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गरीबी की गठरी लिए नंगे पांव सड़क नाप रहे मजदूर, 'स्पेशल पैकेज' से भर रहे पेट

लॉकडाउन ने गरीबों-मजदूरों को इतना मजबूर कर दिया है कि अब ये मौत से टकराने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं, दूसरे राज्यों में मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने वाले मजदूर लॉकडाउन में दाने-दाने को मोहताज हैं, ऐसे में वो कोरोना फैलने से भी नहीं डर रहे हैं क्योंकि उनको पता है कि कोरोना से बचे भी तो भूख मार डालेगी.

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Published : May 17, 2020, 8:48 PM IST

Updated : May 17, 2020, 9:00 PM IST

इंदौर। कोरोना वायरस के खौफ ने पूरी दुनिया को दहलीज के अंदर कैद कर दिया है, बाजारों में सन्नाटा है, सड़कें सूनी पड़ी हैं, जिधर भी नजर घुमाओ, लटकते ताले दिख जाते हैं, ऐसे में उन लोगों का बुरा हाल है, जो रोजाना कुआं खोदते थे और तब रोजाना पानी पीते थे, ऐसे में भूख-प्यास से व्याकुल मजदूर कायदे कानून को ताक पर रख सिर पर कफन बांधकर निकल पड़े हैं.

वादे से पेट भर रहे मजदूर

चिलचिलाती धूप में नंगे पांव सड़क नापते प्रवासी मजदूर सिर पर गरीबी की गठरी रखे हुए हैं, पिता के कंधे पर बैठकर घूमने वाले मासूम भी लड़खड़ाते कदमों से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं, जिनके पास पैसा और साधन नहीं है वो सैकड़ों मील पैदल ही चले जा रहे हैं, जबकि कुछ लोग मालवाहक वाहनों में इस कदर ठूंसे गए हैं कि उन्हें देखकर किसी का भी दिल पसीज जाएगा.

कुल मिलाकर ये साल सिर्फ खुद को जिंदा और सुरक्षित रखने का है, कोरोना काल में जिंदगियां इतनी सस्ती हो गई हैं कि अपने भी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं, लोग भूखे-प्यासे चले जा रहे हैं, न आराम करने की जगह है, न खाने-पीने का इंतजाम, फिर भी कोरोना के खौफ से बेखौफ ये मजदूर लगातार चले ही जा रहे हैं. इन मजदूरों का दर्द बयां करने के लिए शब्द नहीं हैं और सरकारी दावे हवा-हवाई हो रहे हैं, न श्रमिक स्पेशल ट्रेन इन्हें इनकी मंजिल तक पहुंचा पा रही है और न ही स्पेशल बसें. मजदूरों के नाम पर सिर्फ स्पेशल बातें बोली जा रही है और स्पेशल वादे पर वादे किए जा रही हैं सरकारें. पर इनकी परेशानी देखकर तो यही लगता है कि ऐसे भी कोई जीता है क्या?

इंदौर। कोरोना वायरस के खौफ ने पूरी दुनिया को दहलीज के अंदर कैद कर दिया है, बाजारों में सन्नाटा है, सड़कें सूनी पड़ी हैं, जिधर भी नजर घुमाओ, लटकते ताले दिख जाते हैं, ऐसे में उन लोगों का बुरा हाल है, जो रोजाना कुआं खोदते थे और तब रोजाना पानी पीते थे, ऐसे में भूख-प्यास से व्याकुल मजदूर कायदे कानून को ताक पर रख सिर पर कफन बांधकर निकल पड़े हैं.

वादे से पेट भर रहे मजदूर

चिलचिलाती धूप में नंगे पांव सड़क नापते प्रवासी मजदूर सिर पर गरीबी की गठरी रखे हुए हैं, पिता के कंधे पर बैठकर घूमने वाले मासूम भी लड़खड़ाते कदमों से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं, जिनके पास पैसा और साधन नहीं है वो सैकड़ों मील पैदल ही चले जा रहे हैं, जबकि कुछ लोग मालवाहक वाहनों में इस कदर ठूंसे गए हैं कि उन्हें देखकर किसी का भी दिल पसीज जाएगा.

कुल मिलाकर ये साल सिर्फ खुद को जिंदा और सुरक्षित रखने का है, कोरोना काल में जिंदगियां इतनी सस्ती हो गई हैं कि अपने भी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं, लोग भूखे-प्यासे चले जा रहे हैं, न आराम करने की जगह है, न खाने-पीने का इंतजाम, फिर भी कोरोना के खौफ से बेखौफ ये मजदूर लगातार चले ही जा रहे हैं. इन मजदूरों का दर्द बयां करने के लिए शब्द नहीं हैं और सरकारी दावे हवा-हवाई हो रहे हैं, न श्रमिक स्पेशल ट्रेन इन्हें इनकी मंजिल तक पहुंचा पा रही है और न ही स्पेशल बसें. मजदूरों के नाम पर सिर्फ स्पेशल बातें बोली जा रही है और स्पेशल वादे पर वादे किए जा रही हैं सरकारें. पर इनकी परेशानी देखकर तो यही लगता है कि ऐसे भी कोई जीता है क्या?

Last Updated : May 17, 2020, 9:00 PM IST
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