इंदौर। इंदौर के स्वर्गीय दीनानाथ भार्गव के पुत्र सौमित्र भार्गव के मुताबिक चंद्रयान 3 उपग्रह में रोवर के टायरों पर जो चिह्न अंकित किए गए हैं, उनमें इसरो के चिह्न के साथ राष्ट्रीय चिह्न भी मौजूद है. रोवर के चंद्रमा की सतह पर चलने से यही राष्ट्रीय चिह्न अब चंद्रमा पर हमेशा के लिए अंकित हो गया है, क्योंकि चंद्रमा पर हवा नहीं है इसलिए यह वहां हमेशा रहेगा. दरअसल 26 जनवरी 1950 को अशोक स्तंभ वाले जिस राष्ट्रीय चिह्न को संविधान के प्रथम पृष्ठ पर अंकित किया गया, उसे इंदौर के स्वर्गीय दीनानाथ भार्गव द्वारा तैयार किया गया था.
तीन शेरों वाला चिह्न : जब संविधान के चित्रीकरण और इसे लिखने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने शांति निकेतन कोलकाता के तत्कालीन प्राचार्य नंदलाल बोस को जिम्मेदारी सौंप थी. तो उस दौरान बोस ने जिन 14-15 लोगों की टीम इसके लिए तैयार की थी, उसमें इंदौर के दीनानाथ भार्गव थे. जिन्होंने कोलकाता के चिड़ियाघर में बैठकर कई दिनों की अथक मेहनत के बाद तीन शेरों वाला यह चिह्न बनाया था. उसके बाद इसी चिह्न को भारतीय संविधान पर जगह मिली. जिसकी मूल प्रति स्वर्ण स्याही से तैयार की गई थी. संविधान के लागू होने के बाद से यही अशोक स्तंभ विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है.
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पूरा इंदौर गौरान्वित : स्वर्गीय दीनानाथ भार्गव के परिजनों का कहना है कि यह है न केवल देश के लिए बल्कि इंदौर के के लिए भी गौरव के क्षण हैं. बता दें कि स्वर्गीय भार्गव का परिवार अपने अग्रज को अपने चिह्न के निर्माण के पारिश्रमिक के तौर पर नई संसद भवन में स्थान दिलाने अथवा उनकी स्मृति को उल्लेखित करने की मांग लंबे समय से कर रहा है. अब इसी परिवार ने चंद्रयान-3 के जरिए राष्ट्रीय चिह्न को लेकर फिर स्वर्गीय भार्गव के संविधान समिति और देश के लिए योगदान को याद दिलाने का प्रयास किया है.