जबलपुर। अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव ने साल 2007 में विक्रम विश्वविद्यालय में एक व्याख्याता की नियुक्ति के खिलाफ याचिका दायर की थी. याचिका खारिज होने के बाद आदेश को चुनौती देते हुए अपील दायर की गयी थी. इस दौरान अधिवक्ता ने इंदौर बेंच के न्यायाधीशों के खिलाफ मुख्य न्यायादीश को 14 शिकायत पत्र भेजे थे. शिकायत में आपत्तिजनक शब्दाबली को प्रयोग किया गया था. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने साल 2013 में उनके खिलाफ 2013 में अवमानना कार्रवाई शुरू करने के आदेश जारी किये थे. MP High Court fine on advocate
शिकायतों की भाषा पर आपत्ति : अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने न्यायाधीशों को पक्षकार बनाने के लिए आवेदन दायर किया था. इसके अलावा 50 लाख रुपये मुआवजा मांगा था. युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि चार शिकायतों में ऐसी भाषा का उपयोग किया गया है, जिससे न्यायालय के अधिकार को बदनाम तथा कम करने वाली है. युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि अधिवक्ता के रूप में श्रीवास्तव केवल अपने मुवक्किल के एजेंट या नौकर नहीं थे, बल्कि अदालत के एक अधिकारी भी थे, जिसके प्रति उनका कर्तव्य था. MP High Court fine on advocate
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चारों शिकायतों पर जुर्माना : अधिवक्ता के लिए इससे गंभीर कुछ नहीं हो सकता कि वह कानून के प्रशासन में बाधा डाले या रोके. युगलपीठ ने आदेश में कहा कि अधिवक्ता को आवेदन व शिकायत में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा और अदालत के सामने पेश तथा बहस के बारे में ज्ञान होना चाहिए. युगलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए अधिवक्ता को अवमानना का दोषी करार दिया है. चारों शिकायतों पर युगलपीठ ने एक-एक लाख रुपये का जुमाना लगाते हुए उक्त राशि राज्य अधिवक्ता परिषद के खाते में जमा करने का निर्देश दिये हैं. MP High Court fine on advocate