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अपने अशियाने की ओर लौट रहे मजदूर, भूख, बेबसी और मजबूरी का सफर...

इस लॉकडाउन में सबसे आफत में कोई है तो वो है मजदूर. दूसरे राज्यों और शहरों से लौट रहे मजदूरों का सफर बेहद कठिन है. ना खाने का ठिकाना ना रुकने का पता. बस अपने आशियाने की ओर चले जा रहे हैं.

Laborers migrating continuously reached Jabalpur
घर के लिए निकले मजदूरों की मुश्किलों भरा सफल
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Published : May 9, 2020, 1:07 PM IST

Updated : May 9, 2020, 8:57 PM IST

जबलपुर। लॉकडाउन 3.0 शुरू होते ही ऐसा माहौल बना दिया गया है कि सारे प्रवासी मजदूरों घर पहुंच गए हैं या तो औरघर पहुंचाने का इंतजाम कर दिया गया है, लेकिन महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रेलवे ट्रैक पर मजदूरों की मौत ने एक बार फिर पूरे समाज का ध्यान इस ओर खींचा है. लॉकडाउन 3.O आधा बीत जाने के बाद भी गरीब मजदूर घर नहीं पहुंच पाए. अभी भी उनका पैदल और सायकला पर निकलने का सिलसिला जारी है. इसी पर जबलपुर नेशनल हाईवे पर की पड़ताल की ईटीवी भारत ने और आशियाने का सफर कर रहे मजदूरों का जाना हाल...

घर के लिए निकले मजदूरों की मुश्किलों भरा सफल


मुंबई टू इलाहाबाद
मजदूरों का हाल जानने के लिए ईटीवी पहुंचा बाईपास चौराहे पर, जहां इलाहाबाद के रमेश से मुलाकात हुई. उन्होंने सरकार के इन दावों की पोल खोल दी. रमेश पहले लॉकडाउन के बाद से लगभग 30 दिनों तक मुंबई में खाली बैठा रहा, वो कपड़ा बनाने की एक फैक्ट्री में काम करता था. पहले लगा कि समस्या जल्दी खत्म हो जाएगी, फिर लगा कि सरकार शायद कुछ मदद करेगी. लेकिन जब सब उम्मीदें खत्म हो गईं तो रमेश ने एक पुरानी साइकिल खरीदी और साइकल से ही मुंबई से इलाहाबाद का सफर शुरू किया. रमेश सफर में अकेला नहीं था बल्कि उसके साथ एक दर्जन साथी भी है. बीते 23 तारीख से मुंबई से जबलपुर तक का लगभग 1200 किलोमीटर का सफर धीरे-धीरे तय करना शुरू किया. अभी रमेश को लगभग 400 किलोमीटर चलना है तब जाकर वह इलाहाबाद के पास अपने गांव पहुंचेगा.

रायपुर टू जालौन
थोड़ी देर बाद सड़क किनारे फिर एक काफिला नजर आया, इसमें एक दर्जन के लगभग साइकिले थीं और साइकिल पर लगभग दो दर्जन लोग थे. हर साइकिल पर एक परिवार था चिलचिलाती धूप में बच्चे साइकिल पर ही सफर कर रहे थे. पूछने पर बताया कि वो रायपुर से आ रहे हैं और उन्हें उत्तर प्रदेश के जालौन जाना है. ये सभी रायपुर के आसपास आइसक्रीम बेचा करते थे, इनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब माहौल सुधरता हुआ नजर नहीं आया तो पहले योगी सरकार की सुविधाओं के बारे में पता किया. लेकिन सरकार की सुविधाएं गरीबों तक नहीं पहुंच पाने पर ये मायूस हो गए और पुरानी साइकिल खरीदी और लगभग 1100 किलोमीटर का लंबा सफर शुरू कर दिया.

सामाजसेवी करा रहे भोजन
जबलपुर के बाईपास चौराहे पर बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान कई जगह के मजदूर, एक साथ मिले ऐसा नहीं था कि यह कोई संयोग रहा हो, यहां पर तो प्रवासी मजदूरों के लिए समाजसेवियों ने खाने का इंतजाम किया था. इस चौराहे पर इन परदेसी मजदूरों के लिए भोजन की व्यवस्था करवाने वाले एक नेता ने बताया कि लॉकडाउन 1 से लेकर अब तक उनके पास 30,000 से ज्यादा लोगों की एंट्री है, जिन्हें उन्होंने भोजन करवाया है. उन्होंने बताया की यहां से कर्नाटक तमिलनाडु हैदराबाद और इस तरफ गुजरात से बिहार और उत्तर प्रदेश जाने वाले हजारों मजदूर दिनभर निकलते रहते हैं.

बिना मजदूरों के टैक्सपेयर का क्या होगा ?
दरअसल ये मजदूर ना तो सरकार के हिसाब के पन्ने में थे और ना ही हाशिए में. क्योंकि ये टैक्सपेयर नहीं है इसलिए इनका हिसाब नहीं भी और इनके बिना टैक्सपेयर नहीं हैं. इसलिए ये हाशिए पर भी नहीं है. जरा सोचिए यदि ये जिन शहरों से लौट कर आए हैं वहां वापस नहीं जाते तो टैक्स देने वाले टैक्स दे पाएंगे क्या. फिर इनके बारे में सरकारों ने पहले क्यों नहीं सोचा.

जबलपुर। लॉकडाउन 3.0 शुरू होते ही ऐसा माहौल बना दिया गया है कि सारे प्रवासी मजदूरों घर पहुंच गए हैं या तो औरघर पहुंचाने का इंतजाम कर दिया गया है, लेकिन महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रेलवे ट्रैक पर मजदूरों की मौत ने एक बार फिर पूरे समाज का ध्यान इस ओर खींचा है. लॉकडाउन 3.O आधा बीत जाने के बाद भी गरीब मजदूर घर नहीं पहुंच पाए. अभी भी उनका पैदल और सायकला पर निकलने का सिलसिला जारी है. इसी पर जबलपुर नेशनल हाईवे पर की पड़ताल की ईटीवी भारत ने और आशियाने का सफर कर रहे मजदूरों का जाना हाल...

घर के लिए निकले मजदूरों की मुश्किलों भरा सफल


मुंबई टू इलाहाबाद
मजदूरों का हाल जानने के लिए ईटीवी पहुंचा बाईपास चौराहे पर, जहां इलाहाबाद के रमेश से मुलाकात हुई. उन्होंने सरकार के इन दावों की पोल खोल दी. रमेश पहले लॉकडाउन के बाद से लगभग 30 दिनों तक मुंबई में खाली बैठा रहा, वो कपड़ा बनाने की एक फैक्ट्री में काम करता था. पहले लगा कि समस्या जल्दी खत्म हो जाएगी, फिर लगा कि सरकार शायद कुछ मदद करेगी. लेकिन जब सब उम्मीदें खत्म हो गईं तो रमेश ने एक पुरानी साइकिल खरीदी और साइकल से ही मुंबई से इलाहाबाद का सफर शुरू किया. रमेश सफर में अकेला नहीं था बल्कि उसके साथ एक दर्जन साथी भी है. बीते 23 तारीख से मुंबई से जबलपुर तक का लगभग 1200 किलोमीटर का सफर धीरे-धीरे तय करना शुरू किया. अभी रमेश को लगभग 400 किलोमीटर चलना है तब जाकर वह इलाहाबाद के पास अपने गांव पहुंचेगा.

रायपुर टू जालौन
थोड़ी देर बाद सड़क किनारे फिर एक काफिला नजर आया, इसमें एक दर्जन के लगभग साइकिले थीं और साइकिल पर लगभग दो दर्जन लोग थे. हर साइकिल पर एक परिवार था चिलचिलाती धूप में बच्चे साइकिल पर ही सफर कर रहे थे. पूछने पर बताया कि वो रायपुर से आ रहे हैं और उन्हें उत्तर प्रदेश के जालौन जाना है. ये सभी रायपुर के आसपास आइसक्रीम बेचा करते थे, इनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब माहौल सुधरता हुआ नजर नहीं आया तो पहले योगी सरकार की सुविधाओं के बारे में पता किया. लेकिन सरकार की सुविधाएं गरीबों तक नहीं पहुंच पाने पर ये मायूस हो गए और पुरानी साइकिल खरीदी और लगभग 1100 किलोमीटर का लंबा सफर शुरू कर दिया.

सामाजसेवी करा रहे भोजन
जबलपुर के बाईपास चौराहे पर बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान कई जगह के मजदूर, एक साथ मिले ऐसा नहीं था कि यह कोई संयोग रहा हो, यहां पर तो प्रवासी मजदूरों के लिए समाजसेवियों ने खाने का इंतजाम किया था. इस चौराहे पर इन परदेसी मजदूरों के लिए भोजन की व्यवस्था करवाने वाले एक नेता ने बताया कि लॉकडाउन 1 से लेकर अब तक उनके पास 30,000 से ज्यादा लोगों की एंट्री है, जिन्हें उन्होंने भोजन करवाया है. उन्होंने बताया की यहां से कर्नाटक तमिलनाडु हैदराबाद और इस तरफ गुजरात से बिहार और उत्तर प्रदेश जाने वाले हजारों मजदूर दिनभर निकलते रहते हैं.

बिना मजदूरों के टैक्सपेयर का क्या होगा ?
दरअसल ये मजदूर ना तो सरकार के हिसाब के पन्ने में थे और ना ही हाशिए में. क्योंकि ये टैक्सपेयर नहीं है इसलिए इनका हिसाब नहीं भी और इनके बिना टैक्सपेयर नहीं हैं. इसलिए ये हाशिए पर भी नहीं है. जरा सोचिए यदि ये जिन शहरों से लौट कर आए हैं वहां वापस नहीं जाते तो टैक्स देने वाले टैक्स दे पाएंगे क्या. फिर इनके बारे में सरकारों ने पहले क्यों नहीं सोचा.

Last Updated : May 9, 2020, 8:57 PM IST
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