जबलपुर। गाय और गोशाला के नाम पर सियासत तो खूब होती है, लेकिन गोशाला की वीभत्स तस्वीर राजनीति के खेल से पर्दा उठाने के लिए काफी है. जबलपुर शहपुरा के गांव बड़खेरा के गोशाला की हकीकत जानकर आप दंग और परेशान हो जाएंगे. यहां गायों की भूख से मौत हो रही है और संवेदनहीनता ऐसी है कि गाय के मृत शरीर को दफनाया भी नहीं जा रहा, बल्कि आसपास के कुत्ते गाय के शवों को नोंच रहे हैं. देखिए मध्यप्रदेश में मृत्युशालाओं में तब्दील होती गोशालाओं की हकीकत उजागर करती ईटीवी भारत की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट.
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डेढ़ महीने में 15 गायों की मौत
जबलपुर के शहपुरा के गांव बड़खेरा में चलने वाली गोशाला में एक के बाद एक दर्जन भर से ज्यादा गायों की दर्दनाक मौत हुई है. बावजूद इसके मौतों की रोकथाम के लिए कोई भी कठोर कदम नहीं उठाए गए हैं. दरअसल बडखेरा गांव में संचालित होने वाली सिद्धवन गोशाला में एक नहीं बल्कि दर्जन भर से ज्यादा गाय मौत के मुंह में समा चुकी है. चौंकाने वाली बात तो ये है कि अब तक 15 से ज्यादा गायों की मौत (15 cows died of hunger) के बाद उनका अंतिम संस्कार तक नहीं किया जा रहा है.
कुत्ते नोंच रहे गायों के मृत शरीर
गाय को माता के रूप में पूजा जाता है. लेकिन जबलपुर के इस गोशाला में कुव्यवस्था का ऐसा आलम है (mismanagement in jabalpur cowshed) कि गायों को मरने के बाद भी दुर्गति झेलनी पड़ रही है. मरी हुई गायों को दफनाया तक नहीं जा रहा, ऐसे में आसपास के कुत्ते इन्हें नोंच-नोंच कर अपना पेट भर रहे हैं. कुत्तों द्वारा गायों के मृत शरीर को नोंचने का दृश्य आपको झकझोर सकता है, लेकिन मध्य प्रदेश की सत्ता में बैठी शिवराज सरकार के नुमाइंदों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.
गोशाला की आधी राशि का गबन (scam in cowshed amount)
सरकार भले ही गोशालाओं के संचालन के लिए भरपूर आर्थिक मदद का दावा करें, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल विपरीत है. सिद्धवन गोशाला की बात करें तो बीते साल में 1 लाख 40 हज़ार और 94 रुपए की मदद दो किश्तों में गौशाला के संचालन के लिए भेजी गई थी, लेकिन सरपंच ने गोशाला का संचालन करने वाले समूह को महज 75 हजार की रकम ही जारी की है. आरोप है कि बाकी रकम सरपंच खुद ही डकार गया, जिसके चलते गायों को पर्याप्त मात्रा में चारा नहीं मिल पाया.
कर्मचारियों को भी भुगतान नहीं
सिद्धवन गौशाला के संचालन का ज़िम्मा खेरमाई स्व सहायता समूह को दिया गया है समूह से जुड़ी महिलाएं गौशाला के संचालन में अपना योगदान तो दे रही हैं लेकिन सरकार द्वारा जारी पूरी रकम न मिलने से व्यवस्थाएं बेपटरी हो गई हैं. खेरमाई स्व सहायता समूह की महिलाओं का कहना है कि कम राशि मिलने से गोशाला का संचालन ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है, यहां तक की गोशाला में काम करने वाले मज़दूरों तक को मेहनताना देने के लाले पड़ गए हैं.
कहने को तो बड़खेरा गांव के सिद्धवन गोशाला में गायों की देखभाल और उन्हें उनके इलाज के लिए एक डॉक्टर की तैनाती की गई है. इसके बावजूद न तो गायों को समय पर इलाज मुहैया मिल पा रहा है और न ही लगातार होती मौतों को रोकने के लिए ही कोई कारगर कदम उठाए जा रहे हैं. हैरानी तो इस बात की है कि गायों के इलाज और मौतों से संबंधित आंकड़ों से भरे रजिस्टर को भी गोशाला से गायब कर दिया गया है.
प्रशासन ने दिए जांच के आदेश
27 लाख की लागत से बनी सिद्धवन स्थित गोपाला गोशाला का शुभारंभ अक्टूबर 2010 में धूमधाम के साथ हुआ था, कुछ सालों तक संचालन सही ढंग से हुआ लेकिन फिलहाल यहां अव्यवस्था का आलम दिखता है. गोशाला की वीभत्स तस्वीरों के सामने आने के बाद प्रशासन भी हरकत में आ गया है. शहपुरा जनपद के अधिकारियों ने आनन-फानन में गोशाला का निरीक्षण किया. जनपद पंचायत के अधिकारियों ने गोशाला से तमाम रिकॉर्ड तलब करते हुए जांच के आदेश दे दिए हैं. अफसरों का दावा है कि जांच रिपोर्ट के मिलने के बाद दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
विधायक ने पहले ही किया था आगाह
ऐसा नहीं है कि ग्राम पंचायत बरखेड़ा में संचालित गोपाला गोशाला में सालों से चली आ रही अनियमितताओं की किसी को खबर नहीं है. क्षेत्रीय विधायक संजय यादव ने तो इस पूरे मामले में पहले से ही जिला पंचायत और संबंधित विभागों को आगाह कर दिया था, लेकिन किसी तरह की कार्रवाई नहीं किए जाने के चलते आज यह गोशाला मृत्युशाला में तब्दील होती जा रही है. क्षेत्रीय विधायक संजय यादव ने इस पूरे मामले में सरकार से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया है, उनका आरोप है कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के राज में इंसान से लेकर जानवर तक भूख से तड़प-तड़प कर मौत के मुंह में समा रहे हैं.