जबलपुर। नानाजी देशमुख वेटरिनरी यूनिवर्सिटी के स्कूल का वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक एंड हेल्थ में एक तेंदुए का इलाज चल रहा है. जबलपुर का यह संस्थान मध्य प्रदेश में जंगली जानवरों के इलाज के लिए इकलौता है. यहां न केवल जंगली जानवरों का इलाज किया जाता है बल्कि उनकी फॉरेंसिक रिसर्च भी की जाती है. इस समय एक घायल तेंदुए के इलाज में लेजर थेरेपी का उपयोग किया जा रहा है. यह पहला मौका है, जब किसी तेंदुए का इलाज लेजर थेरेपी से किया जा रहा है.
जंगल में 20 दिन पहले घायल मिला : ये तेंदुआ 20 दिन पहले कान्हा के पास बंजर फॉरेस्ट रेंज से आया था. यहां एक स्कूल के पीछे यह घायल अवस्था में पड़ा हुआ था. इसकी जानकारी फॉरेस्ट रेंजर को मिली और भी इसे सबसे पहले कान्हा टाइगर रिजर्व के अस्पताल में लेकर पहुंचे लेकिन तेंदुआ ज्यादा बुरी स्थिति में था. इसलिए उसे जबलपुर लाया गया. यहां डॉ. शोभा जाबरे के नेतृत्व में एक टीम इस तेंदुए का इलाज कर रही है. डॉ.शोभा जवारे ने बताया कि तेंदुआ के पांव के पास बड़े गहरे घाव थे, जिनमें कीड़े पड़ गए थे.
तेंदुए को एंटीबायोटिक दवाइयां दी : घायल तेंदुआ बहुत आक्रामक नहीं था. इसलिए उसे बिना बेहोश किए हुए ही इन कीड़ों को अलग किया गया और उसके बाद से पहले उसे कुछ एंटीबायोटिक दवाइयां दी गईं. अब उसे लेजर थेरेपी दी जा रही है. यह पहला मौका है जब किसी तेंदुए को लेजर थेरेपी दी जा रही हो. डॉ. शोभा जबरे का कहना है कि लेजर थेरेपी से तेंदुए के घाव जल्दी भर जाएंगे और वह दोबारा से दुरुस्त होकर खड़ा हो जाएगा. फिलहाल तेंदुए की स्थिति खड़े होने की नहीं है. 20 दिन बाद पहली बार वह अपने पीछे के पांव पर खड़ा हुआ.
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इलाज में काफी वक्त लगेगा : वैज्ञानिकों का कहना है कि तेंदुए का केवल खड़ा होना जरूरी नहीं है बल्कि उसकी पूरी तरह से स्वस्थ होना जरूरी है. क्योंकि यदि तेंदुए को दोबारा जंगल में छोड़ा जाता है तो उसे अपना शिकार खुद करना होगा. ऐसी स्थिति में उसकी पूरी तरह से तंदुरुस्त होना जरूरी है. इसलिए अभी तेंदुए का इलाज बहुत दिनों तक चलेगा. एक बार तेंदुआ पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है तो उसे वापस इस जंगल में छोड़ा जाएगा, जहां वह घायल अवस्था में मिला था. डॉ. शोभा जाबरे ने बताया कि तेंदुआ अब धीरे-धीरे यह समझ गया है कि उसे इलाज दिया जा रहा है. इसलिए वह इतना आक्रमक नहीं रहा और अपने इलाज में सहयोग कर रहा है.