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सिंधिया Vs तोमर: ग्वालियर चंबल अंचल में वर्चस्व की जंग

ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने से ग्वालियर चंबल अंचल में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ी हुई है. सिंधिया के सामने हैं केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर. दोनों का कार्यक्षेत्र एक ही है. ऐसे में इस रीजन में दोनों अपनी बादशाहत कायम करना चाहते हैं.

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Published : Jan 19, 2021, 6:35 PM IST

Updated : Jan 19, 2021, 8:04 PM IST

SCINDIA TOMAR
सिंधिया तोमर

ग्वालियर। जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं, तब से पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है . कारण है वर्चस्व की लड़ाई. सिंधिया का कद कांग्रेस में भी काफी बड़ा था. सो वे चाहते हैं कि बीजेपी में भी उनके कद से बड़ा कोई कैसे हो सकता है. खास तौर पर ग्वालियार में तो वे ही सर्वेसर्वा रहें. लेकिन बीजेपी के एक और दिग्गज और केन्द्रीय नेता नरेन्द्र सिंह तोमर उनके सामने एक चुनौती हैं. दोनों का कार्यक्षेत्र ग्वालियर चंबल अंचल है. जाहिर है जब एक मयान में दो तलवारें होंगी, तो टकराएंगी ही.

सिंधिया बनाम तोमर

सिंधिया Vs तोमर

ग्वालियर चंबल अंचल एक बार फिर जंग का गवाह बन रहा है. इस बार जंग राजनीतिक है. और दो दिग्गज आमने सामने हैं. केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर बीजेपी में स्थापित नेता हैं. तो कांग्रेस छोड़कर नए नवेले बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद भी किसी से छिपा नहीं हैै. दोनों नेताओं की रणभूमि ग्वालियर चंबल अंचल है. ऐसे में राजनीतिक होड़ कैसे नहीं होगी. पॉलिटिकल पंडितों का मानना है सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से इस अंचल में गुटबाजी सिर उठाने लगी है. अंचल में किसकी चलेगी. आने वाले वक्त में कौन ग्वालियर चंबल का 'महाराज' होगा. इसी ताज को पहनने के लिए सिंधिया और तोमर में चल रही है वर्चस्व की लड़ाई.

junoon in blood
चैलेंज सिंधिया के खून में !

कौन किस पर भारी ?

दोनों के बीच महत्वाकांक्षा की तलवारें अक्सर टकराती रहती हैं. हाल ही में मुरैना में भी दोनों आमने सामने थे. यहां जहरीली शराब के पीड़ितों से मिलने का बहाना था. असल मकसद अपनी पावर दिखाना था. पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने काफिले के साथ पहुंचे. गांव गांव का दौरा किया. अफसरों की क्लास ली. और ये संदेश दिया कि यहां मैं ही 'सबकुछ' हूं. किसी की जड़े उखड़ेंगी, तो ही सिंधिया की जमीन मजबूत होगी. शायद इसी डर से, या यूं कहें कि अपनी राजनीतिक लकीर छोटी होने के डर से मंत्री तोमर ने भी अपने लाव लश्कर के साथ गांव की ओर कूच किया. स्वागत में कार्यकर्ताओं ने कोई कमी नहीं छोड़ी. दर्जनों गाड़ियां धूल उड़ाती हुई गांव पहुंचीं. कुछ देर लोगों का दुख दर्द बांटा. फरियाद सुनी. समर्थकों ने जय जयकार की. लगा कि अब सबकुछ ठीक है. तो कलेजे को ठंडक मिली.

no surrender before sindhia
हार मानने वाले नहीं तोमर

वर्चस्व की जंग से बीजेपी को नुकसान !

अपनी ताकत दिखाने और समझाने में सिंधिया और तोमर कभी कमी नहीं छोड़ते . जब भी कोई एक जनता की नब्ज टटोलने के लिए निकलता है, तो दूसरा भी बिना देर किए किसी बहाने से अपनी फौज लेकर आ ही जाता है. राजनीति के धुरंधर मानते हैं कि इस समय ग्वालियर चंबल अंचल में अजीब सी होड़ मची हुई है. सिंधिया समर्थक तोमर गुट के लोगों को खींचने में लगे हैं. तो तोमर के वफादार सिंधिया समर्थकों को अपने पाले में लाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं. अब इस गुटबाजी से पार्टी को नुकसान हो तो हो.

shindia a challenge
तोमर की चुनौती

ग्वालियर - चंबल का किंग कौन ?

राजनीतिक हलकों में ये चर्चा आम है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने की कीमत अगर सबसे ज्यादा किसी को चुकानी होगी, तो वे होंगे नरेन्द्र सिंह तोमर. क्योंकि इन अंचल में दोनों दिग्गजों की चलती है. दोनों ही इस इलाके में एकछत्र राज कायम करना चाहेंगें. इलाका एक है और दावेदार दो. ऐसे में राजनीति का शास्त्र कहता है कि एक को तो देर सवेर समर्पण करना ही होगा. कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द ही सिंधिया को मोदी के मंत्रिमंडल में अहम सीट मिल सकती है. अगर ऐसा हुआ, तो निश्चित तौर पर तोमर के लिए ये राजनीतिक झटका होगा. केन्द्रीय मंत्री बनने से सिंधिया की जनता में पहुंच बढ़ेगी, पकड़ मजबूत होगी. तोमर से असंतुष्ट कुछ समर्थक पाला भी बदल सकते हैं. हाल में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्मदिन था और इस मौके पर पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा ने कार्यक्रम का आयोजन किया. खुद अनूप मिश्रा ने सिंधिया महल पहुंचकर उन्हें निमंत्रण दिया था. इस कार्यक्रम में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ पूर्व मंत्री माया सिंह भी मौजूद रहीं. आपको बता दें कि अनूप मिश्रा पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजेपेई के भांजे हैं.

जिद और जुनून सिंधिया के खून में !

सभी को पीछे छोड़ने की ज़िद और आगे बढ़ने का जुनून सिंधिया परिवार के कल्चर में ही है. कांग्रेसी नेता भी मानते हैं कि ज्योतिरादित्य जब कांग्रेस में थे, तब भी खुद को सर्वेसर्वा समझते थे.सिंधिया के आने से बेचैनी तो बीजेपी के नेताओं में भी है. लेकिन खुलकर कौन कहे. पॉलिटिकल करेक्ट बनने के लिए कहते हैं, कि दोनों अपने नेता हैं. ग्वालियर चंबल अंचल दोनों का कार्यक्षेत्र है. तो दोनों का यहां आना जाना तो लगा ही रहेगा.

किसमें कितना है दम

ग्वालियर चंबल अंचल में राजनीति के दो शेर 'महाराजा' बनने के लिए वार पलटवार कर रहे हैं. लेकिन आखिर में जीत तो एक की ही होगी. डर ये है कि इस दौरान सिंधिया और तोमर अपनी पार्टी को ही जख्मी ना कर दें. ये भी मुमकिन नहीं कि बीजेपी आलाकमान इन दोनों की जोर आजामइश से अंजान हो. लगता तो यही है कि केन्द्रीय नेतृत्व भी यही मान रहा हो, देखें किसमें कितना है दम.

ग्वालियर। जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं, तब से पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है . कारण है वर्चस्व की लड़ाई. सिंधिया का कद कांग्रेस में भी काफी बड़ा था. सो वे चाहते हैं कि बीजेपी में भी उनके कद से बड़ा कोई कैसे हो सकता है. खास तौर पर ग्वालियार में तो वे ही सर्वेसर्वा रहें. लेकिन बीजेपी के एक और दिग्गज और केन्द्रीय नेता नरेन्द्र सिंह तोमर उनके सामने एक चुनौती हैं. दोनों का कार्यक्षेत्र ग्वालियर चंबल अंचल है. जाहिर है जब एक मयान में दो तलवारें होंगी, तो टकराएंगी ही.

सिंधिया बनाम तोमर

सिंधिया Vs तोमर

ग्वालियर चंबल अंचल एक बार फिर जंग का गवाह बन रहा है. इस बार जंग राजनीतिक है. और दो दिग्गज आमने सामने हैं. केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर बीजेपी में स्थापित नेता हैं. तो कांग्रेस छोड़कर नए नवेले बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद भी किसी से छिपा नहीं हैै. दोनों नेताओं की रणभूमि ग्वालियर चंबल अंचल है. ऐसे में राजनीतिक होड़ कैसे नहीं होगी. पॉलिटिकल पंडितों का मानना है सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से इस अंचल में गुटबाजी सिर उठाने लगी है. अंचल में किसकी चलेगी. आने वाले वक्त में कौन ग्वालियर चंबल का 'महाराज' होगा. इसी ताज को पहनने के लिए सिंधिया और तोमर में चल रही है वर्चस्व की लड़ाई.

junoon in blood
चैलेंज सिंधिया के खून में !

कौन किस पर भारी ?

दोनों के बीच महत्वाकांक्षा की तलवारें अक्सर टकराती रहती हैं. हाल ही में मुरैना में भी दोनों आमने सामने थे. यहां जहरीली शराब के पीड़ितों से मिलने का बहाना था. असल मकसद अपनी पावर दिखाना था. पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने काफिले के साथ पहुंचे. गांव गांव का दौरा किया. अफसरों की क्लास ली. और ये संदेश दिया कि यहां मैं ही 'सबकुछ' हूं. किसी की जड़े उखड़ेंगी, तो ही सिंधिया की जमीन मजबूत होगी. शायद इसी डर से, या यूं कहें कि अपनी राजनीतिक लकीर छोटी होने के डर से मंत्री तोमर ने भी अपने लाव लश्कर के साथ गांव की ओर कूच किया. स्वागत में कार्यकर्ताओं ने कोई कमी नहीं छोड़ी. दर्जनों गाड़ियां धूल उड़ाती हुई गांव पहुंचीं. कुछ देर लोगों का दुख दर्द बांटा. फरियाद सुनी. समर्थकों ने जय जयकार की. लगा कि अब सबकुछ ठीक है. तो कलेजे को ठंडक मिली.

no surrender before sindhia
हार मानने वाले नहीं तोमर

वर्चस्व की जंग से बीजेपी को नुकसान !

अपनी ताकत दिखाने और समझाने में सिंधिया और तोमर कभी कमी नहीं छोड़ते . जब भी कोई एक जनता की नब्ज टटोलने के लिए निकलता है, तो दूसरा भी बिना देर किए किसी बहाने से अपनी फौज लेकर आ ही जाता है. राजनीति के धुरंधर मानते हैं कि इस समय ग्वालियर चंबल अंचल में अजीब सी होड़ मची हुई है. सिंधिया समर्थक तोमर गुट के लोगों को खींचने में लगे हैं. तो तोमर के वफादार सिंधिया समर्थकों को अपने पाले में लाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं. अब इस गुटबाजी से पार्टी को नुकसान हो तो हो.

shindia a challenge
तोमर की चुनौती

ग्वालियर - चंबल का किंग कौन ?

राजनीतिक हलकों में ये चर्चा आम है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने की कीमत अगर सबसे ज्यादा किसी को चुकानी होगी, तो वे होंगे नरेन्द्र सिंह तोमर. क्योंकि इन अंचल में दोनों दिग्गजों की चलती है. दोनों ही इस इलाके में एकछत्र राज कायम करना चाहेंगें. इलाका एक है और दावेदार दो. ऐसे में राजनीति का शास्त्र कहता है कि एक को तो देर सवेर समर्पण करना ही होगा. कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द ही सिंधिया को मोदी के मंत्रिमंडल में अहम सीट मिल सकती है. अगर ऐसा हुआ, तो निश्चित तौर पर तोमर के लिए ये राजनीतिक झटका होगा. केन्द्रीय मंत्री बनने से सिंधिया की जनता में पहुंच बढ़ेगी, पकड़ मजबूत होगी. तोमर से असंतुष्ट कुछ समर्थक पाला भी बदल सकते हैं. हाल में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्मदिन था और इस मौके पर पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा ने कार्यक्रम का आयोजन किया. खुद अनूप मिश्रा ने सिंधिया महल पहुंचकर उन्हें निमंत्रण दिया था. इस कार्यक्रम में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ पूर्व मंत्री माया सिंह भी मौजूद रहीं. आपको बता दें कि अनूप मिश्रा पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजेपेई के भांजे हैं.

जिद और जुनून सिंधिया के खून में !

सभी को पीछे छोड़ने की ज़िद और आगे बढ़ने का जुनून सिंधिया परिवार के कल्चर में ही है. कांग्रेसी नेता भी मानते हैं कि ज्योतिरादित्य जब कांग्रेस में थे, तब भी खुद को सर्वेसर्वा समझते थे.सिंधिया के आने से बेचैनी तो बीजेपी के नेताओं में भी है. लेकिन खुलकर कौन कहे. पॉलिटिकल करेक्ट बनने के लिए कहते हैं, कि दोनों अपने नेता हैं. ग्वालियर चंबल अंचल दोनों का कार्यक्षेत्र है. तो दोनों का यहां आना जाना तो लगा ही रहेगा.

किसमें कितना है दम

ग्वालियर चंबल अंचल में राजनीति के दो शेर 'महाराजा' बनने के लिए वार पलटवार कर रहे हैं. लेकिन आखिर में जीत तो एक की ही होगी. डर ये है कि इस दौरान सिंधिया और तोमर अपनी पार्टी को ही जख्मी ना कर दें. ये भी मुमकिन नहीं कि बीजेपी आलाकमान इन दोनों की जोर आजामइश से अंजान हो. लगता तो यही है कि केन्द्रीय नेतृत्व भी यही मान रहा हो, देखें किसमें कितना है दम.

Last Updated : Jan 19, 2021, 8:04 PM IST
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