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जबलपुर के ओडीएफ डबल प्लस तमगे पर उठ रहे सवाल, खुले में शौच करने को मजबूर हैं लोग - madan mahal

जबलपुर शहर को ओडीएफ प्लस प्लस का दर्जा दिया है, बावजूद इसके कई लोग खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हैं.

जबलपुर नगर निगम
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Published : Oct 7, 2019, 10:29 PM IST

जबलपुर। ओडीएफ की रैंकिंग में शहर के पास ओडीएफ डबल प्लस का तमगा है. जिसका मतलह है यहां के लोग सौ प्रतिशत शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद शहर के मदनमहल पहाड़ी इलाके से एक बस्ती को विस्थापित किया गया है. जिसके चलते करीब 200 परिवारों को एक सामुदायिक भवन में रखा गया है. जहां उनको सिर छिपाने की जगह तो मिल गई है, लेकिन शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है.

मदनमहल पहाड़ी से विस्थापित लोग खुले में शौच जाने को मजबूर

सुशीला बेन ने बताया कि सामुदायिक भवन में उन्हें रहने का सहारा तो मिल गया, लेकिन यहां शौचालयों की व्यवस्था नहीं है. इस भवन में कई बुजुर्ग भी रहते हैं, जिन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

शहर के आसपास के कई गांव जो नगर निगम में अभी-अभी शामिल हुए हैं, उनकी हालत खराब है. इन गांवों में महज कुछ परिवारों के पास ही शौचालय हैं. कजरवारा, बीटा बिलहरी जैसे कई गांव में लोगों के पास अभी भी ये बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है.

कलेक्टर भरत यादव का कहना है कि सरकार अपने स्तर पर कोशिशें कर रही है, लेकिन लोगों को भी अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए, तभी ये समस्या खत्म हो सकती है.

दरअसल ओडीएफ का प्रमाण पत्र जारी करने वाली एजेंसियां बाहर से सर्वे करने आतीं हैं. इनके अधिकारियों को शहर की ज्यादा जानकारी नहीं होती है, जिला प्रशासन के कर्मचारी जहां पहुंचा देते हैं, वहीं की सर्वे रिपोर्ट फाइनल हो जाती है और प्रमाणपत्र जारी हो जाता है. जबकि शहर में शौचालयों की स्थिति बदतर है.

जबलपुर। ओडीएफ की रैंकिंग में शहर के पास ओडीएफ डबल प्लस का तमगा है. जिसका मतलह है यहां के लोग सौ प्रतिशत शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद शहर के मदनमहल पहाड़ी इलाके से एक बस्ती को विस्थापित किया गया है. जिसके चलते करीब 200 परिवारों को एक सामुदायिक भवन में रखा गया है. जहां उनको सिर छिपाने की जगह तो मिल गई है, लेकिन शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है.

मदनमहल पहाड़ी से विस्थापित लोग खुले में शौच जाने को मजबूर

सुशीला बेन ने बताया कि सामुदायिक भवन में उन्हें रहने का सहारा तो मिल गया, लेकिन यहां शौचालयों की व्यवस्था नहीं है. इस भवन में कई बुजुर्ग भी रहते हैं, जिन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

शहर के आसपास के कई गांव जो नगर निगम में अभी-अभी शामिल हुए हैं, उनकी हालत खराब है. इन गांवों में महज कुछ परिवारों के पास ही शौचालय हैं. कजरवारा, बीटा बिलहरी जैसे कई गांव में लोगों के पास अभी भी ये बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है.

कलेक्टर भरत यादव का कहना है कि सरकार अपने स्तर पर कोशिशें कर रही है, लेकिन लोगों को भी अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए, तभी ये समस्या खत्म हो सकती है.

दरअसल ओडीएफ का प्रमाण पत्र जारी करने वाली एजेंसियां बाहर से सर्वे करने आतीं हैं. इनके अधिकारियों को शहर की ज्यादा जानकारी नहीं होती है, जिला प्रशासन के कर्मचारी जहां पहुंचा देते हैं, वहीं की सर्वे रिपोर्ट फाइनल हो जाती है और प्रमाणपत्र जारी हो जाता है. जबकि शहर में शौचालयों की स्थिति बदतर है.

Intro:जबलपुर शहर ओडीएफ डबल प्लस श्रेणी में होने के बाद भी जबलपुर शहर में हजारों लोगों के पास नहीं है शौचालय प्रशासन का कहना लोगों को खुद ही करने होंगे प्रयास


Body:जबलपुर शहर ओडीएफ की रैंकिंग में ओडीएफ प्लस प्लस है मतलब इसका स्पष्ट आशय है कि जबलपुर शहर में लोग 100% शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है

सच्चाई जानने के लिए हम जबलपुर की एक बस्ती में पहुंचे बीते दिनों हाईकोर्ट के आदेश के बाद जबलपुर के मदन महल पहाड़ की बस्तियों को तोड़ दिया गया है इनमें से कुछ परिवारों को एक सामुदायिक भवन में अस्थाई रूप से बसाया गया है यह तकरीबन 200 लोग हैं जिनके पास शिर पाने के लिए यह सामुदायिक भवन है लेकिन शौचालय नहीं है और इन लोगों को पहाड़ पर ही शौच करने के लिए जाना पड़ता है इनमें कई बुजुर्ग लोग भी शामिल हैं

जबलपुर में लगभग दो लाख लोग पहाड़ियों पर अवैध कब्जा करके रहते हैं इनमें से ज्यादातर परिवारों के पास पहाड़ी पर घरों में शौचालय नहीं है क्योंकि यह लोग अवैध तरीके से रहते हैं इसलिए नगर निगम भी इन पर ध्यान नहीं देती मेडिकल कॉलेज के आसपास ही सैकड़ों बेघर बार लोग हैं यहां कुछ सुलभ शौचालय हैं लेकिन वह इतनी बड़ी तादाद के लिए पर्याप्त नहीं है लिहाजा लोगों को खुले में शौच करने के लिए जाना पड़ता है यही हालत सिद्ध बाबा पहाड़ी की है कुछ ऐसे ही हालात क्रेशर बस्ती के हैं दूसरी कई छोटी-छोटी पहाड़ियों पर भी लोगों के घरों में शौचालय नहीं है

जबलपुर के आसपास के कई गांव जो नगर निगम में अभी अभी शामिल हुए हैं उनमें भी हालात बहुत खराब है हर परिवार के पास शौचालय नहीं हैं कजरवारा बीटा बिलहरी जैसे गांव में लोगों के पास अभी भी यह बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है प्रशासन का कहना है कि सरकार अपने स्तर पर कोशिशें कर रही है लेकिन लोगों को भी अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए तभी यह समस्या खत्म हो सकती है



Conclusion:दरअसल ओडीएफ का प्रमाण पत्र देने के लिए एजेंसी या बाहर से आती हैं और इन लोगों को शहर की जानकारी नहीं होती अधिकारी कर्मचारी जहां पहुंचा देते हैं वहीं से प्रमाण पत्र जारी हो जाता है जबकि सरकारी मानकों में जो स्थिति दिखाई जाती है शहरों की हालत उससे कहीं बदतर है
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