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Labour Day 2023: एशिया के सबसे बड़े JC मिल्स की कहानी, जहां 15 हजार मजदूरों से छिनी रोजी रोटी

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Published : May 1, 2023, 5:38 PM IST

Updated : May 1, 2023, 5:58 PM IST

1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर हम आपको मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर के उन मजदूरों की कहानी बताएंगे. जिनके घरों में हमेशा के लिए अंधेरा छा गया और ये मजदूर दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हो गए. एशिया का पहला इकलौता सबसे बड़ा कपड़ा उद्योग जिसके बंद होने से 16 हजार से ज्यादा मजदूरों पर संकट छा गया.

Jesse Mills Death Story
जेसी मिल्स मौत की कहानी

ग्वालियर। आज मजदूर दिवस के मौके पर हम आपको ऐसे मजदूरों की कहानी बताएंगे, जो पूरी दुनिया भर में चर्चित है. एशिया का इकलौता एक ऐसा कॉटन मिल जिसकी लाइट कटी और पलभर में हजारों मजदूरों की जीवन में हमेशा के लिए अंधेरा हो गया. पूरी दुनिया में विख्यात बिरला ब्रदर्स के द्वारा जेसी मिल जिसने 12 से ज्यादा मजदूरों की जान ली और 10 हजार से अधिक मजदूर हमेशा के लिए बेरोजगार हो गए. जो आज भी दर-दर भटक रहे हैं, कई पीढ़ी के लोग इस सदमे से बाहर नहीं निकल पाई है.

सिंधिया ने बिरला के साथ शुरू की उद्योग कि प्लानिंग: आजादी के पहले से ग्वालियर मध्य भारत की राजधानी था और यहां पर सिंधिया परिवार का राजशाही शासन चलता था. पहले से ही ग्वालियर औद्योगिक से भरपूर रहा, क्योंकि यहां पर 500 से अधिक लघु और बड़े उद्योगों ने देश के अनेक राज्यों के युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया. ग्वालियर और उसके आसपास के जिलों की आर्थिक समृद्धि में उद्योगों का बड़ा योगदान था, लेकिन इन सब उद्योगों में कोई सबसे अधिक रोजगार प्रदान करने वाली यूनिट नहीं थी. उसके बाद सिंधिया स्टेट के तत्कालीन महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने एक बड़ा उद्योग स्थापित करने का प्लान किया. उसके बाद सन 1922 में शासक जीवाजीराव सिंधिया देश के प्रसिद्ध उद्योगपति सेठ घनश्याम दास बिरला को लेकर ग्वालियर आए थे. उसके बाद जीवाजी राव सिंधिया ने घनश्याम दास बिरला को अपने महल में रखा. उसके बाद ग्वालियर में एक बड़े उद्योग को स्थापित करने की प्लानिंग शुरू हुई.

1923 में शुरू हुई मिल: 24 फरवरी 1921 को सिंधिया स्टेट के महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने घनश्याम दास बिरला को "बिरल्ला ब्रदर्स" के नाम पर 700 बीघा से अधिक जमीन मिल खोलने के लिए दी थी. उसके बाद सन 1923 में इस मिल में कपड़ा उत्पादन के लिए मशीनें लगाई गई और उसके बाद यह मिल शुरू हो गया. जिसमें करीब 16000 मजदूर काम करने लगे थे. प्रतिदिन यहां करीब एक लाख गज सादा कपड़े का उत्पादन होने लगा. उसके बाद आजादी के समय इस मिल का नाम 'जेसी मिल' यानी 'जीवाजी राव कॉटन मिल्स लिमिटेड' के रूप में कन्वर्ट कर दिया. कुछ समय बाद इस मिल में फैंसी और जकाट लूम लगाये गये. उसके बाद कपड़े के साथ पलंग की निवाड़ और गर्म कपड़ों के लिए उनका उत्पादन भी शुरू हो गया.

Jesse Mills
जेसी मिल्स

जेसी मिल बना ग्वालियर की लाइफलाइन: जीवाजीराव कॉटन मिल्स लिमिटेड यानी जेसी मिल्स में रोज एक लाख गज कपड़े का उत्पादन हो रहा था. धीरे-धीरे इस मिल में अलग-अलग प्रकार के कपड़ों का उत्पादन होने लगा. इसके बाद यहां बनने वाले कपड़े को 'जियाजी शूटिंग शर्टिंग' नाम दिया गया और यह कपड़ा देखते-देखते देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भर में विख्यात हो गया. शुरुआत में इस जेसी मिल्स में 16 हजार से अधिक मजदूर काम करते थे. देखते ही देखते जेसी मिल ग्वालियर की लाइफ लाइन बन गया. जेसी मिल लिमिटेड के द्वारा कर्मचारियों के लिए अस्पताल, बच्चों के लिए स्कूल, खेलने के लिए प्लेग्राउंड सहित अलग-अलग सुविधाएं मुहैया होने लगी. यह देश का ही नहीं बल्कि दुनिया भर में एशिया का पहला इकलौता सबसे बड़ा कपड़ा उद्योग के रूप में पहचाने जाने लगा.

15 हजार मजदूरों के घरों में छाया अंधेरा: साल 1952 के दशक में जब इस जेसी मिल को आधुनिक बनाने की तैयारी शुरू हुई. उसके बाद इस सबसे बड़ी मिल पर खतरा मंडराने लगा. इस मिल को आधुनिक बनाने के लिए सबसे पहले धीरे-धीरे मजदूरों की संख्या कम की गई और उत्पादन लगातार बढ़ाया गया. इस आधुनिकता के चक्कर में 16000 मजदूरों की संख्या घटाकर 8000 कर दी. मतलब 8000 मजदूरों का भविष्य अंधकार में पहुंचा दिया. उसके बाद जेसी मिल में अंदर ही अंदर मजदूरों को कुचलने के लिए एक बड़ी प्लानिंग चल रही थी, फिर जेसी मिल प्रबंधन ने राज्य सरकार को आवेदन दिया और कहा कि हम छटनी करना चाहते हैं. उसके बाद जेसी मिल प्रबंधन और राज्य सरकार ने मिलकर एक योजनाबद्ध तरीका अपनाया और अप्रत्यक्ष रूप से इसका दूसरा रास्ता निकाला. उसके बाद 28 अप्रैल 1992 में मध्य प्रदेश की तत्कालीन सुंदरलाल पटवा सरकार द्वारा बिजली बिल न भरने का नोटिस दिया. सरकार द्वारा यह बताया गया कि जेसी मिल पर बिजली का बिल लगभग 4 से 5 करोड़ है और पेनेल्टी मिलाकर कुल 55 करोड़ से अधिक हो गया है. उसके बाद बिजली का बिल का भुगतान न किए जाने का बहाना लेकर बिजली विभाग ने जेसी मिल की बिजली को काट दिया.उसके बाद यह जेसी मिल पूरी तरह बंद हो गया. जिसमें इस मिल में काम करने वाले 15,000 से अधिक मजदूर के घरों में मातम छा गया और वह हमेशा के लिए बेरोजगार हो गए.

कुछ खबरें यहां पढ़ें

न्याय की आस में मजदूर: जेसी मिल बंद होने के बाद मजदूर कांग्रेस ग्वालियर इंटक अवैध वंदीकरण के विरुद्ध न्यायालय की शरण में गई. न्यायालय ने मई 1998 तक का मजदूरों का वेतन देने का फैसला किया, क्योंकि यह प्रकरण बीआईएफआर (बोर्ड फॉर इंडस्ट्रियल एंड फाइनेंशियल रिकंस्ट्रक्शन) में चल रहा था तो बीआईएफआर ने मिलकर बंदीकरण का आदेश देकर मजदूरों और अन्य देनदारी चुकता किए जाने के लिए परिसमापक अधिकारी नियुक्त कर प्रकरण उच्च न्यायालय बेंच ग्वालियर को सौंप दिया. उच्च न्यायालय ने इस पिटीशन पर सुनवाई कर मजदूरों की आंशिक देनदारी का भुगतान करने के बाद प्रकरण अभी भी अपने पास लंबित रखा है. हजारों मजदूर आज भी न्याय की प्रतीक्षा में जीवन काट रहे हैं.

ग्वालियर। आज मजदूर दिवस के मौके पर हम आपको ऐसे मजदूरों की कहानी बताएंगे, जो पूरी दुनिया भर में चर्चित है. एशिया का इकलौता एक ऐसा कॉटन मिल जिसकी लाइट कटी और पलभर में हजारों मजदूरों की जीवन में हमेशा के लिए अंधेरा हो गया. पूरी दुनिया में विख्यात बिरला ब्रदर्स के द्वारा जेसी मिल जिसने 12 से ज्यादा मजदूरों की जान ली और 10 हजार से अधिक मजदूर हमेशा के लिए बेरोजगार हो गए. जो आज भी दर-दर भटक रहे हैं, कई पीढ़ी के लोग इस सदमे से बाहर नहीं निकल पाई है.

सिंधिया ने बिरला के साथ शुरू की उद्योग कि प्लानिंग: आजादी के पहले से ग्वालियर मध्य भारत की राजधानी था और यहां पर सिंधिया परिवार का राजशाही शासन चलता था. पहले से ही ग्वालियर औद्योगिक से भरपूर रहा, क्योंकि यहां पर 500 से अधिक लघु और बड़े उद्योगों ने देश के अनेक राज्यों के युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया. ग्वालियर और उसके आसपास के जिलों की आर्थिक समृद्धि में उद्योगों का बड़ा योगदान था, लेकिन इन सब उद्योगों में कोई सबसे अधिक रोजगार प्रदान करने वाली यूनिट नहीं थी. उसके बाद सिंधिया स्टेट के तत्कालीन महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने एक बड़ा उद्योग स्थापित करने का प्लान किया. उसके बाद सन 1922 में शासक जीवाजीराव सिंधिया देश के प्रसिद्ध उद्योगपति सेठ घनश्याम दास बिरला को लेकर ग्वालियर आए थे. उसके बाद जीवाजी राव सिंधिया ने घनश्याम दास बिरला को अपने महल में रखा. उसके बाद ग्वालियर में एक बड़े उद्योग को स्थापित करने की प्लानिंग शुरू हुई.

1923 में शुरू हुई मिल: 24 फरवरी 1921 को सिंधिया स्टेट के महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने घनश्याम दास बिरला को "बिरल्ला ब्रदर्स" के नाम पर 700 बीघा से अधिक जमीन मिल खोलने के लिए दी थी. उसके बाद सन 1923 में इस मिल में कपड़ा उत्पादन के लिए मशीनें लगाई गई और उसके बाद यह मिल शुरू हो गया. जिसमें करीब 16000 मजदूर काम करने लगे थे. प्रतिदिन यहां करीब एक लाख गज सादा कपड़े का उत्पादन होने लगा. उसके बाद आजादी के समय इस मिल का नाम 'जेसी मिल' यानी 'जीवाजी राव कॉटन मिल्स लिमिटेड' के रूप में कन्वर्ट कर दिया. कुछ समय बाद इस मिल में फैंसी और जकाट लूम लगाये गये. उसके बाद कपड़े के साथ पलंग की निवाड़ और गर्म कपड़ों के लिए उनका उत्पादन भी शुरू हो गया.

Jesse Mills
जेसी मिल्स

जेसी मिल बना ग्वालियर की लाइफलाइन: जीवाजीराव कॉटन मिल्स लिमिटेड यानी जेसी मिल्स में रोज एक लाख गज कपड़े का उत्पादन हो रहा था. धीरे-धीरे इस मिल में अलग-अलग प्रकार के कपड़ों का उत्पादन होने लगा. इसके बाद यहां बनने वाले कपड़े को 'जियाजी शूटिंग शर्टिंग' नाम दिया गया और यह कपड़ा देखते-देखते देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भर में विख्यात हो गया. शुरुआत में इस जेसी मिल्स में 16 हजार से अधिक मजदूर काम करते थे. देखते ही देखते जेसी मिल ग्वालियर की लाइफ लाइन बन गया. जेसी मिल लिमिटेड के द्वारा कर्मचारियों के लिए अस्पताल, बच्चों के लिए स्कूल, खेलने के लिए प्लेग्राउंड सहित अलग-अलग सुविधाएं मुहैया होने लगी. यह देश का ही नहीं बल्कि दुनिया भर में एशिया का पहला इकलौता सबसे बड़ा कपड़ा उद्योग के रूप में पहचाने जाने लगा.

15 हजार मजदूरों के घरों में छाया अंधेरा: साल 1952 के दशक में जब इस जेसी मिल को आधुनिक बनाने की तैयारी शुरू हुई. उसके बाद इस सबसे बड़ी मिल पर खतरा मंडराने लगा. इस मिल को आधुनिक बनाने के लिए सबसे पहले धीरे-धीरे मजदूरों की संख्या कम की गई और उत्पादन लगातार बढ़ाया गया. इस आधुनिकता के चक्कर में 16000 मजदूरों की संख्या घटाकर 8000 कर दी. मतलब 8000 मजदूरों का भविष्य अंधकार में पहुंचा दिया. उसके बाद जेसी मिल में अंदर ही अंदर मजदूरों को कुचलने के लिए एक बड़ी प्लानिंग चल रही थी, फिर जेसी मिल प्रबंधन ने राज्य सरकार को आवेदन दिया और कहा कि हम छटनी करना चाहते हैं. उसके बाद जेसी मिल प्रबंधन और राज्य सरकार ने मिलकर एक योजनाबद्ध तरीका अपनाया और अप्रत्यक्ष रूप से इसका दूसरा रास्ता निकाला. उसके बाद 28 अप्रैल 1992 में मध्य प्रदेश की तत्कालीन सुंदरलाल पटवा सरकार द्वारा बिजली बिल न भरने का नोटिस दिया. सरकार द्वारा यह बताया गया कि जेसी मिल पर बिजली का बिल लगभग 4 से 5 करोड़ है और पेनेल्टी मिलाकर कुल 55 करोड़ से अधिक हो गया है. उसके बाद बिजली का बिल का भुगतान न किए जाने का बहाना लेकर बिजली विभाग ने जेसी मिल की बिजली को काट दिया.उसके बाद यह जेसी मिल पूरी तरह बंद हो गया. जिसमें इस मिल में काम करने वाले 15,000 से अधिक मजदूर के घरों में मातम छा गया और वह हमेशा के लिए बेरोजगार हो गए.

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न्याय की आस में मजदूर: जेसी मिल बंद होने के बाद मजदूर कांग्रेस ग्वालियर इंटक अवैध वंदीकरण के विरुद्ध न्यायालय की शरण में गई. न्यायालय ने मई 1998 तक का मजदूरों का वेतन देने का फैसला किया, क्योंकि यह प्रकरण बीआईएफआर (बोर्ड फॉर इंडस्ट्रियल एंड फाइनेंशियल रिकंस्ट्रक्शन) में चल रहा था तो बीआईएफआर ने मिलकर बंदीकरण का आदेश देकर मजदूरों और अन्य देनदारी चुकता किए जाने के लिए परिसमापक अधिकारी नियुक्त कर प्रकरण उच्च न्यायालय बेंच ग्वालियर को सौंप दिया. उच्च न्यायालय ने इस पिटीशन पर सुनवाई कर मजदूरों की आंशिक देनदारी का भुगतान करने के बाद प्रकरण अभी भी अपने पास लंबित रखा है. हजारों मजदूर आज भी न्याय की प्रतीक्षा में जीवन काट रहे हैं.

Last Updated : May 1, 2023, 5:58 PM IST
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