जबलपुर। केंद्र सरकार छावनी भूमियों के लिए छावनी भूमि प्रशासन नियम 2021 ला रही है. इसका मसौदा तैयार हो गया है. इस पर छावनी के अंदर रहने वाले किसानों, भूमि स्वामियों और छावनी परिषदों से सुझाव मांगे गए हैं. छावनी की भूमि पर खेती करने वाले किसानों का कहना है कि भारत सरकार का यह नियम अंग्रेजों के नियम से भी खराब है. सरकार हमें अपनी जमीन से बेदखल करना चाहती है. हम सरकार के इस नियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.
इस नियम के मसौदे से जुड़े हुए कागज जबलपुर पहुंचे, तो जबलपुर के किसानों की होश उड़ गए. जबलपुर कैंट बोर्ड (जबलपुर छावनी परिषद) के आसपास डेढ़ सौ से ज्यादा किसान हैं. जिनके पास लगभग 200 एकड़ जमीन है. यह लोग इस जमीन पर सदियों से काबिज हैं. कुछ लोगों के पास सन 1850 के समय से जमीन पर कब्जे के सबूत भी हैं. बहुत सारे लोगों के पास 1800 से 1900 के आसपास की रजिस्ट्रियां हैं. इन लोगों का दावा है कि सदियों से इसी जमीन पर रहते आए हैं.
अंग्रेजों ने भी किसानों को बेदखल करने का बनाया था नियम
दरअसल कैंट बोर्ड (जबलपुर छावनी परिषद) में कभी किसानों को जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया. इन्हें या तो कब्जेधारी कहा गया या फिर पट्टेधारी. अंग्रेजों के समय 1924 में छावनी भूमि प्रशासन नियम बनाया गया था. उस नियम के तहत भी छावनी क्षेत्र में आने वाली जमीन पर रहने वाले किसानों को लगभग बेदखल करने के आदेश दिए गए थे. तब लोगों ने विरोध किया तो 1926 में इस नियम को बदल दिया गया. 1926 से 2021 तक छावनी क्षेत्र में रहने वाले किसान आसानी से खेती कर पा रहे थे, हालांकि इन्हें जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला था. लेकिन कलेक्टर इनके पट्टे बना देता था. इन लोगों का गुजर-बसर चल रहा था.
मोदी सरकार ने कैंट बोर्ड को दिए सभी अधिकार
छावनी भूमि प्रशासन नियम 2021 में मोदी सरकार ने इन किसानों को लगभग बेदखल कर दिया है. जो नए नियम बनाए जा रहे हैं उसमें छावनी क्षेत्र में रहने वाले किसानों को मात्र 4 साल का पट्टा मिलेगा. वह भी कैंट बोर्ड देगा. इसकी कोई अपील नहीं की जा सकेगी. यदि कैंट बोर्ड पट्टा निरस्त कर देता है, तो वह जमीन किसान की बजाय कैंट की हो जाएगी. पट्टा केवल 4 सालों के लिए दिया जाएगा. इसमें कलेक्टर और स्थानीय अदालतें दखल नहीं कर पाएगी.
किसानों के बेदखल कर देगा कैंट बोर्ड
किसानों का कहना है कि यदि यह नियम आ गया तो कैंट बोर्ड किसी के पट्टे रिन्यू नहीं करेगा. जब चाहेगा तब किसानों को बेदखल कर देगा. इसके साथ ही अपनी ही जमीनों पर किसान ना तो ट्यूबेल करवा सकता है, ना कोई निर्माण कार्य कर सकता है. ना इसे बेच सकता है, ना इसे खरीद सकता है. किसानों का कहना है कि इससे अच्छा तो अंग्रेजों का ही कानून था. कम से कम उसकी वजह से बीते 100 सालों से इस जमीन से गुजर बसर तो कर रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे किसान
ऐसा नहीं है कि जबलपुर में रक्षा मंत्रालय के पास जमीन नहीं है. रक्षा मंत्रालय के पास बड़ी तादाद में खाली जमीनें हैं. शहर के आसपास बड़ी तादाद में सरकारी जमीन भी खाली है. लेकिन इसके बावजूद कैंट बोर्ड के किसानों को उनकी जमीन से बेदखल करना लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन है. लेकिन इन किसानों के पास अपनी आवाज को उठाने के लिए कोई जरिया नहीं है. इन लोगों का कहना है कि यदि सरकार नहीं मानी तो वे सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाएंगे.