जबलपुर। मध्य प्रदेश सरकार के चिकित्सा शिक्षा आयुक्त ने एक आदेश जारी किया है. यह चिट्ठी मध्यप्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेजों के डीन को लिखी गई है. जिसके तहत मध्य प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेजों की लैब को निजी हाथों में सौंपा जाने की प्रक्रिया को रोक दिया गया है. हालांकि इसके लिए टेंडर किया जा चुका है और इंफ्रास्ट्रक्चर बिजली पोल और बोर्ड बनाने वाली कंपनि को यह ठेका दिया गया है, जिसे पैथोलॉजी लैब चलाने का कोई अनुभव नहीं है. लेकिन इसके पहले कि यह कंपनी काम शुरू करती आयुक्त चिकित्सा शिक्षा के पत्र में यह लिखा दिया कि ठेके में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और अनियमितता पाई गई है. इसलिए इस प्रक्रिया को रोक दिया जाए. रोक लगाने की पुष्टि नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के संरक्षत डॉ.पीजी नाज पांडे ने की है.
क्या थी योजना : प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेज भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा, सागर, शहडोल, रतलाम, खंडवा, छिंदवाड़ा, विदिशा, शिवपुरी और दतिया मे अत्याधुनिक पैथोलॉजी लैबे हैं. इनमें एमआरआई से लेकर खून की जांच तक करने की अत्याधुनिक मशीनें हैं. हर लैब की कीमत करोड़ों में होगी. फिलहाल इन पैथोलॉजी लैब्स में 1 दिन में 15,000 से ज्यादा टेस्ट होते हैं. जिनमें आम आदमी को रियायती दरों पर पैथोलॉजी का टेस्ट करवाने की सुविधा मिलती है. सरकारी योजनाओं के तहत बहुत से टेस्ट मुफ्त में भी होते हैं. सरकार को इन को चलाने में ज्यादा खर्च भी नहीं आता.
टेंडर भी निकल गया था : लैब्स को निजी हाथों में देने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इसके तहत टेंडर निकाला गया था. सरकार ने अपनी ओर से यह वादा किया था कि वह मेडिकल कॉलेज में 5000 से 8000 वर्ग फीट तक की जगह लैब को देगा. इसमें जो मौजूदा मशीनें हैं वे निजी हाथों में दे दी जाएंगी, जो मशीनें नहीं है उन मशीनों का इंतजाम प्राइवेट पार्टनर को करना होगा और जांच में जो रीएजेंट लगेगा उसका खर्च कंपनी करेगी. इन पैथोलॉजी लैब में जो स्टाफ काम करेगा, उसका खर्च सरकार उठाएगी. यहां तक कि इन पैथोलॉजी लैब को एनएबीएल का सर्टिफिकेट भी दिया जाएगा.
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चहेते ठेकेदारों को झटका : इसके बाद सरकार इन पैथोलॉजी लैब को जांच के अनुसार भुगतान करेगी और एनएबीएल सर्टिफिकेशन की स्थिति में जांच मौजूदा दरों से कहीं ज्यादा दरों पर होगा. मतलब स्पष्ट है कि जनता के पैसों से सरकारी मेडिकल कॉलेज में एक निजी दुकान चलाए जाने का स्थाई इंतजाम चहेते ठेकेदारों के लिए किया जा रहा है. सरकारी खजाने से हर साल करोड़ों रुपया दिया जाएगा. यह रकम कई सौ करोड़ में हो सकती है. इस पूरी योजना में कहीं पर भी आम जनता को फायदा दिखता हुआ नजर नहीं आ रहा है. चिकित्सा शिक्षा आयुक्त ने संभवतः इसलिए इस प्रक्रिया को रोका है क्योंकि मध्यप्रदेश सरकार पहले ही बड़े-बड़े घोटालों में फंसती नजर आ रही है.