इंदौर। कोरोना वायरस के संक्रमणकाल से पैदा हुई परिस्थितियों ने मजदूरों को खून के आंसू रोने पर मजबूर दर दिया है. लॉकडाउन में रोजगार छिन गया. अब पलायन का दर्द इन्हें जीने नहीं दे रहा है. भूख- प्यासे मजदूर अंतहीन सफर पर निकल चुके हैं, कैसे घर पहुंचेंगे नहीं पता, बस चले जा रहे हैं. सरकारी दावें आगरा- मुंबाई हाईवे पर दम तोड़ने नजर आ रहे हैं. गर्मी के मौसम में आसमान से बरस रही आग पर पेट की आग भारी पड़ रही है.
छोटे- छोटे बच्चों को झुलसाती गर्मी में पैदल चलता देख, ऐसा लग रहा है, जैसे सरकार, सत्ता और सिस्टम कागजों में सिमट कर रह गया हो. हादसों का शिकार हुए पलायन कर रहे तमाम मजदूरों को कोरोना ने नहीं बल्की अव्यवस्था ने मार डाला. लॉकडाउन के लंबा खिंचने से इनकी माली हालत भी खराब हो चुकी है. पलायन के इस दर्द को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. पलायन कर रहे मजदूरों की आंखें में जो दर्द नजर आ रहा है, उसको देखकर यही लगता है, जैसे ये बदनसीब पूछ रहे हों. कि 'साहब मेरा क्या कसूर'.