ग्वालियर। शहर में एक बड़ा चौंकाने वाला मामला सामने आया है. करीब 10 बीघा में एक पर्यटन स्थल है, जिसे जनकताल के नाम से जाना जाता है. उसे 2008 में निजी लोगों के नाम कर दिया. मामला सभी की आंखों से ओझल था, लेकिन गुमनाम शिकायत ने इस गड़बड़ झाले से पर्दा उठा दिया. आनन-फानन में कलेक्टर ने जांच टीम गठित कर उसी आनन-फानन में सरकारी घोषित कर दिया. (land fraud in gwalior)
250 साल पुराना है जनकताल
जनक ताल शहर के पर्यटन स्थलों में शुमार है. लगभग 250 साल पुराने जनकताल सिंधिया राजवंश के जनकोराव सिंधिया के नाम पर बनवाया गया था. जानू कोच्चि राव ने साल 1827 से लेकर 1857 तक ग्वालियर पर शासन किया था. जनकताल की एक और बारादरी बनी हुई है. एक ताल बीचों बीच निर्मित है. इस ताल का एक और पहाड़ है, जिसकी छांव ताल के पानी पर पड़ती है. इस साल को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. प्रशासनिक अफसरों की मानें तो उसी साल 2018 में निजी व्यक्तियों के नाम कर दिया था. जिसे वापस से इन्होंने सरकारी घोषित किया है. (gwalior historic janaktal)
सरकारी रिकॉर्ड खंगालने से हुआ खुलासा
कलेक्टर ने जब इस मामले में जुड़े सरकारी रिकॉर्ड को खंगाला, तो मालूम चला कि मिसल बंदोबस्त से लेकर सरकारी खसरों तक में साल 2007 तक यह जमीन शासकीय जमीन के तौर पर दर्ज थी. साल 2018 में बहोड़ापुर क्षेत्र के राजस्व अफसरों ने प्रमुख पर्यटन स्थल वाली जमीन को अलग-अलग स्याही और हैंड राइटिंग के जरिए खसरों में प्राइवेट लोगों के नाम चढ़ा दी थी. बहोड़ापुर सर्किल कि इस जमीन का सर्वे नंबर-18 और कुल रकबा 10 बीघा है. इस मामले को लेकर कलेक्टर का कहना है जनक ताल की जमीन को फिर से सरकारी घोषित कर दिया है. इस मामले के दोषियों पर कड़ी कार्रवाई भी की जा रही है. (gwalior administration on janaktal fraud)
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पर्यटन स्थल को लेकर जो चूक प्रशासनिक अमले की 2008 में सामने आई थी उसे मौजूदा कलेक्टर के द्वारा दोबारा से जनक ताल को सरकारी घोषित किया जा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि उन्हें राजस्व के अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है, जिन्होंने पर्यटन स्थल को निजी नामों पर चढ़ा दिया. इस साल का ऐतिहासिक इतिहास के साथ-साथ ग्वालियर की सबसे बड़ी वाटर बॉडीज के रूप में भी जाना जाता है.