इंदौर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी इंदौर लगातार नए आयाम स्थापित कर रहा है. एक ओर जहां आईआईटी इंदौर कोरोना वायरस के दौरान कोरोना वैक्सीन को लेकर की जा रही रिसर्च के लिए देश भर में चर्चा में रहा था. वहीं यहां के छात्र भी लगातार रिसर्च के दौरान अब भूतपूर्व प्रदर्शन कर रहे हैं. आईआईटी इंदौर के पीएचडी छात्र साकेत दुबे ने जीएलओएफ (glacial lake outburst floods in the indian himalayas) में इंटरव्यू के कार्यशाला में सर्वश्रेष्ठ छात्र की प्रस्तुति का खिताब प्राप्त किया है.
बीते दिनों आयोजित कार्यशाला में पीएचडी के छात्र साकेत दुबे द्वारा प्रस्तुति दी गई थी. साकेत आईआईटी इंदौर में डॉक्टर मनीष कुमार गोयल की देखरेख में रिसर्च का काम कर रहे हैं. कार्यशाला का आयोजन हिमालय से निकलने वाली भारतीय नदियों के जल सुरक्षा मूल्यांकन पर किया गया था. यह ब्रिस्टल विश्वविद्यालय और आईआईटी मुंबई द्वारा आयोजित किया गया था. इसमें इंग्लैंड, नीदरलैंड और इसरों के प्रख्यात वैज्ञानिकों द्वारा अतिथि व्याख्यान दिया गया था.
आईआईटी अधिकारियों के मुताबिक इस कार्यशाला में इंदौर आईआईटी की ओर से साकेत दुबे ने हिस्सा लिया था, हाल में वार्मिंग ने उच्च पर्वत एशिया में ग्लेशियर पीछे हटने का कारण बना है. संपूर्ण भारतीय हिमालय पर ग्लेशियल जिलों के एक व्यापक अध्ययन से पता चला है कि 23 महत्वपूर्ण ग्लेशियल जिले हैं, जो मानव जीवन को गंभीर रूप से खतरे में डाल सकती है. इसके अलावा विभिन्न ग्लेशियल जिलों के प्रभाव पत्र में विश्लेषण से पता चलता है कि 67 ग्लेशियल जिले में एक हाइड्रोपावर प्रणाली होती है. जिसमें उनका प्रवाह मार्ग शामिल होता है. इनमें से किसी भी झील में विस्फोट अत्यधिक विनाशकारी हो सकता है. जिसका प्रमुख कारण जिलों में होने वाला है. जिसके परिणाम स्वरूप पानी में बाधाएं टूट जाती है और प्रकोप की स्थिति बनती है.
अनुसंधान दल का नेतृत्व कर रहे डॉक्टर गोयल के अनुसार वर्तमान जांच में इमारतों, पुलों और बिजली जैसे सार्वजनिक उपयोगिताओं के मामले में डाउनस्ट्रीम प्रभाव के निर्धारण के साथ-साथ आत्मा विनाशकारी और गतिशील विफलता दोनों के लिए एक समग्र तरीके से संपूर्ण भारतीय हिमालय पर ग्लेशियर के खतरे डाउनस्ट्रीम प्रभाव और जोखिम की जांच करने वाली यह पहली जांच है.
IIT इंदौर के पीएचडी छात्र ने इंडो यूके कार्यशाला में किया सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
आईआईटी इंदौर के पीएचडी छात्र साकेत दुबे ने जीएलओएफ (glacial lake outburst floods in the indian himalayas) में इंटरव्यू के कार्यशाला में सर्वश्रेष्ठ छात्र की प्रस्तुति का खिताब प्राप्त किया है.
इंदौर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी इंदौर लगातार नए आयाम स्थापित कर रहा है. एक ओर जहां आईआईटी इंदौर कोरोना वायरस के दौरान कोरोना वैक्सीन को लेकर की जा रही रिसर्च के लिए देश भर में चर्चा में रहा था. वहीं यहां के छात्र भी लगातार रिसर्च के दौरान अब भूतपूर्व प्रदर्शन कर रहे हैं. आईआईटी इंदौर के पीएचडी छात्र साकेत दुबे ने जीएलओएफ (glacial lake outburst floods in the indian himalayas) में इंटरव्यू के कार्यशाला में सर्वश्रेष्ठ छात्र की प्रस्तुति का खिताब प्राप्त किया है.
बीते दिनों आयोजित कार्यशाला में पीएचडी के छात्र साकेत दुबे द्वारा प्रस्तुति दी गई थी. साकेत आईआईटी इंदौर में डॉक्टर मनीष कुमार गोयल की देखरेख में रिसर्च का काम कर रहे हैं. कार्यशाला का आयोजन हिमालय से निकलने वाली भारतीय नदियों के जल सुरक्षा मूल्यांकन पर किया गया था. यह ब्रिस्टल विश्वविद्यालय और आईआईटी मुंबई द्वारा आयोजित किया गया था. इसमें इंग्लैंड, नीदरलैंड और इसरों के प्रख्यात वैज्ञानिकों द्वारा अतिथि व्याख्यान दिया गया था.
आईआईटी अधिकारियों के मुताबिक इस कार्यशाला में इंदौर आईआईटी की ओर से साकेत दुबे ने हिस्सा लिया था, हाल में वार्मिंग ने उच्च पर्वत एशिया में ग्लेशियर पीछे हटने का कारण बना है. संपूर्ण भारतीय हिमालय पर ग्लेशियल जिलों के एक व्यापक अध्ययन से पता चला है कि 23 महत्वपूर्ण ग्लेशियल जिले हैं, जो मानव जीवन को गंभीर रूप से खतरे में डाल सकती है. इसके अलावा विभिन्न ग्लेशियल जिलों के प्रभाव पत्र में विश्लेषण से पता चलता है कि 67 ग्लेशियल जिले में एक हाइड्रोपावर प्रणाली होती है. जिसमें उनका प्रवाह मार्ग शामिल होता है. इनमें से किसी भी झील में विस्फोट अत्यधिक विनाशकारी हो सकता है. जिसका प्रमुख कारण जिलों में होने वाला है. जिसके परिणाम स्वरूप पानी में बाधाएं टूट जाती है और प्रकोप की स्थिति बनती है.
अनुसंधान दल का नेतृत्व कर रहे डॉक्टर गोयल के अनुसार वर्तमान जांच में इमारतों, पुलों और बिजली जैसे सार्वजनिक उपयोगिताओं के मामले में डाउनस्ट्रीम प्रभाव के निर्धारण के साथ-साथ आत्मा विनाशकारी और गतिशील विफलता दोनों के लिए एक समग्र तरीके से संपूर्ण भारतीय हिमालय पर ग्लेशियर के खतरे डाउनस्ट्रीम प्रभाव और जोखिम की जांच करने वाली यह पहली जांच है.