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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम: संशोधन में जवाब के लिये कोर्ट से मांगी मोहलत - चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक

जबलपुर कोर्ट में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन किये जाने को चुनौती देने वाले मामले में मंगलवार को हुई सुनवाई को आगे बढ़ा दिया गया है.

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Published : Feb 23, 2021, 9:15 PM IST

जबलपुर। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन किये जाने को चुनौती देने वाले मामले में मंगलवार को सुनवाई बढ़ गई. चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ के सामने सरकार की ओर से जवाब के लिये समय की राहत मांगी गई. जिस पर न्यायालय ने मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिये बढ़ा दी है.

यह मामला एनयूएमएम के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाथ पांडे की ओर से दायर किया गया है. जिसमें कहा गया है कि भ्रष्ट लोक सेवकों पर कार्रवाई के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम बनाया गया था. केन्द्र व राज्य सरकार की जांच एजेंसिया भ्रष्ट लोक सेवकों के खिलाफ कार्रवाई करने में स्वतंत्र थी. केन्द्र सरकार द्वारा जुलाई 2018 को एक्ट में संशोधन किया गया है. जिसके बाद जांच एजेन्सियों को भ्रष्ट लोक सेवकों पर कार्रवाई के लिए विभागीय अनुमत्ति लेना आवश्यक है.

याचिका में कहा गया है कि प्रदेश में कई लोक सेवकों के खिलाफ जांच सालों से लंबित है. संशोधित एक्ट के कारण जांच एजेन्सी विभागीय अनुमति के बिना लोक सेवक के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती है. विभागीय अनुमति नहीं मिलने के कारण लंबित शिकायत पर कार्रवाई नहीं हो सकेगी. इस नियम से जांच एजेन्सियों की कार्रवाई प्रभावित होगी. मामले की विगत 15 जनवरी को हुई प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने केन्द्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिये थे. याकिचाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पैरवी की.

जबलपुर। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन किये जाने को चुनौती देने वाले मामले में मंगलवार को सुनवाई बढ़ गई. चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ के सामने सरकार की ओर से जवाब के लिये समय की राहत मांगी गई. जिस पर न्यायालय ने मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिये बढ़ा दी है.

यह मामला एनयूएमएम के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाथ पांडे की ओर से दायर किया गया है. जिसमें कहा गया है कि भ्रष्ट लोक सेवकों पर कार्रवाई के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम बनाया गया था. केन्द्र व राज्य सरकार की जांच एजेंसिया भ्रष्ट लोक सेवकों के खिलाफ कार्रवाई करने में स्वतंत्र थी. केन्द्र सरकार द्वारा जुलाई 2018 को एक्ट में संशोधन किया गया है. जिसके बाद जांच एजेन्सियों को भ्रष्ट लोक सेवकों पर कार्रवाई के लिए विभागीय अनुमत्ति लेना आवश्यक है.

याचिका में कहा गया है कि प्रदेश में कई लोक सेवकों के खिलाफ जांच सालों से लंबित है. संशोधित एक्ट के कारण जांच एजेन्सी विभागीय अनुमति के बिना लोक सेवक के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती है. विभागीय अनुमति नहीं मिलने के कारण लंबित शिकायत पर कार्रवाई नहीं हो सकेगी. इस नियम से जांच एजेन्सियों की कार्रवाई प्रभावित होगी. मामले की विगत 15 जनवरी को हुई प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने केन्द्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिये थे. याकिचाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पैरवी की.

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