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शहीद अमरचंद बांठिया को नेताओं ने किया याद, परिजनों ने बताई राजनीति

ग्वालियर में आज स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अमरचंद बांठिया के बलिदान दिवस पर राजनीतिक दल श्रद्धा सुमन अर्पित कर शहर के सराफा बाजार पहुंचे, जिससे शहीद के परिजनों ने राजनीति करार दिया है.

family members of Shaheed Amarchand Banthia expressed doubts over the intention of politicians in gwalior
शहीद अमरचंद बांठिया के परिजनों ने राजनीतिज्ञों की मंशा पर जताया शक
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Published : Jun 23, 2020, 6:20 AM IST

Updated : Jun 23, 2020, 10:37 AM IST

ग्वालियर। शहर के सराफा बाजार स्थित प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अमरचंद बांठिया के बलिदान दिवस पर इस बार जितना मजमा उनके समाधि स्थल में राजनीतिक दलों का लगा, उतना पहले कभी नहीं लगा. उपचुनाव सामने है इसीलिए सुबह से ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के विभिन्न गुटों ने यहां आकर अमर शहीद को याद किया, लेकिन शहीद के परिजनों ने इसे सिर्फ राजनीति करार दिया उनका दर्द है कि उनके पूर्वजों को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे.

family members of Shaheed Amarchand Banthia expressed doubts over the intention of politicians in gwalior
शहीद अमरचंद बांठिया के परिजनों ने राजनीतिज्ञों की मंशा पर जताया शक

दरअसल, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सराफा बाजार में रहने वाले और सिंधिया रियासत के खजांची शहीद अमरचंद बांठिया ने वीरांगना लक्ष्मीबाई के लिए अपने खजाने के द्वार खोल दिए थे. ताकि उनकी आर्थिक रूप से मदद हो सके. इसके कारण अंग्रेजों ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाया और उन पर देशद्रोह का आरोप लगाकर सराफा बाजार के इसी बरगद के पेड़ पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया था.

22 जून 1858 को हुई इस घटना का यह पीपल और बरगद का पेड़ गवाह है. दशकों तक उपेक्षा का शिकार रहे इस पेड़ के नीचे आखिरकार 2009 को तत्कालीन महापौर विवेक नारायण शेजवलकर ने अमर शहीद बांठिया की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की, तब से यहां हर साल 22 जून को बांठिया की याद में श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं.

बता दें कि बांठिया की पांचवी पीढ़ी इसी सराफा बाजार में रहती है, उनका कहना है कि हमारे पूर्वजों को वह सम्मान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था. क्योंकि वह सिर्फ सम्मान के भूखे हैं. राजनीतिक दलों के 22 जून को यहां आने और श्रद्धा सुमन अर्पित करने को वे सिर्फ राजनीति मानते हैं, इसके अलावा और कुछ नहीं.

ग्वालियर। शहर के सराफा बाजार स्थित प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अमरचंद बांठिया के बलिदान दिवस पर इस बार जितना मजमा उनके समाधि स्थल में राजनीतिक दलों का लगा, उतना पहले कभी नहीं लगा. उपचुनाव सामने है इसीलिए सुबह से ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के विभिन्न गुटों ने यहां आकर अमर शहीद को याद किया, लेकिन शहीद के परिजनों ने इसे सिर्फ राजनीति करार दिया उनका दर्द है कि उनके पूर्वजों को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे.

family members of Shaheed Amarchand Banthia expressed doubts over the intention of politicians in gwalior
शहीद अमरचंद बांठिया के परिजनों ने राजनीतिज्ञों की मंशा पर जताया शक

दरअसल, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सराफा बाजार में रहने वाले और सिंधिया रियासत के खजांची शहीद अमरचंद बांठिया ने वीरांगना लक्ष्मीबाई के लिए अपने खजाने के द्वार खोल दिए थे. ताकि उनकी आर्थिक रूप से मदद हो सके. इसके कारण अंग्रेजों ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाया और उन पर देशद्रोह का आरोप लगाकर सराफा बाजार के इसी बरगद के पेड़ पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया था.

22 जून 1858 को हुई इस घटना का यह पीपल और बरगद का पेड़ गवाह है. दशकों तक उपेक्षा का शिकार रहे इस पेड़ के नीचे आखिरकार 2009 को तत्कालीन महापौर विवेक नारायण शेजवलकर ने अमर शहीद बांठिया की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की, तब से यहां हर साल 22 जून को बांठिया की याद में श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं.

बता दें कि बांठिया की पांचवी पीढ़ी इसी सराफा बाजार में रहती है, उनका कहना है कि हमारे पूर्वजों को वह सम्मान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था. क्योंकि वह सिर्फ सम्मान के भूखे हैं. राजनीतिक दलों के 22 जून को यहां आने और श्रद्धा सुमन अर्पित करने को वे सिर्फ राजनीति मानते हैं, इसके अलावा और कुछ नहीं.

Last Updated : Jun 23, 2020, 10:37 AM IST
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