल हैं-शिक्षक नहीं, कहीं शिक्षक हैं-जर्जर इमारत तो कहीं रास्ते बच्चों के सुनहरे भविष्य का रास्ता रोक रहे हैं. गुरूजी के गायब रहने पर बच्चे भी मारे-मारे फिरते हैं.

भले ही गांव के सरपंच-ग्रामीण स्कूल की स्थिति बता रहे हैं, पर गुरूजी हैं कि अपने साथियों की करतूतों पर बचाव की चादर डाले जा रहे हैं. अब एक शिक्षक के भरोसे स्कूल चलेगा तो कितने मुकम्मल भविष्य का निर्माण होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं है.

स्कूल में शिक्षकों की समस्या पर गांव के सचिव सतीश राय कई बार विधायक-कलेक्टर से शिकायत कर चुके हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा, जबकि सरकार शिक्षा की गुणवत्ता को वैश्विक स्तर पर ले जाने के सपने देख रही है, पर इन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जमीन पर काम करना होगा, नहीं तो एक दिन ऐसा आयेगा, जब देश का भविष्य शिक्षित होकर भी अशिक्षित की श्रेणी में खड़ा मिलेगा.

जबलपुर। कहने को तो इस गांव को सांसद आदर्श ग्राम का तमगा मिला हुआ है. इस क्षेत्र के सांसद राकेश सिंह पिछले एक साल से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं और इन्हीं की पार्टी की सरकार डेढ़ दशक तक सूबे में रही है. फिर भी इन साहब के आदर्श गांव में कुछ भी आदर्श नहीं है. कोहला गांव स्थित विद्यालय में मास्साब की खाली कुर्सी और खाली पड़ी बेंच लचर सरकारी सिस्टम की तस्दीक कर रहे हैं. सरकारी फाइलों में यहां तीन शिक्षक नियुक्त हैं, जिनमें से दो गायब रहते हैं और एक शिक्षक के कंधे पर पूरे स्कूल की जिम्मेदारी रहती है. यही वजह है कि ये स्कूल रिजल्ट के मामले में भी नये आयाम स्थापित किया है क्योंकि यहां 40 में से सिर्फ 7 बच्चे ही पास हुए हैं, बाकी सब फेल.

शिक्षा के मंदिर में सिर्फ गंदगी का वास

सरकार सब पढ़ें सब बढ़े का नारा जोर शोर से लगा रही है, लेकिन इस नारे को अमली जामा पहनाने में फिसड्डी साबित हो रही है, सरकारी स्कूलों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है. कहीं स्कूल हैं-शिक्षक नहीं, कहीं शिक्षक हैं-जर्जर इमारत तो कहीं रास्ते बच्चों के सुनहरे भविष्य का रास्ता रोक रहे हैं. गुरूजी के गायब रहने पर बच्चे भी मारे-मारे फिरते हैं.

भले ही गांव के सरपंच-ग्रामीण स्कूल की स्थिति बता रहे हैं, पर गुरूजी हैं कि अपने साथियों की करतूतों पर बचाव की चादर डाले जा रहे हैं. अब एक शिक्षक के भरोसे स्कूल चलेगा तो कितने मुकम्मल भविष्य का निर्माण होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं है.

स्कूल में शिक्षकों की समस्या पर गांव के सचिव सतीश राय कई बार विधायक-कलेक्टर से शिकायत कर चुके हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा, जबकि सरकार शिक्षा की गुणवत्ता को वैश्विक स्तर पर ले जाने के सपने देख रही है, पर इन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जमीन पर काम करना होगा, नहीं तो एक दिन ऐसा आयेगा, जब देश का भविष्य शिक्षित होकर भी अशिक्षित की श्रेणी में खड़ा मिलेगा.

Intro:एंकर। सरकार भले ही सरकारी स्कूल के बच्चों को कॉन्वेंट स्कूलों की तर्ज पर सुबिधा देने का दम भर रही हो मगर इनमे से कई स्कूलों के शिक्षक बच्चों को पढ़ाने की बजाय घर मे ही आराम फरमाते रहते है और बच्चे पान की दुकानों में खड़े होकर समय व्यतीत करते रहते है ऐसे में खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन स्कूलों में किस तरह शिक्षा का बंटाधार किया जा रहा है।

बीओ - 24 जून से स्कूलों में प्रवेसउत्सव शुरू हो गए है जहां शिक्षकों को बच्चों को पढ़ाई करानी चाहिए वहां शिक्षक ऑफिस और अन्य कामों का हवाला देते हुए पल्ला झाड़ रहे हैं शिक्षकों को 10 जून से स्कूल आने के लिए शिक्षा विभाग के आदेश दिए गए थे जिससे स्कूलों के कार्य पूर्ण हो सके और जैसे ही प्रवेश उत्सव हो बच्चों की पढ़ाई चालू हो जाये और सुचारू रूप से चलती रहे

बीओ -कोहला गांव वही गाँव हैं जिसे भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष ओर बर्तमान में सांसद राकेश सिंह ने गोद लिया था हाई स्कूल कोहला में कहने को तो 3 लोगों का स्टाफ है, लेकिन इनमें से अधिकांश लोग अक्सर गायब रहते हैं। इससे यहां अध्ययन कर रहे सैकड़ों छात्रों को इनके लापरवाही की सजा भुगतनी पड़ रही है। यहां शिक्षा का स्तर इस कदर खराब है कि पिछले कई सालों में हाई स्कूल का परीक्षा परिणाम फिसड्डी चला आ रहा है
Body:बीओ - गौरतलब है कि स्कूल में पदस्थ अधिकांश शिक्षक छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के बजाए अधिकांश समय राजनीति या अपने कामकाज करने में व्यतीत करते हैं। इससे पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाने से छात्र-छात्राओं की पढ़ाई गंभीर रूप से प्रभावित होती हैं। स्कूल में एडमिशन लेने आये अभिभावकों ने बताया कि पाठ्यक्रम पूरा नहीं कराया जाता हैं तो। इससे यहां का परिणाम कितना अच्छा आयगा इसकी ज्यादा हम लोग उम्मीद ही नहीं करते हैं।
एम्बिएंस -
बीओ- स्कूल के शिक्षकों की लापरवाही का परिणाम यहां के बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। इसी कारण यहां वर्ष 2002-03 के बाद से हो हाईस्कूल परीक्षा परिणाम 15 के फीसदी के अंदर चल आ रहा है। स्कूल का परीक्षा परिणाम पिछले कई सालों से लागतार खराब आने के बाद भी न शिक्षा विभाग के अधिकारी चेते और न ही स्कूल के शिक्षक। इस सत्र दसवीं कक्षा में 40 छात्रों में मात्र 7 बच्चे पास हुये है स्कूल के बच्चों ने बताया, कोई भी शिक्षक मुख्यालय में नहीं रहते। विभाग के किसी अधिकारी ने भी इससे पहले स्कूल का निरीक्षण नहीं किया था। इससे ही स्कूल की पढ़ाई व्यवस्था चौपट हो गई थी।

27 जून को कलेक्टर भरत यादव कोहला गांव पहुंचे थे जहाँ गांव की महिलाओं ने शिक्षा संबंधित शिकायत भी थी वही कलेक्टर ने शिक्षकों को चेतावनी देते हुए अच्छी शिक्षा की बात की थी लेकिन इसके बावजूद भी हाई स्कूल के शिक्षक लापरवाही बर्तने से बाज नही आ रहे है

- इनका कहना है
01.एक सप्ताह पहले ही मैं चरगवां गया था और मुझे भी कुछ कमियां स्कूलों में नजर आई थी, कोहला स्कूल का मामला आपने हमारे संज्ञान में लाया है मैं इसकी जांच करूँगा और उचित निर्णय लूंगा।
एस. के. नेमा, डीईओ, जबलपुर

02.स्कूल में शिक्षक आते ही नहीं हैं, बच्चे बाहर पढ़ने के लिए जा रहे हैं, शिक्षकों की बहुत जरूरत है बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है। हमने इसकी कलेक्टर साहब को भी लिखित शिकायत दी है लेकिन कोई कार्यवाही नही हुई। ओर हम आदिवासियों के खिलबाड़ किया जा रहा है
मुन्नी बाई ठाकुर, सरपंच, कोहला

03.स्कूल में बच्चे का एडमिशन कराने आये अभिभावक सुरेश ठाकुर का कहना है यहाँ तो पढ़ाई होती ही नही अगर शिकायत करनी हो तो किसको करे जो प्रभारी है प्रवीण जैन कभी मिलते ही नही

04.अभिभावक डालचंद अपने दूसरे बच्चे का एडमिशन कराने स्कूल आये थे जब उनसे पूछा कि यहाँ पर आपका बच्चा पढ़ाई कर रहा है तो आपको पता होगा कि यहा का प्रचार्य को जानते है तो डालचंद का जबाब था कि एक साल में आठ से दस बार स्कूल आना हुआ है हमने बस एक बार देखा है

05.स्कूल में शिक्षको एवं पढ़ाई की समस्या को लेकर गावँ के सचिव सतीश राय कई बार शिकायत की विधायक एवं कलेक्टर साहब से भी कई बार मौखिक शिकायत की है लेकिन कोई कार्यवाही नही होती

बाइट - मुन्नीबाई सरपंच कोहला
बाइट - माताप्रसाद शर्मा शिक्षक
बाइट - सुरेस ठाकुर अभिभावक
Conclusion:ETV भारत की टीम जब स्कूल की जमीनी हकीकत जानने पहुंची तो तमाम खमियाँ उजागर हुई । हद तो तब हो गई जब मीडिया के स्कूल पहुंचने की खबर स्कूल के मास्टर साहब प्रवीण जैन को लगी तो उन्होंने फ़ोन कर खबर न छापने की धमकी तक दे डाली
बहरहाल अब देखना यह होगा कि शिक्षा विभाग लापरवाही बर्तने बाले शिक्षकों पर क्या कार्यवाही करता है
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