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MP High Court : हाई कोर्ट का अहम फैसला, जमीन त्यागने का पत्र रजिस्टर्ड नहीं तो बहनें भी हकदार, भाई की याचिका निरस्त - भाई की याचिका निरस्त

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट जबलपुर ने एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर त्याग विलेख पत्र रजिस्टर्ड नहीं है तो इसे कानूनी मान्याता नहीं मिल सकती. भाई व बहन के बीच जमीन विवाद के मामले में कोर्ट में सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता ने बताया कि उसकी बहनों ने जमीन से अपना हक छोड़ दिया था.

MP High Court News
जमीन त्यागने का पत्र रजिस्टर्ड नहीं है तो बहनें भी हैं हकदार
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 23, 2023, 5:49 PM IST

जबलपुर। त्याग विलेख पत्र रजिस्टर्ड नहीं है तो सभी कानूनी हिस्सेदार जमीन के हकदार हैं. हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलुवालिया ने उक्त आदेश के साथ याचिका को अस्वीकार कर दिया. याचिकाकर्ता रामकुमार राजपूत की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि हरदा जिले में उनके पिता गजराज सिंह के नाम पर जमीन थी. उनकी मृत्यु के बाद उक्त जमीन मां निर्मिला के नाम पर दर्ज हुई थी. मां की मृत्यु के बाद अनावेदक तीनों बहनों ने जमीन पर अपना हक त्याग दिया था.

तहसीलदार ने किया नामांतरण : तहसीलदार के उनके त्याग विलेख के आधार पर जमीन का नामांतरण उसके नाम पर कर दिया था. अनावेदक बहनों ने तहसीलदार के आदेश को चुनौती देते हुए एसडीएम के समक्ष अपील दायर की थी. एसडीएम ने अपील की सुनवाई करते हुए तहसीलदार के आदेश को निरस्त कर दिया था. एसडीएम के आदेश को चुनौती देते हुए संभागायुक्त नर्मदापुरम के समक्ष अपील दायर की गई. संभागायुक्त ने अपील को खारिज कर दिया था, जिसके कारण उक्त याचिका दायर की गई.

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याचिका में ये तर्क दिया : याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि अनावेदक बहनों ने जमीन पर अपना हक अपनी मर्जी से छोड़ा था. उनके त्याग विलेख के आधार पर तहसीलदार ने उनके नाम पर जमीन दर्ज करने के आदेश जारी किये थे. आवश्यकता नहीं होने के कारण त्याग विलेख पत्र को रजिस्टर्ड नही करवाया था. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि त्याग विलेख पत्र रजिस्टर्ड नहीं होने के कारण एसडीएम व आयुक्त द्वारा पारित आदेश उचित है. एकलपीठ ने प्रस्तुत त्याग विलेख पत्र को अस्वीकार करते हुए कहा है कि सभी कानूनी हिस्सेदार जमीन के हकदार हैं.

जबलपुर। त्याग विलेख पत्र रजिस्टर्ड नहीं है तो सभी कानूनी हिस्सेदार जमीन के हकदार हैं. हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलुवालिया ने उक्त आदेश के साथ याचिका को अस्वीकार कर दिया. याचिकाकर्ता रामकुमार राजपूत की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि हरदा जिले में उनके पिता गजराज सिंह के नाम पर जमीन थी. उनकी मृत्यु के बाद उक्त जमीन मां निर्मिला के नाम पर दर्ज हुई थी. मां की मृत्यु के बाद अनावेदक तीनों बहनों ने जमीन पर अपना हक त्याग दिया था.

तहसीलदार ने किया नामांतरण : तहसीलदार के उनके त्याग विलेख के आधार पर जमीन का नामांतरण उसके नाम पर कर दिया था. अनावेदक बहनों ने तहसीलदार के आदेश को चुनौती देते हुए एसडीएम के समक्ष अपील दायर की थी. एसडीएम ने अपील की सुनवाई करते हुए तहसीलदार के आदेश को निरस्त कर दिया था. एसडीएम के आदेश को चुनौती देते हुए संभागायुक्त नर्मदापुरम के समक्ष अपील दायर की गई. संभागायुक्त ने अपील को खारिज कर दिया था, जिसके कारण उक्त याचिका दायर की गई.

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याचिका में ये तर्क दिया : याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि अनावेदक बहनों ने जमीन पर अपना हक अपनी मर्जी से छोड़ा था. उनके त्याग विलेख के आधार पर तहसीलदार ने उनके नाम पर जमीन दर्ज करने के आदेश जारी किये थे. आवश्यकता नहीं होने के कारण त्याग विलेख पत्र को रजिस्टर्ड नही करवाया था. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि त्याग विलेख पत्र रजिस्टर्ड नहीं होने के कारण एसडीएम व आयुक्त द्वारा पारित आदेश उचित है. एकलपीठ ने प्रस्तुत त्याग विलेख पत्र को अस्वीकार करते हुए कहा है कि सभी कानूनी हिस्सेदार जमीन के हकदार हैं.

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