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क्यों बंद होने की कगार पर है Jabalpur की  Agricultural University ! किसकी है चाल, जानें विस्तार से

सरकार की उदासीनता के कारण जबलपुर की जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University) बंद होने की कगार पर है. विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों का कहना है कि प्रदेश सरकार को कई बार कृषि कर्मण अवार्ड (Krishi Karman Award) मिला है. लेकिन सरकार कृषि विश्वविद्यालयों की ओर ध्यान नहीं दे रही है. सरकार ने अभी तक प्रध्यापकों को सातवां वेतनमान (7th Pay Scale) भी नहीं दिया है.

Agricultural University on the verge of closure
बंद होने की कगार पर कृषि विश्वविद्यालय
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Published : Sep 19, 2021, 9:55 PM IST

जबलपुर। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University) देश के कुछ चुनिंदा कृषि विश्वविद्यालयों में से एक है. लेकिन अब ऐसा लगता है कि यह विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा. पिछले कुछ सालों में सरकार ने इस विश्वविद्यालय की ओर ध्यान नहीं दिया है. सरकार की उदासीनता (Apathy of Government) के कारण विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों को ना तो सातवां वेतनमान (7th Pay Scale) की लाभ मिला है और ना ही विश्वविद्यालय में प्राध्यापकों की भर्ती हुई है. प्रध्यापकों का कहना है कि विश्वविद्यालय की शुरुआत में एक हजार से ज्यादा प्रध्यापक थे, लेकिन वर्तमान स्थिति में केवल 250 ही रह गए है. यदि सरकार यूं ही उदासीन बनी रही, तो एक दिन यह विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा.

विश्वविद्यालय में नई वैज्ञानिकों की भर्ती बंद

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के प्रध्यापकों का कहना है कि यूनिवर्सिटी की स्थापना के समय एक समय एक हजार के लगभग कृषि वैज्ञानिक 9Agricultural Scientist) हुआ करते थे. अब इनकी संख्या मात्र 250 बची है. इनमें से 70 इसी साल रिटायर भी हो जाएंगे. कुछ 2025 में रिटायर हो जाएंगे. 2025 में यूनिवर्सिटी में कुल 100 वैज्ञानिक बचेंगे. लेकि सरकार रिटायर वैज्ञानिकों की जगह नई भर्ती नहीं कर रही है. यदि सरकार यूं ही उदासीन बनी रही, तो एक दिन यह विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा.

बंद होने की कगार पर कृषि विश्वविद्यालय

प्राध्यापकों को नहींं मिला सातवां वेतनमान

प्रध्यापकों का कहना है कि राज्य सरकार को कई बार कृषि कर्मण अवार्ड (Krishi Karman Award) मिला है. इसमें कृषि वैज्ञानिकों की भूमिका सबसे बड़ी है. यदि उन्होंने बाजार में सही किस्म के खाद बीज उपलब्ध नहीं करवाएं होते तो उत्पादन नहीं बढ़ सकता था. सरकार ने अवार्ड तो ले लिया, लेकिन जिन कृषि वैज्ञानिकों की वजह से सरकार को प्रसिद्धि मिली उन वैज्ञानिकों को सरकार सातवां वेतनमान में नहीं दे पाई. जबकि अन्य कॉलेजों के प्रोफेसरों को सातवां वेतनमान दिया जा रहा है.

महंगे खाद से मिलेगी निजात, किसानों के काम आएगी यह शोध, जानें कितना होगा फायदा

नई यूनिवर्सिटी खोलने की कवायद

मध्य प्रदेश सरकार देश की इस बड़ी यूनिवर्सिटी को नए वैज्ञानिक नहीं दे रही है. यहां जो काम कर रहे हैं उनकी सैलेरी नहीं बढ़ा रही है. यह सब इसलिए क्योंकि यह यूनिवर्सिटी जवाहरलाल नेहरू के नाम पर है. इससे इतर सरकार ने इंदौर में अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर एक नई एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की घोषणा कर दी है. सरकार उसमें पैसा बर्बाद कर रही है, लेकिन मौजूदा संस्थान को नहीं बचा रही है.

कृषि शिक्षा की बर्बादी की तैयारी

प्रध्यापकों का कहना है कि जिस तरीके से इंजीनियरिंग कॉलेज गली-गली खोले गए और आज इंजीनियरों की हालत खराब है. यहीं तैयारी कृषि क्षेत्र में भी कर ली गई है. सामान्य यूनिवर्सिटी को कृषि विज्ञान पढ़ाने का अधिकार दिया जा रहा है. शिक्षा सबको मिले इसमें कोई बुराई नहीं, लेकिन कम से कम शिक्षा की गुणवत्ता सही होनी चाहिए. एक कॉलेज के लिए कम से कम 100 एकड़ जमीन की जरूरत होती है. लेकिन 20 से 25 एकड़ जमीन पर यूनिवर्सिटी बनाकर उसमें पढ़ाई करवाई जा रही है.

जबलपुर: आशिक मिजाज प्रोफेसर के खिलाफ हुई शिकायत

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की उपलब्धियां

स्थापना से लेकर अब तक जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने 292 फसलों की प्रजातियां विकसित की हैं. केवल पिछले 4 वर्षों में विश्वविद्यालय 28 नई प्रजातियां विकसित कर पाया है. कोरोना काल में जब बाकी सब जगह पर काम बंद था, तब यूनिवर्सिटी ने 13 नई प्रजातियां विकसित की. जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय 24 फसलों की 92 प्रजातियों के बीज देश के 11 राज्यों को सप्लाई करता है. देश का सबसे ज्यादा पृजनक बीज उत्पादन केंद्र इसी विश्वविद्यालय में है. बीज उत्पादन के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर केवल इस यूनिवर्सिटी की 14.5% की भागीदारी है.

जबलपुर। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University) देश के कुछ चुनिंदा कृषि विश्वविद्यालयों में से एक है. लेकिन अब ऐसा लगता है कि यह विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा. पिछले कुछ सालों में सरकार ने इस विश्वविद्यालय की ओर ध्यान नहीं दिया है. सरकार की उदासीनता (Apathy of Government) के कारण विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों को ना तो सातवां वेतनमान (7th Pay Scale) की लाभ मिला है और ना ही विश्वविद्यालय में प्राध्यापकों की भर्ती हुई है. प्रध्यापकों का कहना है कि विश्वविद्यालय की शुरुआत में एक हजार से ज्यादा प्रध्यापक थे, लेकिन वर्तमान स्थिति में केवल 250 ही रह गए है. यदि सरकार यूं ही उदासीन बनी रही, तो एक दिन यह विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा.

विश्वविद्यालय में नई वैज्ञानिकों की भर्ती बंद

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के प्रध्यापकों का कहना है कि यूनिवर्सिटी की स्थापना के समय एक समय एक हजार के लगभग कृषि वैज्ञानिक 9Agricultural Scientist) हुआ करते थे. अब इनकी संख्या मात्र 250 बची है. इनमें से 70 इसी साल रिटायर भी हो जाएंगे. कुछ 2025 में रिटायर हो जाएंगे. 2025 में यूनिवर्सिटी में कुल 100 वैज्ञानिक बचेंगे. लेकि सरकार रिटायर वैज्ञानिकों की जगह नई भर्ती नहीं कर रही है. यदि सरकार यूं ही उदासीन बनी रही, तो एक दिन यह विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा.

बंद होने की कगार पर कृषि विश्वविद्यालय

प्राध्यापकों को नहींं मिला सातवां वेतनमान

प्रध्यापकों का कहना है कि राज्य सरकार को कई बार कृषि कर्मण अवार्ड (Krishi Karman Award) मिला है. इसमें कृषि वैज्ञानिकों की भूमिका सबसे बड़ी है. यदि उन्होंने बाजार में सही किस्म के खाद बीज उपलब्ध नहीं करवाएं होते तो उत्पादन नहीं बढ़ सकता था. सरकार ने अवार्ड तो ले लिया, लेकिन जिन कृषि वैज्ञानिकों की वजह से सरकार को प्रसिद्धि मिली उन वैज्ञानिकों को सरकार सातवां वेतनमान में नहीं दे पाई. जबकि अन्य कॉलेजों के प्रोफेसरों को सातवां वेतनमान दिया जा रहा है.

महंगे खाद से मिलेगी निजात, किसानों के काम आएगी यह शोध, जानें कितना होगा फायदा

नई यूनिवर्सिटी खोलने की कवायद

मध्य प्रदेश सरकार देश की इस बड़ी यूनिवर्सिटी को नए वैज्ञानिक नहीं दे रही है. यहां जो काम कर रहे हैं उनकी सैलेरी नहीं बढ़ा रही है. यह सब इसलिए क्योंकि यह यूनिवर्सिटी जवाहरलाल नेहरू के नाम पर है. इससे इतर सरकार ने इंदौर में अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर एक नई एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की घोषणा कर दी है. सरकार उसमें पैसा बर्बाद कर रही है, लेकिन मौजूदा संस्थान को नहीं बचा रही है.

कृषि शिक्षा की बर्बादी की तैयारी

प्रध्यापकों का कहना है कि जिस तरीके से इंजीनियरिंग कॉलेज गली-गली खोले गए और आज इंजीनियरों की हालत खराब है. यहीं तैयारी कृषि क्षेत्र में भी कर ली गई है. सामान्य यूनिवर्सिटी को कृषि विज्ञान पढ़ाने का अधिकार दिया जा रहा है. शिक्षा सबको मिले इसमें कोई बुराई नहीं, लेकिन कम से कम शिक्षा की गुणवत्ता सही होनी चाहिए. एक कॉलेज के लिए कम से कम 100 एकड़ जमीन की जरूरत होती है. लेकिन 20 से 25 एकड़ जमीन पर यूनिवर्सिटी बनाकर उसमें पढ़ाई करवाई जा रही है.

जबलपुर: आशिक मिजाज प्रोफेसर के खिलाफ हुई शिकायत

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की उपलब्धियां

स्थापना से लेकर अब तक जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने 292 फसलों की प्रजातियां विकसित की हैं. केवल पिछले 4 वर्षों में विश्वविद्यालय 28 नई प्रजातियां विकसित कर पाया है. कोरोना काल में जब बाकी सब जगह पर काम बंद था, तब यूनिवर्सिटी ने 13 नई प्रजातियां विकसित की. जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय 24 फसलों की 92 प्रजातियों के बीज देश के 11 राज्यों को सप्लाई करता है. देश का सबसे ज्यादा पृजनक बीज उत्पादन केंद्र इसी विश्वविद्यालय में है. बीज उत्पादन के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर केवल इस यूनिवर्सिटी की 14.5% की भागीदारी है.

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