नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने अपनी ही प्रक्रिया अपना ली है. साथ ही कोर्ट ने विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार करने पर उनसे कई सवाल पूछे, जिसमें पूछा गया कि राज्यपाल कितने समय तक विधेयकों को मंजूरी नहीं देंगे और उसके बाद उनसे क्या करने की उम्मीद की जाती है?
यह मामला जस्टिस जे बी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ के समक्ष आया. पीठ तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार करने पर राज्य विधानसभा और राज्यपाल के बीच लंबे समय से चल रहे टकराव के बारे में बताया गया था.
पीठ ने कहा कि राज्यपाल द्वारा अपनी मंजूरी न देने का कोई मतलब नहीं बनता और वह विधानसभा से विधेयकों पर पुनर्विचार करने के लिए भी नहीं कहेंगे. जस्टिस पारदीवाला ने कहा, "ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी ही प्रक्रिया अपना ली है." राज्यपाल का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि वह इस धारणा को दूर करेंगे.
'अनुच्छेद 200 राज्यपाल को देता है अधिकार'
संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृत करने या रोकने का अधिकार देता है. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस मामले में कुलाधिपति नियुक्ति प्राधिकारी हैं और यूजीसी के नियमों के अनुसार जो राज्यपाल के लिए बाध्यकारी हैं.उन्होंने ने तर्क दिया कि विधेयक राज्यपाल को स्टेट यूनिवर्सिटी के चांसलर के रूप में हटा रहे थे और यह एक महत्वपूर्ण मामला था.
एजी ने कहा कि ये विधेयक नए कानूनों के बारे में नहीं हैं, बल्कि केवल मौजूदा कानूनों में संशोधन के बारे में हैं. इस पर पीठ ने कहा कि राज्यपाल सरकार का ध्यान आकर्षित कर सकते थे और "वे कह सकते थे कि ए, बी, सी,... आपको (समीक्षा करने की) आवश्यकता है. जस्टिस पारदीवाला ने अटॉर्नी जनरल से पूछा, "इस निर्णय से संबंधित कुछ रिकॉर्ड दिखाएं कि मैंने सहमति नहीं दी है, अन्यथा कोर्ट कैसे समझ पाएगा कि उनके लिए क्या मायने रखता था. पीठ ने जोर देकर कहा कि वह देखना चाहेगी कि राज्यपाल के निर्णय का आधार क्या था. "
क्यों लिया विधेयकों पर अपनी मंजूरी नहीं देने का फैसला?
दिन भर चली सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पारदीवाला ने अटॉर्नी जनरल से वह मटेरियल दिखाने को कहा, जिसके आधार पर राज्यपाल ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर अपनी मंजूरी नहीं देने का फैसला किया.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि विवाद मुख्य रूप से इस बारे में नहीं है कि राज्यपाल ने अनुच्छेद 200 के आदेश का उल्लंघन नहीं किया है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकार चाहती है कि सर्वोच्च न्यायालय कानूनों (विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों) की वैधता और वैधानिकता पर अपनी मंजूरी की मुहर लगाए।.
जस्टिल पारदीवाला ने कहा कि अटॉर्नी जनरल का मुख्य तर्क यह प्रतीत होता है कि जब राज्यपाल ने स्वीकृति रोकने का फैसला किया, तो उन्होंने कभी भी विधेयकों को राज्य सरकार को वापस भेजने के बारे में नहीं सोचा. पीठ ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि राज्यपाल कितने समय तक विधेयकों पर अपनी स्वीकृति देने से रोकेंगे और उसके बाद उनसे क्या करने की उम्मीद की जाती है?