जबलपुर। कोरोना संक्रमण का असर नागपंचमी के त्योहार पर भी दिखाई दे रहा है. आमतौर पर नागपंचमी के दिन नागदेवता की पूजा करने के लिए सैकड़ों की संख्या में भक्त पहुंचते थे, लेकिन इस बार आज सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है.
तिलवारा पुल के पास नर्मदा नदी के किनारे बसे नाग मंदिर में आज कुछ ही श्रद्धालु ही पहुंचे, इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां ऋषि मार्कंडेय ने तप किया था और तब से यह जगह सर्प पूजा से जुड़ी हुई है. यहां नाग के पूजा से जुड़े कई मंदिर हैं. ज्योतिष के अनुसार कुछ लोगों को कालसर्प योग होता है. ऐसा कहा जाता है कि यहां पर सांप की पूजा करने से कालसर्प योग खत्म हो जाता है, इसलिए आज के दिन हर साल यहां बड़ी भीड़ हुआ करती थी लेकिन इस साल मंदिर में श्रद्धालु नहीं दिखाई दिए.
ये है नागपंचमी के पीछे की कहानी
स्वामी विचित्र ने नागपंचमी का महत्व बताते हुए कहा कि आज का दिन हिंदू मान्यताओं के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. हिंदू पुराणों में एक कहानी है कि राजा परीक्षित को तक्षक नाम के एक सांप ने काट दिया था, राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तब यह संकल्प लिया था कि वह पूरी दुनिया से सांपों को नष्ट कर देंगे. तक्षक बचकर भाग निकला और इंद्र के सिंहासन से लिपट गये, लेकिन जन्मेजय के यज्ञ की वजह से इंद्र ने उन्हें जन्मेजय को सौंप दिया. तक्षक ने अपने किए की माफी मांगी और जनमेजय ने उसे छोड़ दिया. ऐसा माना जाता है कि नाग जाति के जो लोग हैं उसी राजा जन्मेजय के वंशज हैं और तब से लेकर भी अब तक नाग की पूजा करते हैं और प्रकृति के सुंदर प्राणी को बचाने की कोशिश करते हैं.