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हिन्दी दिवस विशेष: कामता प्रसाद गुरु ने जबलपुर में लिखी थी व्याकरण की सर्वमान्य किताब - mp news

हिन्दी व्याकरण के जनक कामता प्रसाद का जन्म सागर में हुआ था, लेकिन व्याकरण का सबसे पुराना ग्रंथ बनारस के दामोदर पंडित ने लिखा था. इसके बाद कई लोगों ने हिन्दी व्याकरण लिखने की कोशिश की, जबकि हिन्दी व्याकरण का जनक कामता प्रसाद गुरु को ही माना जाता है.

हिन्दी व्याकरण के जनक कामता प्रसाद
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Published : Sep 13, 2019, 10:15 PM IST

जबलपुर। हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. जबलपुर से हिंदी का विशेष नाता रहा है. हिन्दी व्याकरण के जनक कामता प्रसाद गुरु ने हिन्दी व्याकरण की पहली सर्वमान्य किताब जबलपुर में ही लिखी थी. हिन्दी व्याकरण लिखने का काम 12वीं सदी से शुरू हो गया था. व्याकरण का सबसे पुराना ग्रंथ बनारस के दामोदर पंडित ने लिखा था. इसके बाद कई लोगों ने हिन्दी व्याकरण लिखने की कोशिश की, लेकिन हिंदी व्याकरण का जनक कामता प्रसाद गुरु को ही माना जाता है.

हिन्दी व्याकरण के जनक कामता प्रसाद

1920 में उन्होंने हिन्दी व्याकरण की रचना की थी. जिसे नागरी प्रचारिणी सभा ने छापा था. इसे अब तक का हिन्दी भाषा का सबसे प्रमाणिक व्याकरण माना जाता है. इस पुस्तक को इतनी मान्यता मिली है कि दुनिया के दूसरे देशों में कई भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया और यही वजह है कि कामता गुरु को हिन्दी भाषा का जनक माना जाने लगा. कामता प्रसाद गुरु का जन्म सागर में हुआ था, बाद में वे जबलपुर में बस गए थे.

बड़े लेखक थे कामता प्रसाद गुरु

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने किशोरी लाल वाजपेई को 1933 में एक पत्र में लिखा था कि जरा संभल कर रहना, महा व्याकरण पंडित कामता प्रसाद गुरु कहीं खफा न हो जाएं. हिन्दी साहित्य में कामता प्रसाद गुरु की पहचान महावीर प्रसाद द्विवेदी का ये पत्र कराता है. कामता प्रसाद गुरु ने पौराणिक नाटक सुदर्शन हिंदुस्तानी शिष्टाचार पार्वती, यशोदा बाल सखा और सरस्वती नाम से कई गद्य-पद्य की रचनाएं की, हालांकि कामता प्रसाद गुरु को साहित्य में वह स्थान नहीं मिल पाया जो दूसरे रचनाकारों को मिला है.

कामता प्रसाद गुरु की वजह से दुनिया के कई देशों में लोग हिन्दी बोल पा रहे हैं. इन्हीं का व्याकरण पढ़कर हिन्दी का अनुवाद किया जाता है, हिन्दी दिवस पर लोग कामता प्रसाद गुरु को याद करते हैं. रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के हिन्दी विभाग के व्याकरण के जनक की ये पुस्तक उपलब्ध नहीं है, लेकिन विभागाध्यक्ष का कहना है कि कामता प्रसाद गुरु के बिना हिन्दी अधूरी है.

जबलपुर। हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. जबलपुर से हिंदी का विशेष नाता रहा है. हिन्दी व्याकरण के जनक कामता प्रसाद गुरु ने हिन्दी व्याकरण की पहली सर्वमान्य किताब जबलपुर में ही लिखी थी. हिन्दी व्याकरण लिखने का काम 12वीं सदी से शुरू हो गया था. व्याकरण का सबसे पुराना ग्रंथ बनारस के दामोदर पंडित ने लिखा था. इसके बाद कई लोगों ने हिन्दी व्याकरण लिखने की कोशिश की, लेकिन हिंदी व्याकरण का जनक कामता प्रसाद गुरु को ही माना जाता है.

हिन्दी व्याकरण के जनक कामता प्रसाद

1920 में उन्होंने हिन्दी व्याकरण की रचना की थी. जिसे नागरी प्रचारिणी सभा ने छापा था. इसे अब तक का हिन्दी भाषा का सबसे प्रमाणिक व्याकरण माना जाता है. इस पुस्तक को इतनी मान्यता मिली है कि दुनिया के दूसरे देशों में कई भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया और यही वजह है कि कामता गुरु को हिन्दी भाषा का जनक माना जाने लगा. कामता प्रसाद गुरु का जन्म सागर में हुआ था, बाद में वे जबलपुर में बस गए थे.

बड़े लेखक थे कामता प्रसाद गुरु

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने किशोरी लाल वाजपेई को 1933 में एक पत्र में लिखा था कि जरा संभल कर रहना, महा व्याकरण पंडित कामता प्रसाद गुरु कहीं खफा न हो जाएं. हिन्दी साहित्य में कामता प्रसाद गुरु की पहचान महावीर प्रसाद द्विवेदी का ये पत्र कराता है. कामता प्रसाद गुरु ने पौराणिक नाटक सुदर्शन हिंदुस्तानी शिष्टाचार पार्वती, यशोदा बाल सखा और सरस्वती नाम से कई गद्य-पद्य की रचनाएं की, हालांकि कामता प्रसाद गुरु को साहित्य में वह स्थान नहीं मिल पाया जो दूसरे रचनाकारों को मिला है.

कामता प्रसाद गुरु की वजह से दुनिया के कई देशों में लोग हिन्दी बोल पा रहे हैं. इन्हीं का व्याकरण पढ़कर हिन्दी का अनुवाद किया जाता है, हिन्दी दिवस पर लोग कामता प्रसाद गुरु को याद करते हैं. रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के हिन्दी विभाग के व्याकरण के जनक की ये पुस्तक उपलब्ध नहीं है, लेकिन विभागाध्यक्ष का कहना है कि कामता प्रसाद गुरु के बिना हिन्दी अधूरी है.

Intro:दुनिया में अपनी पहचान रखने वाली हिंदी की व्याकरण का जन्म जबलपुर में हुआ था कामता प्रसाद गुरु थे हिंदी व्याकरण के जनक


Body:जबलपुर का हिंदी से विशेष नाता रहा है हिंदी साहित्य की वीर रस की ख्याति मान कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी की रचना जबलपुर में की थी हरिशंकर परसाई क पूरा साहित्य ही जबलपुर के समाज पर आधारित है भवानी प्रसाद तिवारी ऐसे पहले कभी थे जिन्हें बाद में महापौर बनाया गया इन सब लोगों के बारे में तो आम हिंदी पाठक को जानकारी है लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं की हिंदी व्याकरण के जनक कामता प्रसाद गुरु ने हिंदी व्याकरण की पहली सर्वमान्य पुस्तक जबलपुर में लिखी थी

कामता प्रसाद गुरु की पुस्तक का दुनिया भर में अनुवाद हुआ

कोई भी भाषा बिना व्याकरण के नहीं लिखी जा सकती हिंदी की व्याकरण बहुत समृद्ध है यूं तो हिंदी व्याकरण को लिखने का का काम 12 वीं सदी से शुरू हो गया था हिंदी व्याकरण का सबसे पुराना ग्रंथ बनारस के दामोदर पंडित ने लिखा था इसके बाद कई लोगों ने हिंदी की व्याकरण लिखने की कोशिश की लेकिन हिंदी व्याकरण का जनक कामता प्रसाद गुरु को माना जाता है कामता प्रसाद गुरु का जन्म सागर में हुआ था लेकिन फिर भी जबलपुर में आकर बस गए थे और उन्होंने 1920 में हिंदी व्याकरण की रचना की थी जिसे नगरी प्रचारिणी सभा ने छपा था यह हिंदी व्याकरण का पहली बार पुस्तक ही करण हुआ था यह हिंदी भाषा की अब तक की सबसे प्रमाणिक व्याकरण मानी जाती है इस पुस्तक को इतनी मान्यता मिली कि दुनिया के दूसरे कई देशों में कई भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया और इसकी वजह से कामता प्रसाद गुरु को हिंदी व्याकरण का जनक माना गया

बड़े लेखक थे कामता प्रसाद गुरु
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने किशोरी लाल बाजपेई को 1933 में लिखे एक पत्र में लिखा था की जरा संभल कर रहना महा वयाकरण पंडित कामता प्रसाद गुरु कहीं खफा ना हो जाए हिंदी साहित्य में कामता प्रसाद गुरु की पहचान महावीर प्रसाद द्विवेदी का यह पत्र बतलाता है कामता प्रसाद गुरु ने पौराणिक नाटक सुदर्शन हिंदुस्तानी शिष्टाचार पार्वती और यशोदा बाल सखा और सरस्वती नाम की कई गद्य और पद्य रचनाएं की हालांकि कामता प्रसाद गुरु को साहित्य में वह स्थान नहीं मिल पाया जो दूसरे रचनाकारों को मिला




Conclusion:कामता प्रसाद गुरु की वजह से दुनिया के कई देशों में लोग हिंदी बोल पा रहे हैं इन्हीं की व्याकरण को पढ़कर हिंदी का अनुवाद किया जाता है गाहे-बगाहे हिंदी दिवस पर लोग कामता प्रसाद गुरु को याद कर लेते हैं यह बात और है कि रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के हिंदी विभाग में हिंदी व्याकरण के जनक की यह पुस्तक उपलब्ध नहीं है लेकिन विभाग के विभागाध्यक्ष का कहना है कि कामता प्रसाद गुरु के बिना हिंदी अधूरी है
बाइट डॉक्टर धीरेंद्र पाठक विभागाध्यक्ष हिंदी रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर
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