जबलपुर। ओडीएफ की रैंकिंग में शहर के पास ओडीएफ डबल प्लस का तमगा है. जिसका मतलह है यहां के लोग सौ प्रतिशत शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद शहर के मदनमहल पहाड़ी इलाके से एक बस्ती को विस्थापित किया गया है. जिसके चलते करीब 200 परिवारों को एक सामुदायिक भवन में रखा गया है. जहां उनको सिर छिपाने की जगह तो मिल गई है, लेकिन शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है.
सुशीला बेन ने बताया कि सामुदायिक भवन में उन्हें रहने का सहारा तो मिल गया, लेकिन यहां शौचालयों की व्यवस्था नहीं है. इस भवन में कई बुजुर्ग भी रहते हैं, जिन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
शहर के आसपास के कई गांव जो नगर निगम में अभी-अभी शामिल हुए हैं, उनकी हालत खराब है. इन गांवों में महज कुछ परिवारों के पास ही शौचालय हैं. कजरवारा, बीटा बिलहरी जैसे कई गांव में लोगों के पास अभी भी ये बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है.
कलेक्टर भरत यादव का कहना है कि सरकार अपने स्तर पर कोशिशें कर रही है, लेकिन लोगों को भी अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए, तभी ये समस्या खत्म हो सकती है.
दरअसल ओडीएफ का प्रमाण पत्र जारी करने वाली एजेंसियां बाहर से सर्वे करने आतीं हैं. इनके अधिकारियों को शहर की ज्यादा जानकारी नहीं होती है, जिला प्रशासन के कर्मचारी जहां पहुंचा देते हैं, वहीं की सर्वे रिपोर्ट फाइनल हो जाती है और प्रमाणपत्र जारी हो जाता है. जबकि शहर में शौचालयों की स्थिति बदतर है.