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कई युद्धों का साक्षी रहा ये किला, 135 राजाओं ने यहां किया था राज

इस किले पर एक के बाद एक 135 राजाओं ने राज किया, मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ने इस किले पर कई बार आक्रमण किए. फिर भी इसकी भव्यता कम नहीं हुई. ये किला अपने दामन में सैकड़ों इतिहास समेटे हुए है.

ग्वालियर किला
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Published : Oct 29, 2019, 3:01 PM IST

Updated : Oct 29, 2019, 7:04 PM IST

ग्वालियर। हिंदुस्तान में कई ऐसे किले हैं, जिनका अपना गौरवशााली इतिहास रहा है, इन्हीं में से एक है ग्वालियर का किला. जहां कई राजाओं के शौर्य की गाथाएं हैं तो वहीं बर्बरता की भी निशानियां मौजूद हैं. देश के बड़े किलों में शामिल इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था, तीन किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की ऊंचाई 35 फीट है. शहर के बीचो बीच मौजूद इस किले की खूबसूरती देखने के लिए सात समंदर पार से भी लोग आते हैं, लेकिन इसकी खूबसूरती को मुगल शासक औरंगजेब ने नुकसान पहुंचाया, उसने किले में मौजूद कई मूर्तियों को तहस नहस कर दिया.

ग्वालियर किले का इतिहास

  • 727 ई. में सूरजसेन ने किले का निर्माण कराया
  • 989 सालों तक पाल वंश ने किले पर राज किया
  • पाल वंश के बाद प्रतिहार वंश ने किया राज
  • 1030 ई. में मोहम्मद गोरी ने आक्रमण किया
  • 1196 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया आक्रमण
  • 1231 ई. में इल्तुतमिश ने आक्रमण किया
  • 1540-1544 ई. में आराम शाह ने किया राज
  • मुगल वंश के बाद राणा और जाटों ने राज किया
  • आखिर में सिंधिया ने किया किला फतह

किला एक, इतिहास अनेक

ग्वालियर का किला अपने अंदर कई इतिहास समेटे हुए है, एक के बाद एक कई राजाओं ने इस किले पर राज किया, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया, जब इस किले को ईस्ट इंडिया कंपनी ने हथिया लिया. वक्त बीतता गया और साल 1780 में इस किले पर मराठों ने भी राज किया, पर ज्यादा समय तक इस पर राज नहीं कर पाए, साल 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस कब्जा लिया. साल 1804 और 1844 के बीच इस पर अंग्रेजों और सिंधिया घराने का राज रहा, आखिरकार 1844 में महाराजापुर की लड़ाई के बाद ये किला पूरी तरह से सिंधिया के कब्जे में आ गया.

दूर-दूर से आते हैं पर्यटक

ग्वालियर का किला इतना खूबसूरत है कि दूर-दूर से पर्यटक इसे निहारने आते हैं, किले की दीवारें और इसके प्राचीर इतने भव्य हैं कि देश ही नहीं विदेशों से ही लोग खिचें चले आते हैं. भले ही ग्वालियर के किले ने कई आक्रमण देखे हों लेकिन इसकी भव्यता आज भी बरकरार है.

ग्वालियर। हिंदुस्तान में कई ऐसे किले हैं, जिनका अपना गौरवशााली इतिहास रहा है, इन्हीं में से एक है ग्वालियर का किला. जहां कई राजाओं के शौर्य की गाथाएं हैं तो वहीं बर्बरता की भी निशानियां मौजूद हैं. देश के बड़े किलों में शामिल इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था, तीन किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की ऊंचाई 35 फीट है. शहर के बीचो बीच मौजूद इस किले की खूबसूरती देखने के लिए सात समंदर पार से भी लोग आते हैं, लेकिन इसकी खूबसूरती को मुगल शासक औरंगजेब ने नुकसान पहुंचाया, उसने किले में मौजूद कई मूर्तियों को तहस नहस कर दिया.

ग्वालियर किले का इतिहास

  • 727 ई. में सूरजसेन ने किले का निर्माण कराया
  • 989 सालों तक पाल वंश ने किले पर राज किया
  • पाल वंश के बाद प्रतिहार वंश ने किया राज
  • 1030 ई. में मोहम्मद गोरी ने आक्रमण किया
  • 1196 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया आक्रमण
  • 1231 ई. में इल्तुतमिश ने आक्रमण किया
  • 1540-1544 ई. में आराम शाह ने किया राज
  • मुगल वंश के बाद राणा और जाटों ने राज किया
  • आखिर में सिंधिया ने किया किला फतह

किला एक, इतिहास अनेक

ग्वालियर का किला अपने अंदर कई इतिहास समेटे हुए है, एक के बाद एक कई राजाओं ने इस किले पर राज किया, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया, जब इस किले को ईस्ट इंडिया कंपनी ने हथिया लिया. वक्त बीतता गया और साल 1780 में इस किले पर मराठों ने भी राज किया, पर ज्यादा समय तक इस पर राज नहीं कर पाए, साल 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस कब्जा लिया. साल 1804 और 1844 के बीच इस पर अंग्रेजों और सिंधिया घराने का राज रहा, आखिरकार 1844 में महाराजापुर की लड़ाई के बाद ये किला पूरी तरह से सिंधिया के कब्जे में आ गया.

दूर-दूर से आते हैं पर्यटक

ग्वालियर का किला इतना खूबसूरत है कि दूर-दूर से पर्यटक इसे निहारने आते हैं, किले की दीवारें और इसके प्राचीर इतने भव्य हैं कि देश ही नहीं विदेशों से ही लोग खिचें चले आते हैं. भले ही ग्वालियर के किले ने कई आक्रमण देखे हों लेकिन इसकी भव्यता आज भी बरकरार है.

Intro:ग्वालियर- ग्वालियर का किला देश में ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान में इतना मशहूर है कि लोग ऐसी सात समुंदर पार से देखने के लिए आते हैं क्योंकि इस किले में कई राजाओं के शौर्य की कहानी है तो किसी की बर्बरता की निशानी है...... इतिहास कहता है कि औरंगजेब इतना आक्रामक राजा हुआ करता था उसने देश की कई बड़ी मूर्तियों को खंडित करने का काम किया था उसी में से एक है ग्वालियर के किले पर मौजूद यह जैन धर्म की मूर्तियां। जिसे उसने अपनी राज की दौरान खंडित किया था। उसकी यह निशानी बर्बरता की कहानी बयां करती है।इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था 3 किलोमीटर के दायरे में फैले इसके लिए की ऊंचाई 35 फीट है। यह किला मध्यकालीन अद्भुत नमूने में से एक है जो शहर के बीचो बीच मौजूद है। यह देश की सबसे बड़ी किले में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इतिहासकारों के मुताबिक इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूरजसेन ने किया।इसलिए पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया। किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर पाल वंश ने राज किया। इसके बाद इस पर प्रतिहार वंश ने राज किया 1030 में मोहम्मद गजनी ने इसके लिए पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा।


Body:यह सिलसिला यहीं नहीं थमा 1196 ईस्वी में लंबी घेराबंदी के बाद को कुतुबुद्दीन ने इस किले को अपने अधीन किया। लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा। फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपनी अधीन किया। इसके बाद महाराजा देव परम ने ग्वालियर पर तोमर राज्य की स्थापना की। इतिहासकार बताते हैं के 1540 से 1544 में आराम शाह ने देश के ऊपर ग्वालियर में रहकर राज किया था।इस दौरान देश का खजाना भी ग्वालियर के किले पर मौजूद था। इसलिए ग्वालियर उस समय देश की राजधानी हुआ करता था। दरअसल आराम शाह के पिता शेरशाह सूरी ने अकबर के पिता हुमायूं को हराकर ग्वालियर किले पर कब्जा किया था।इसके बाद शेरशाह सूरी बांदा का किला फतह करने के दौरान किले में आग लग गई थी जिससे उसकी मौत हो गई थी ।जिसके बाद गद्दी आराम शाह के पास आ गई है लेकिन ज्यादा दिनों तक ग्वालियर किले पर राज नहीं कर सका। ग्वालियर के किले पर मुगल वंश के बाद इस पर राणा और जाटों का राज रहा। इस पर मराठों ने अपनी पताका लहराई। 1736 में जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया और 1756 तक इसे अपने अधीन रखा। 1789 में सिंधिया कुल के मराठा क्षत्रप ने इसे जीता और किले में सेना तैनात कर दी। लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया 1780 में इसका नियंत्रण गौड़ राणां छत्तर सिंग के पास गया जिन्होंने मराठा से इसे छीना। इसके बाद 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस हासिल किया।1804 और 1844 के बीच इसके लिए पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा। हालांकि जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद यह किला अंततः सिंधिया के कब्जे में आ गया।


Conclusion:बाईट - मार्कली फिनाले , जर्मनी बाईट - मनोज शर्मा , गाइड नोट - विश्व पर्यटन दिवस के लिए यह स्टोरी और raw मटेरियल के तौर पर भेजी है साथ ही इसमें छोटी-छोटी 4 पीटीसी शामिल है। जिसमें एक एक पीटीसी के बीच मे स्टोरी में कुछ सेकेंड का विजुअल जोड़ सकते हैं। उसके बाद एक क्लोज पीटीसी शामिल है। सर स्टोरी पैकेज बनाते समय एक बार मुझसे बात जरूर कर ले।
Last Updated : Oct 29, 2019, 7:04 PM IST
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