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हॉकी में राजनीतिक दखल से अच्छे खिलाड़ियों को नहीं मिल रहा मौका, जानें क्या कहते हैं जानकार

हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है, इसके बावजूद भारत हॉकी के क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है. इसका बड़ा कारण प्रतिभावान खिलाड़ियों को मौका नहीं मिल पाना. हॉकी कोच का कहना है कि इसका बड़ा कारण राजनीतिक दखल है. राजनीतिक दखल के कारण गलत खिलाड़ियों का चयन हो जाता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है.

hockey ground
हॉकी मैदान
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Published : Oct 4, 2021, 6:31 AM IST

Updated : Oct 4, 2021, 7:13 AM IST

जबलपुर। हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल (National Game Hockey) है और ओलंपिक में हॉकी ने एक बार फिर मेडल जीता है, लेकिन स्थानीय स्तर पर हॉकी के हालात ठीक नहीं है. मैदान खाली पड़े हैं और खिलाड़ी खेलने नहीं आ रहे हैं. ऐसे में भारतीय हॉकी टीम (Indian Hockey Team) को प्रतिभावान खिलाड़ी कैसे मिलेंगे.

राजनीतिक दखल पर क्या कहते हैं कोच.

कैसे बनती है राष्ट्रीय टीम
हॉकी टीम स्तर पर खेली जाती है. इसमें सबसे पहला और छोटा पड़ा स्कूल लेवल टूर्नामेंट (School Level Tournament) होता है, जहां सभी निजी और सरकारी स्कूलों के बच्चों को खेलने का मौका दिया जाता है. वह अपनी टीम बनाकर खेलते हैं. इनमें से खिलाड़ियों का चयन किया जाता है. चयनित खिलाड़ी संभाग स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता में अपना लोहा मनवाते हैं. इसके बाद राज्य स्तरीय और फिर राष्ट्रीय स्कूल चैंपियनशिप भी होती है. इसमें से अच्छे खिलाड़ियों का चयन किया जाता है.

टैलेंट सर्च अभियान से एकेडमी खोजती है खिलाड़ी
विश्वविद्यालयों में भी खेलकूद प्रतियोगिताएं होती हैं. इनमें कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्र आपस में खेलते हैं, जो अच्छे खिलाड़ी होते हैं उनकी एक टीम बनाई जाती है. यह टीम यूनिवर्सिटी लेवल टूर्नामेंट (University Level Tournament) में खेलती है. इनका भी एक राष्ट्रीय टूर्नामेंट होता है. खिलाड़ियों को खोजने की तीसरी प्रक्रिया एकेडमी के जरिए होती है. एकेडमी 14 साल से कम के बच्चों को टैलेंट सर्च (Talent Search for Hockey) के माध्यम से खोजते हैं. इन्हें एकेडमी में फ्री ऑफ कॉस्ट ट्रेनिंग (Hockey Training) दी जाती है. यहां से निकले हुए खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम के दावेदार होते हैं. इसके साथ ही स्थानीय खेल विभाग कुछ ऐसे बच्चों को भी तैयार करता है, जो स्कूल यूनिवर्सिटी और एकेडमी नहीं जा सकते, उन्हें कोचिंग दी जाती है.

हॉकी मैदान
हॉकी का मैदान.

हॉकी में राजनीतिक दखलअंदाजी
ज्यादातर खेल टूर्नामेंट सरकार से पैसा लेकर फेडरेशन और एसोसिएशन करते हैं. इसके साथ ही स्कूल और कॉलेजों में जो टीम खेलती हैं उसमें भी राजनीतिक दखल (Political Interfere) से खिलाड़ी तय किए जाते हैं. जबलपुर के खेल पर शोध करने वाले हॉकी के कोच डॉक्टर सुनील दत्त लखेरा का कहना है कि जो सिफारिश से आता है. वह अच्छा नहीं होता, जिसके चलते टीम में दमदार खिलाड़ियों का चयन नहीं हो पाता.

नहीं मिल रहे खिलाड़ी
राजनीतिक दखल की वजह से अच्छे खिलाड़ी खेल भी छोड़ देते हैं. अब जबकि जबलपुर जैसे शहर में हॉकी के कई बड़े अत्याधुनिक सुविधा से सुसज्जित मैदान होने के बाद भी इनमें खेलने वाले खिलाड़ी नहीं हैं. रानीताल स्टेडियम में चार करोड़ की लागत से एस्ट्रो टर्फ बिछाया गया है. इसके अलावा रेलवे बिजली विभाग और फैक्ट्री के पास भी बड़े-बड़े मैदान हैं, लेकिन ज्यादातर मैदानों में गिने-चुने खिलाड़ी ही खेलते नजर आ रहे हैं.

खिलाड़ियों को भविष्य में मौके
ऐसा नहीं है कि खिलाड़ियों को भविष्य में मौके नहीं मिलते. यदि आप सबसे अच्छे खिलाड़ी हैं, तो आप राष्ट्रीय टीम में शामिल हो सकते हैं. यदि उससे कम पर हैं तो एक खिलाड़ी कोच बन सकता है, फिजियोथैरेपिस्ट हो सकता है, शारीरिक शिक्षा का अध्ययन कर ले तो स्कूलों में भी नौकरी मिल सकती है. इसके बाद भी ऐसा लगता है कि मैदान में खेल खेलने का चलन ही घट गया है.

ऐसे तैयार होंगे शिवराज के ओलंपियन! हॉकी प्लेग्राउंड की किल्लत से जूझ रहे सतना के खिलाड़ी

इसमें सबसे बड़ी भूमिका निजी स्कूलों की है. यहां खेलों के नाम पर पैसा तो लिया जाता है, लेकिन सुविधाएं नहीं दी जाती है. सरकारी स्कूलों में भी पीटीआई शिक्षक सिर्फ नौकरी कर रहे हैं. उन्हें खिलाड़ी निकालने का कोई जोश और जुनून नहीं है. इसी के चलते सुविधाएं होने के बाद भी खिलाड़ी नहीं निकल रहे हैं.

जबलपुर। हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल (National Game Hockey) है और ओलंपिक में हॉकी ने एक बार फिर मेडल जीता है, लेकिन स्थानीय स्तर पर हॉकी के हालात ठीक नहीं है. मैदान खाली पड़े हैं और खिलाड़ी खेलने नहीं आ रहे हैं. ऐसे में भारतीय हॉकी टीम (Indian Hockey Team) को प्रतिभावान खिलाड़ी कैसे मिलेंगे.

राजनीतिक दखल पर क्या कहते हैं कोच.

कैसे बनती है राष्ट्रीय टीम
हॉकी टीम स्तर पर खेली जाती है. इसमें सबसे पहला और छोटा पड़ा स्कूल लेवल टूर्नामेंट (School Level Tournament) होता है, जहां सभी निजी और सरकारी स्कूलों के बच्चों को खेलने का मौका दिया जाता है. वह अपनी टीम बनाकर खेलते हैं. इनमें से खिलाड़ियों का चयन किया जाता है. चयनित खिलाड़ी संभाग स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता में अपना लोहा मनवाते हैं. इसके बाद राज्य स्तरीय और फिर राष्ट्रीय स्कूल चैंपियनशिप भी होती है. इसमें से अच्छे खिलाड़ियों का चयन किया जाता है.

टैलेंट सर्च अभियान से एकेडमी खोजती है खिलाड़ी
विश्वविद्यालयों में भी खेलकूद प्रतियोगिताएं होती हैं. इनमें कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्र आपस में खेलते हैं, जो अच्छे खिलाड़ी होते हैं उनकी एक टीम बनाई जाती है. यह टीम यूनिवर्सिटी लेवल टूर्नामेंट (University Level Tournament) में खेलती है. इनका भी एक राष्ट्रीय टूर्नामेंट होता है. खिलाड़ियों को खोजने की तीसरी प्रक्रिया एकेडमी के जरिए होती है. एकेडमी 14 साल से कम के बच्चों को टैलेंट सर्च (Talent Search for Hockey) के माध्यम से खोजते हैं. इन्हें एकेडमी में फ्री ऑफ कॉस्ट ट्रेनिंग (Hockey Training) दी जाती है. यहां से निकले हुए खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम के दावेदार होते हैं. इसके साथ ही स्थानीय खेल विभाग कुछ ऐसे बच्चों को भी तैयार करता है, जो स्कूल यूनिवर्सिटी और एकेडमी नहीं जा सकते, उन्हें कोचिंग दी जाती है.

हॉकी मैदान
हॉकी का मैदान.

हॉकी में राजनीतिक दखलअंदाजी
ज्यादातर खेल टूर्नामेंट सरकार से पैसा लेकर फेडरेशन और एसोसिएशन करते हैं. इसके साथ ही स्कूल और कॉलेजों में जो टीम खेलती हैं उसमें भी राजनीतिक दखल (Political Interfere) से खिलाड़ी तय किए जाते हैं. जबलपुर के खेल पर शोध करने वाले हॉकी के कोच डॉक्टर सुनील दत्त लखेरा का कहना है कि जो सिफारिश से आता है. वह अच्छा नहीं होता, जिसके चलते टीम में दमदार खिलाड़ियों का चयन नहीं हो पाता.

नहीं मिल रहे खिलाड़ी
राजनीतिक दखल की वजह से अच्छे खिलाड़ी खेल भी छोड़ देते हैं. अब जबकि जबलपुर जैसे शहर में हॉकी के कई बड़े अत्याधुनिक सुविधा से सुसज्जित मैदान होने के बाद भी इनमें खेलने वाले खिलाड़ी नहीं हैं. रानीताल स्टेडियम में चार करोड़ की लागत से एस्ट्रो टर्फ बिछाया गया है. इसके अलावा रेलवे बिजली विभाग और फैक्ट्री के पास भी बड़े-बड़े मैदान हैं, लेकिन ज्यादातर मैदानों में गिने-चुने खिलाड़ी ही खेलते नजर आ रहे हैं.

खिलाड़ियों को भविष्य में मौके
ऐसा नहीं है कि खिलाड़ियों को भविष्य में मौके नहीं मिलते. यदि आप सबसे अच्छे खिलाड़ी हैं, तो आप राष्ट्रीय टीम में शामिल हो सकते हैं. यदि उससे कम पर हैं तो एक खिलाड़ी कोच बन सकता है, फिजियोथैरेपिस्ट हो सकता है, शारीरिक शिक्षा का अध्ययन कर ले तो स्कूलों में भी नौकरी मिल सकती है. इसके बाद भी ऐसा लगता है कि मैदान में खेल खेलने का चलन ही घट गया है.

ऐसे तैयार होंगे शिवराज के ओलंपियन! हॉकी प्लेग्राउंड की किल्लत से जूझ रहे सतना के खिलाड़ी

इसमें सबसे बड़ी भूमिका निजी स्कूलों की है. यहां खेलों के नाम पर पैसा तो लिया जाता है, लेकिन सुविधाएं नहीं दी जाती है. सरकारी स्कूलों में भी पीटीआई शिक्षक सिर्फ नौकरी कर रहे हैं. उन्हें खिलाड़ी निकालने का कोई जोश और जुनून नहीं है. इसी के चलते सुविधाएं होने के बाद भी खिलाड़ी नहीं निकल रहे हैं.

Last Updated : Oct 4, 2021, 7:13 AM IST
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