सागर: मध्य प्रदेश का किसान अब धीरे-धीरे परंपरागत खेती की तरफ से आधुनिक खेती की ओर बढ़ रहा है. यहां के प्रगतिशील युवा किसान आकाश चौरसिया पिछले चार-पांच साल से काले आलू की खेती करते आ रहे हैं. जिसके चलते वो अपनी लागत से चार गुना मुनाफा कमा रहे हैं. आकाश चौरसिया की पहल के चलते अब कई किसान काले आलू की खेती करने लगे हैं. काला आलू वैसे तो दक्षिण अमेरिकी कंद है, लेकिन इसके खास गुणों के कारण पिछले कुछ सालों में भारत में इसकी खेती में काफी इजाफा हुआ है.
सामान्य आलू से इसकी कीमत दो और तीन गुनी मिलने के कारण किसान काला आलू उगा रहे हैं. शुगर और हृदय रोग के मरीजों के लिए फायदेमंद होने के कारण इसकी काफी मांग है. अगर किसान लेयर फार्मिंग माॅडल के साथ इसकी खेती करते हैं, तो आलू के साथ एक क्रीपर फसल भी उगा सकते हैं. जिससे उन्हें और ज्यादा मुनाफा होगा.
दक्षिण अमेरिका में उगता है ये आलू
प्रगतिशील युवा किसान आकाश चौरसिया बताते हैं कि "हम चार-पांच साल से कपूरिया में हमारे खेत में प्रयोग के तौर पर काला आलू उगा रहे हैं. ये मध्य प्रदेश सहित बुंदेलखंड का पहला प्रयोग था. ये मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिका में उगने वाला कंद है. इसके गुण के कारण इसकी मांग काफी बढ़ रही है. इसमें जिब्रालिक अमाइनो और आयरन की मात्रा अधिक होती है. ये शुगर और हृदयरोग के मरीजों के लिए काफी अच्छा होता है. इसके गुणों के कारण इसकी मांग काफी ज्यादा है.
काले आलू की ऐसे करें खेती
उन्होंने बताया कि किसान अगर काला आलू उगाना चाहते हैं, तो 8-10 क्विटंल एक एकड़ में बीज लगता है. अगर प्राकृतिक तरीके से कर रहे हैं, तो 80 से 100 क्विटंल तक उत्पादन होता है. मार्केट में कीमत 70 से 80 किलोग्राम के आसपास होती है. अगर उत्पादन 80 क्विटंल भी होता है, तो 4 से साढे़ 4 लाख तक कमाई हो सकती है. ये किसान के लिए फायदेमंद है, समाज के लिए कई तरह की बीमारियों के लिए फायदेमंद है. इसको अलग-अलग रैसिपी में उपयोग करते हैं."
लागत और मुनाफा
काले आलू उगाने की लागत देखी जाए, तो 8-10 क्विटंल बीज लगता है. लगभग 70-80 हजार रुपए बीज की कीमत होती है. 10 से 15 हजार रुपए के आसपास कमपोस्ट वगैरह की कीमत मान लीजिए. इसके अलावा 10 हजार अन्य खर्चे मान लीजिए. इस तरह करीब 1 लाख रुपए इसकी लागत आती है. लगभग 5 लाख रुपए की कीमत की फसल बनती है. इस तरह किसान को 4 लाख का मुनाफा सीधा होता है.
लेयर फार्मिंग से करें ज्यादा कमाई
आकाश चौरसिया बताते हैं कि "अगर हम मल्टीलेयर फार्मिंग के जरिए लगाते हैं, तो हम इसमें दो फसले ले सकते हैं. नीचे हम आलू ले लेते हैं और ऊपर क्रीपर (लता वाली फसल) लगा देते हैं. क्रीपर आलू को पाला से बचाता है और कई तरह की बीमारियों से बचाता है. हमें एक और फसल मिल जाती है. ये महज 80 दिन में पकने वाली फसल होती है."
कैसे मिलेगी बाजार में कीमत
किसान को बेचने के लिए उन लोगों से जुड़ना पडे़गा. जो लोग पहले से इसका उत्पादन करते हैं. इसकी मांग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी अच्छी है. यूरोप में तो काले आलू के पावडर की भी मांग है. आकाश चौरसिया इसे डीहाइड्रैट करके पावडर बनाते हैं. आलू को उबालकर छिलका निकालकर ड्रायर में ड्राई करके इसको पीसकर पावडर बनाते हैं. पावडर लगभर 450 रुपए किलो के आसपास जाता है.
- बुंदेलखंड में उग रहा अमेरिका का काला सोना, इस काले आलू से मोटी कमाई कर रहे किसान
- मालवा में 'काले सोने' पर सफेद फूलों की चादर, हथियारों के साथ पहरेदारी शुरू
उन्होंने कहा कि इसका कई तरह की यूरोपियन रैसिपी पिज्जा, बर्गर और कई तरह के चाइनीज फूड में इसका उपयोग होता है. किसान भाईयों को उन लोगों से जुड़ना पडे़गा, जो इसमें पहले से काम कर रहे हैं. खुले बाजार में इसको बेचने जाएंगे, तो इसकी कीमत नहीं मिलेगी, क्योंकि इसकी गुणवत्ता और मांग के बारे में कम लोगों को पता है. अभी इसका बाजार धीरे-धीरे बढ़ रहा है, लेकिन उन लोगों से जुड़कर काम करें, जो पहले से ये काम कर रहे हैं."