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धार्मिक आयोजनों पर कोरोना का असर, मंदिरों में कम ही पहुंच रहे श्रद्धालु

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Published : Jul 9, 2020, 8:27 PM IST

इटारसी के श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर में श्रावण मास के पहले दिन से पार्थिव शिवलिंग पूजन शुरू किया गया है. जहां हर दिन तीन घंटे पूजन और रूद्राभिषेक किया जाता है. लेकिन कोरोना संकट के चलते इस साल कम संख्या में श्रद्धालु मंदिर में पहुंच रहे हैं.

Corona effect on religious programs
श्रावण मास में भगवान शिव का अभिषेक

होशंगाबाद। इटारसी के श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर समिति ने सालों पुरानी परंपरा को निभाते हुए इस साल भी श्रावण मास के पहले दिन से पार्थिव शिवलिंग पूजन शुरू कर दिया है. कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए सावन मास के चौथे दिन भी कम संख्या में श्रद्धालुओं ने पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक और पूजन किया.

Corona effect on religious programs
श्रावण मास में भगवान शिव का अभिषेक

श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर में मुख्य आचार्य पं.विनोद दुबे, पं.सत्येंद्र पांडे, आचार्य पं.पीयूष पांडे के द्वारा पूजन और रूद्राभिषेक कराया जा रहा है. हर दिन लगभग तीन घंटे चलने वाले इस रूद्राभिषेक में हर साल की तुलना में सीमित संख्या में ही लोग पहुंच रहे हैं.

मुख्य आचार्य पं.विनोद दुबे ने पार्थिव शिवलिंग पूजन का महत्व बताते हुए कहा, शिव ही सृष्टि के निर्माणकर्ता हैं. भगवान शिव को नागवंश का वासुकि बहुत पसंद है. हिमालय पर्वत पर अपने गले में शिव वासुकि नाग को ही धारण करते हैं. सावन मास भगवान शिव को अतिप्रिय है, क्योंकि यह शीतलता प्रदान करता है. हर वो चीज जो शीतलता देती है वह भगवान शिव को प्रिय है.

ऐसे प्रारंभ हुई भोलेनाथ को जल चढ़ाने की परंपरा

पं.विनोद दुबे ने बताया कि भागवत महापुराण में समुद्र मंथन की कथा आती है. देवता और दानवों ने मिलकर जब समुद्र में मंथन किया गया तो सबसे पहले हलाहल विष निकला. विष इतना विनाशक था कि सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया. भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि वह जाकर भोलेनाथ को मनाएं, वो ही इस विष को पी सकते हैं. देवताओं के अनुरोध को भगवान शिव ने स्वीकार किया और वह विष शिव ने पी लिया. लेकिन उस विष को शिव ने अपने गले में रोककर रखा. इस कारण भगवान शिव का पूरा कंठ नीला पड़ गया, तब से शिव का एक नाम और नीलकंठ पड़ा. हलाहल से उत्पन्न हो रही अग्नि इतनी तेज थी कि भगवान शिव के शरीर पर इसका असर होने लगा. भगवान को ठंडक मिले इसके लिए उन पर जल चढ़ाया गया. जलाभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न हो गए जब से भगवान शिव पर जल चढ़ने की परंपरा चालू हो गई. इसी कारण भगवान शिव को सावन मास अत्यधिक प्रिय है.

होशंगाबाद। इटारसी के श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर समिति ने सालों पुरानी परंपरा को निभाते हुए इस साल भी श्रावण मास के पहले दिन से पार्थिव शिवलिंग पूजन शुरू कर दिया है. कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए सावन मास के चौथे दिन भी कम संख्या में श्रद्धालुओं ने पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक और पूजन किया.

Corona effect on religious programs
श्रावण मास में भगवान शिव का अभिषेक

श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर में मुख्य आचार्य पं.विनोद दुबे, पं.सत्येंद्र पांडे, आचार्य पं.पीयूष पांडे के द्वारा पूजन और रूद्राभिषेक कराया जा रहा है. हर दिन लगभग तीन घंटे चलने वाले इस रूद्राभिषेक में हर साल की तुलना में सीमित संख्या में ही लोग पहुंच रहे हैं.

मुख्य आचार्य पं.विनोद दुबे ने पार्थिव शिवलिंग पूजन का महत्व बताते हुए कहा, शिव ही सृष्टि के निर्माणकर्ता हैं. भगवान शिव को नागवंश का वासुकि बहुत पसंद है. हिमालय पर्वत पर अपने गले में शिव वासुकि नाग को ही धारण करते हैं. सावन मास भगवान शिव को अतिप्रिय है, क्योंकि यह शीतलता प्रदान करता है. हर वो चीज जो शीतलता देती है वह भगवान शिव को प्रिय है.

ऐसे प्रारंभ हुई भोलेनाथ को जल चढ़ाने की परंपरा

पं.विनोद दुबे ने बताया कि भागवत महापुराण में समुद्र मंथन की कथा आती है. देवता और दानवों ने मिलकर जब समुद्र में मंथन किया गया तो सबसे पहले हलाहल विष निकला. विष इतना विनाशक था कि सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया. भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि वह जाकर भोलेनाथ को मनाएं, वो ही इस विष को पी सकते हैं. देवताओं के अनुरोध को भगवान शिव ने स्वीकार किया और वह विष शिव ने पी लिया. लेकिन उस विष को शिव ने अपने गले में रोककर रखा. इस कारण भगवान शिव का पूरा कंठ नीला पड़ गया, तब से शिव का एक नाम और नीलकंठ पड़ा. हलाहल से उत्पन्न हो रही अग्नि इतनी तेज थी कि भगवान शिव के शरीर पर इसका असर होने लगा. भगवान को ठंडक मिले इसके लिए उन पर जल चढ़ाया गया. जलाभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न हो गए जब से भगवान शिव पर जल चढ़ने की परंपरा चालू हो गई. इसी कारण भगवान शिव को सावन मास अत्यधिक प्रिय है.

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