छिंदवाड़ा। एक याचिकाकर्ता ने 10 अधिकारियों के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है. जिसमें प्रदेश के मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री के सचिव, डीजीपी और जबलपुर जोन के आईजी, छिंदवाड़ा कलेक्टर, एसपी के अलावा नगर निगम कमिश्नर शामिल हैं. मामला जनहित से जुड़ा है.
याचिकाकर्ता भगवानदीन ने बताया कि 5 जनवरी को 2018 को उन्होंने छिंदवाड़ा निगम कमिश्नर इच्छित गढ़वाले की जनविरोधी गतिविधियों की लिखित शिकायत मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव और तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान से की थी. मामले की जांच के लिए सीएम हेल्पलाइन से छिंदवाड़ा कलेक्टर को कार्रवाई के लिये आदेशित किया गया था, लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते आवेदन नगर निगम पहुंचा दिया गया.
वहां पदस्थ्य राजकुमार पवार और अनंत धुर्वे ने शिकायत का निवारण करते हुये ये कहा कि हेल्पलाइन पर दर्ज की गई शिकायत झूठी और मनगढ़ंत है.वहीं दूसरी शिकायत के निपटारे के लिये मुख्य सचिव एमपी के माध्यम से जबलपुर कमिश्नर और छिंदवाड़ा कलेक्टर को कार्रवाई के निर्देश दिये गये. इस संबंध में याचिकाकर्ता के बयान जिला कलेक्टर की शिकायत शाखा में दिनांक 29 अगस्त 2018 को दर्ज हुए.
इस दौरान नगर निगम आयुक्त ने कलेक्टर को बताया कि शिकायतकर्ता ने नगर पालिका निगम द्वारा संचालित वृद्धा आश्रम में अनियमितता और सूचना के अधिकार अधिनियम में भाई-भतीजावाद को लेकर जो जनहित याचिका लगाई थी, वह स्वहित की होने के कारण उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा निरस्त कर दी गई है.
याचिकाकर्ता भगवानदीन साहू ने इस संबंध में 24 दिसंबर 2018 और 29 दिसंबर 2018 को सभी प्रतिवादीगणों को प्रार्थना पत्र देकर निगम में पदस्थ अधिकारियों पर धोखाधड़ी का केस दर्ज करने की मांग की थी, लेकिन सभी प्रतिवादीगणों ने निगम कर्मचारियों को बचाने का प्रयास किया.
10 मई 2019 को उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता और सरकारी वकील के बीच मामले को लेकर बहस हुई, जिसके बाद इस याचिका को हाईकोर्ट के न्यायाधीश अतुल श्रीधरन ने जनहित का बताते हुए खंडपीठ को प्रेषित कर दिया है.