जबलपुर। लॉकडाउन की वजह से देशभर में करोड़ों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. ऐसे में कुम्हारों को भी काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. शहर में मिट्टी के बर्तन, मटके, गमले, दीए और अन्य सामान बनाने वाले हजारों लोग हैं. गर्मी का सीजन कुम्हारों के लिए सबसे बड़ा सीजन होता है क्योंकि इनकी बनाई हुई सुराही और मटकों की मांग बढ़ जाती है. मिट्टी के इन कलाकारों ने ठंड से ही मटके बनाना शुरू कर दिया था, जिससे गर्मियों के लिए ज्यादा मटके तैयार हो सकें.
ऐसे बनते हैं मिट्टी के बर्तन
इस कारोबार में कुम्हार अपने परिवार के सभी सदस्यों को मिलकर काम करता है. कोई मिट्टी तैयार करता है, कोई बर्तन बनाता है, महिलाएं इनको सुखाती हैं, बच्चे भी छोटे-छोटे सामान बनाते हैं. फिर इनको पकाया जाता है. इन पर कलर किया जाता है, तब जाकर यह मिट्टी के बर्तन बाजार में बिकने के लिए तैयार होते हैं.
लॉकडाउन का असर
सदियों से कुम्हार ऐसे ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं. शहर में बड़ी तादाद में कुम्हार रहते हैं. इस बार कुम्हारों को उम्मीद थी की गर्मी तेज पड़ेगी और मटके बिक जाएंगे, लेकिन कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन ने इनका बना बनाया व्यापार बर्बाद कर दिया है. अब इन लोगों की मेहनत कहीं कमरों में बंद है या छतों पर पड़ी है. जो मटके बनाए थे वो बीके नहीं. फिलहाल कुछ कुम्हारों ने बरसात के मद्देनजर गमले बनाना शुरू कर दिए हैं. वहीं कुछ ने नवदुर्गा में जवारा की स्थापना के लिए मटके बनाना शुरु कर दिए है, जिससे आने वाले समय में रोजी-रोटी चल सके.