इंदौर। 22 अगस्त से गणेशोत्सव शुरू होने वाला है. जिसकी तैयारियां जोरों शोरों से चल रही हैं. इस बार आप चाहे तो सिर्फ ईको फ्रेंडली नहीं बल्कि शास्त्रोक्त सामग्री और विधि से मंत्रोच्चार के बीच बने माटी के गणेश से गणेशोत्सव मना सकते हैं.
इन गणेश मूर्ति में कोरोना संक्रमण को देखते हुए गिलोय सहित कई औषधियों का उपयोग किया गया है. साथ ही गणेश प्रतिमा के साथ मास्क और सेनिटाइजर देकर कोरोना से बचाव का संदेश भी दिया जा रहा है. शास्त्रोक्त से माटी की मूर्तियां बनाने के लिए वेद और शास्त्र के विद्वानों का मार्गदर्शन भी लिया जा रहा है.
76 औषधियों से निर्मित गणेश मूर्तियां
दरअसल पुराणों और शास्त्रों में मिट्टी से बनीं गणेश भगवान की प्रतिमाओं का विधि विधान से पूजन का उल्लेख किया गया है. इसी के मद्देनजर इंदौर में बन रहे इन प्रतिमाओं को बनाने के लिए मिट्टी में गाय का गोबर, 5 पवित्र नदियों का जल, सात तीर्थो की मिट्टी, पंचगव्य, पंचामृत, दुर्वा सहित कुल 76 औषधियों के अर्क को मंत्रों से तैयार किया गया है. बताया जा रहा है कि जिस स्थान पर गणेश प्रतिमाओं का निर्माण किया जाता है उस स्थान पर 24 घंटे गणपति के मंत्र का उच्चारण सदा चलता रहता है, ताकि मंत्र के पॉजिटिव वाइब्रेशन मूर्ति में समा सकें.
शास्त्रों के अनुरूप बनीं हैं मूर्तियां
शास्त्रों के अनुसार इन गणेश प्रतिमाओं में शक्ति और ऊर्जा का समावेश है. इन प्रतिमाओं को गणेश उत्सव के बाद अगर घर में ही किसी बर्तन में विसर्जित कर दिया जाए तो ये प्रतिमा 10 से 15 मिनट के अंदर ही पूरी तरह विसर्जित हो जाएंगी और इस पानी को जब किसी छोटे पौधे में डाल दिया जाए तो उस पौधे की बढ़त दोगुनी तेजी से होगी.
क्योंकि इस गणेश प्रतिमाओं में 76 औषधियों का अर्क मिला हुआ है. जिनमें कोरोना से बीमारियों में कारगर साबित हो रही गिलोय भी शामिल है. इस प्रतिमा को देते समय मास्क और सेनिटाइजर भी दिया जा रहा है. '2 गज की दूरी है जरूरी और मास्क लगाना है जरूरी' जैसे जागरूकता की बात भी बताई जा रही है.
घर से हो पर्यावरण शुद्धि की शुरुआत
मंत्र माटी गणेश अभियान को लेकर इंदौर के संस्कृत कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफेसर का मानना है कि जिस तरह से माटी गणेश का अभियान शुरू किया गया है, इससे पर्यावरण शुद्धि का तो संदेश जाता ही है साथ ही यह भी संदेश जाता है कि पर्यावरण को साफ और शुद्ध बनाने के लिए शुरुआत अपने घर से ही करना पड़ेगा.
औषधीय पूर्ण प्रतिमा का सीधा संबंध प्रकृति से
प्रोफेसर विनायक पांडे के अनुसार माटी गणेश में नदियों की मिट्टी मिली हुई है और कई वनस्पति और औषधियां हैं. पार्थिव गणेश की मूर्ति बनाने का मतलब ही प्रकृति से संबंधित मूर्ति होती है और इसके लिए संस्कृत में श्लोक भी बताया गया है, जिसमें 'माता भूमि पुत्र अहम पृथ्वीयां' के माध्यम से ये संदेश दिया गया है कि हम सभी की माता भूमि ही है और हम उसके पुत्र हैं.
साथ ही तीर्थों का जल मिलने से सारे तीर्थों का वातावरण इस मूर्ति के माध्यम से बनता है. साथ ही जब इस गणेश की मूर्ति को नदियों और तालाबों में विसर्जित किया जाता है तो तालाबों और नदियों के पानी में भी औषधियों के मिलने से पानी की गुणवत्ता बढ़ जाती है.
प्रतिमाओं में पॉजिटिविटी का समावेश
संभवतः ये देश में पहला प्रयोग है कि पुराणों में वर्णित विधि से गणेश प्रतिमाएं बनाकर बेचा जा रहा है, जो एक ऐसा प्रयास है जिससे पर्यावरण को एक प्रतिशत भी नुकसान नही पहुंचता, बल्कि इन प्रतिमाओं से पर्यावरण को लाभ ही होगा. साथ ही शास्त्रोक्त होने से और मंत्रों से अभिमंत्रित होने से प्रतिमाओं में पॉजिटिविटी का समावेश होता है.