जबलपुर। याचिकाकर्ता अर्पिता चौहान की तरफ से दायर याचिका में कहा गया कि उसने एनआरआई कोटे के तहत इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया था. उसने एमबीबीएस कोर्स की पढ़ाई के बाद इंटरशिप पूर्ण की थी. उसने मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी में प्रोविजनल डिग्री के लिए आवेदन किया था. यूनिवर्सिटी ने पुस्तकालय शुल्क, विश्वविद्यालय विकास शुल्क, खेल व सास्कृतिक शुल्क आदि के रूप में 4800 यूएस डॉलर की मांग की है.
यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी : याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी करते हुए अधिवक्ता आदित्य संघी ने युगलपीठ को बताया कि छात्र की डिग्री उसकी व्यक्तिगत सम्पत्ति है. विभिन्न मदों के नाम पर डिग्री के लिए 4800 डॉलर मांगे जा रहे हैं, जो भारतीय रुपये के हिसाब से लगभग 3 लाख 75 हजार रुपये है. याचिका की सुनवाई के बाद युगलपीठ ने मेडिकल चिकित्सा शिक्षा विभाग तथा यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. बता दें कि इसके पहले भी मेडिकल एजुकेशन की फीस को लेकर कई मामले हाई कोर्ट में पहुंच चुके हैं.
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फर्जी जमानत देने वाले को सजा : ग्वालियर की अदालत ने एक फर्जी जमानतदार पर आरोप सिद्ध होने पर कठोर रुख अपनाते हुए सात साल की सज़ा सुनाई है. अपर लोक अभियोजक जगदीश शाक्यवार ने कोर्ट द्वारा दिये गए फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि मामला 24 अप्रैल 2019 का है. आरोपी सौरभ को रिहा करने के लिए उसकी जमानत देने नूरगंज निवासी महेश ने कोर्ट में प्रतिभूति के तौर पर एक ऋण पुस्तिका प्रस्तुत की थी. इसमें उसने खुद को ग्वालियर जिले के ग्राम सौंसा में स्थित भूमि का स्वामी बताया था. संदेह होने पर कोर्ट ने जब महेश से उक्त भूमि को लेकर सवाल-जवाब किये तो वह सकपका गया और सही उत्तर नहीं दे सका.