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जबलपुर में 7 दिन के लिए भी कोई शराब दुकान चलाने को तैयार नहीं, आबकारी विभाग की नीति फेल

जबलपुर में शराब ठेकेदारों को नई शराब नीति रास नहीं आई है. ठेकेदार तो 7 दिन के लिए भी पैसा जमा करके दुकान नहीं चलान चाहते. निविदा की प्रक्रिया होने के बाद भी 41 दुकानों में से मात्र एक दुकान ठेके पर गई है.

Liquor Contractors in Jabalpur
जबलपुर में शराब ठेकेदार
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Published : Jun 13, 2020, 11:48 PM IST

जबलपुर। जिले में शराब कारोबारियों ने दुकानों का संचालन करने से मना कर दिया है. अब शराब दुकानों को आबकारी विभाग खुद ही संचालित कर रहा है, लेकिन आबकारी विभाग के पास इतने कर्मचारी नहीं हैं कि, दुकानों को सही तरीके से संचालित कर सकें.

ऐसे हालात में विभाग ठेकेदार के कर्मचारियों की मदद ले रहा है, लेकिन इसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पा रहा है, शराब अधिक दामों पर बिक रही है. इसके साथ ही शराब की कालाबाजारी भी बढ़ रही है. लिहाजा जबलपुर आबकारी विभाग ने शराब दुकानों को ठेके पर देने की नई नीति के तहत 7 दिन के लिए दुकान किराए पर देने की निविदा निकाली. लेकिन 41 दुकानों के लिए निकाली गई इस निविदा में मात्र 2 दुकानों के लिए ही ठेकेदारों ने बोली लगाई. इनमें से एक दुकान तय कीमत से कम पर बोली लगाने की वजह से बेची नहीं जा सकी.

सरकार की इस विफल साबित हुई नीति पर अधिकारी बोलने से बच रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि, जितना राजस्व ठेके के माध्यम से आता था, उतना राजस्व यदि सरकार चलाएगी तो नहीं इकट्ठा होगा. अब या तो नए सिरे से ठेके किए जाएंगे, या फिर हो सकता है कि सरकार दुकानों की कीमत घटाएं. तभी यह सिलसिला दोबारा पटरी पर आ सकता है.

जबलपुर। जिले में शराब कारोबारियों ने दुकानों का संचालन करने से मना कर दिया है. अब शराब दुकानों को आबकारी विभाग खुद ही संचालित कर रहा है, लेकिन आबकारी विभाग के पास इतने कर्मचारी नहीं हैं कि, दुकानों को सही तरीके से संचालित कर सकें.

ऐसे हालात में विभाग ठेकेदार के कर्मचारियों की मदद ले रहा है, लेकिन इसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पा रहा है, शराब अधिक दामों पर बिक रही है. इसके साथ ही शराब की कालाबाजारी भी बढ़ रही है. लिहाजा जबलपुर आबकारी विभाग ने शराब दुकानों को ठेके पर देने की नई नीति के तहत 7 दिन के लिए दुकान किराए पर देने की निविदा निकाली. लेकिन 41 दुकानों के लिए निकाली गई इस निविदा में मात्र 2 दुकानों के लिए ही ठेकेदारों ने बोली लगाई. इनमें से एक दुकान तय कीमत से कम पर बोली लगाने की वजह से बेची नहीं जा सकी.

सरकार की इस विफल साबित हुई नीति पर अधिकारी बोलने से बच रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि, जितना राजस्व ठेके के माध्यम से आता था, उतना राजस्व यदि सरकार चलाएगी तो नहीं इकट्ठा होगा. अब या तो नए सिरे से ठेके किए जाएंगे, या फिर हो सकता है कि सरकार दुकानों की कीमत घटाएं. तभी यह सिलसिला दोबारा पटरी पर आ सकता है.

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