इंदौर। केंद्र सरकार के कृषि विधेयक पर जारी आरोप-प्रत्यारोप और राष्ट्रव्यापी आंदोलन के बीच देश का किसान एक बार फिर राजनीति के केंद्र में है. इस मुद्दे पर किसान संगठनों के अलावा भाजपा और कांग्रेस भी आमने सामने आ चुकी है. हालांकि केंद्र सरकार ने जो कृषि विधेयक लागू करने का फैसला किया है, उस पर बीजेपी और कांग्रेस की अपनी-अपनी दलीलें हैं. दोनों ही पार्टियां और किसान संगठन अपने विरोध प्रदर्शन और दलीलों को किसान और कृषि हितेषी बताने पर तुले हुए हैं.
केंद्र के प्रस्तावित कृषि एवं वाणिज्य विधेयक हर स्थिति में लागू किए जाने के भारत सरकार के फैसले के बाद देश के विभिन्न राज्यों से शुरू हुआ किसान आंदोलन अब किसानों के विरोध प्रदर्शन के साथ राष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख मुद्दा बन चुका है. इस मामले में करीब 500 संगठनों के विरोध प्रदर्शन को कांग्रेस अकाली दल समेत अन्य विपक्षी दलों का समर्थन मिला है. वहीं केंद्र सरकार ने भी पूरे आंदोलन को विपक्षी दलों की राजनीति से प्रेरित मानते हुए विपक्षी दलों का विरोध शुरू कर दिया है. इस बीच 8 दिसंबर को होने जा रहे भारत बंद के दौरान कांग्रेस और भाजपा दोनों ने प्रस्तावित कृषि कानून पर अपना अपना मत प्रदर्शित करते हुए किसानों को इस मुद्दे पर साधने का प्रयास किया है. हालांकि किसान इस पूरे मामले में राजनीतिक दलों की परवाह न करते हुए आंदोलन पर उतारू है.
कृषि बिल पर यह है कांग्रेस की दलील
कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह के मुताबिक मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के राइट टू फूड की व्यवस्था को नकारते हुए किसानों को कैश देने का फैसला किया है. इस फैसले से किसानों के लिए होने वाली खरीदी ऑपरेशन बंद हो जाएगी. लिहाजा समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीदी बंद हो जाएगी. क्योंकि देश में कृषि कमोडिटी का टर्नओवर 12 से 15 लाख करोड़ रुपए है. इसलिए मल्टीनेशनल कंपनियां इस क्षेत्र में उतरना चाहती हैं, लेकिन मंडियों में अनाज खरीदी की व्यवस्था विकेंद्रीकृत होने के कारण यह कंपनियां अलग-अलग मंडियों से खरीदी के लिए अलग-अलग लाइसेंस लेने की स्थिति में नहीं थी. इसलिए मोदी सरकार ने राज्यों के अधिकार में हस्तक्षेप करते हुए सीधे कानून बना दिया.
दिग्विजय सिंह ने बताया कृषि के संविधान में लाइसेंस की व्यवस्था है. जिसमें उपज का निर्धारित स्टाक रखने और खरीदी की व्यवस्था है लेकिन इस व्यवस्था को भी खेती से हटाकर प्रोसेसिंग में डाल दिया गया. उन्होंने बताया डब्ल्यूटीओ के दबाव में देश से समर्थन मूल्य की खरीदी की व्यवस्था खत्म कर कांटेक्ट फार्मिंग की व्यवस्था शुरू की जा रही है. उन्होंने कहा एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट में 1955 में स्टॉक होल्डिंग और लिमिट की व्यवस्था थी, जिससे कि जमाखोरी और कालाबाजारी पर रोक लग सके, लेकिन मोदी सरकार ने अब उसे भी ओपन कर दिया है.
भाजपा का दावा किसानों के लिए समृद्धि लाएगा नया विधेयक
प्रस्तावित कृषि कानून को लेकर राज्य सरकार और भारतीय जनता पार्टी का मत है कि किसानों की खरीदी फ्री होल्ड करने से उन्हें मंडियों में समर्थन मूल्य से भी ज्यादा के दाम मिलने पर फसल बेचने की सुविधा मिलेगी. किसान मंडी ही नहीं अपने लाभ के अनुसार कहीं भी अपनी फसल अधिकतम राशि में बेच सकेगा. कृषि मंत्री कमल पटेल के अनुसार कांग्रेस ने बीते 70 सालों में किसानों को उनके संसाधनों पर उद्योग लगाने के लिए लोन की सुविधा नहीं दी. लेकिन अब मोदी सरकार किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के रास्ते खोल रही है. जिससे बिचौलियों की आदत बंद होगी और किसानों को उनकी उपज का पूरा दाम मिल सकेगा. उन्होंने कहा पंजाब में आ रहा है इसलिए वहां की सरकार किसानों को भड़का कर कानून का विरोध कर रही है. मोदी सरकार की कोशिश है कि हर स्थिति में किसानों को उनकी फसल का अधिकतम दाम दिलाया जा सके यही प्रस्तावित कृषि विधेयक के जरिए मोदी सरकार की तैयारी है.