ग्वालियर। हिंदुस्तान में कई ऐसे किले हैं, जिनका अपना गौरवशााली इतिहास रहा है, इन्हीं में से एक है ग्वालियर का किला. जहां कई राजाओं के शौर्य की गाथाएं हैं तो वहीं बर्बरता की भी निशानियां मौजूद हैं. देश के बड़े किलों में शामिल इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था, तीन किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की ऊंचाई 35 फीट है. शहर के बीचो बीच मौजूद इस किले की खूबसूरती देखने के लिए सात समंदर पार से भी लोग आते हैं, लेकिन इसकी खूबसूरती को मुगल शासक औरंगजेब ने नुकसान पहुंचाया, उसने किले में मौजूद कई मूर्तियों को तहस नहस कर दिया.
ग्वालियर किले का इतिहास
- 727 ई. में सूरजसेन ने किले का निर्माण कराया
- 989 सालों तक पाल वंश ने किले पर राज किया
- पाल वंश के बाद प्रतिहार वंश ने किया राज
- 1030 ई. में मोहम्मद गोरी ने आक्रमण किया
- 1196 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया आक्रमण
- 1231 ई. में इल्तुतमिश ने आक्रमण किया
- 1540-1544 ई. में आराम शाह ने किया राज
- मुगल वंश के बाद राणा और जाटों ने राज किया
- आखिर में सिंधिया ने किया किला फतह
किला एक, इतिहास अनेक
ग्वालियर का किला अपने अंदर कई इतिहास समेटे हुए है, एक के बाद एक कई राजाओं ने इस किले पर राज किया, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया, जब इस किले को ईस्ट इंडिया कंपनी ने हथिया लिया. वक्त बीतता गया और साल 1780 में इस किले पर मराठों ने भी राज किया, पर ज्यादा समय तक इस पर राज नहीं कर पाए, साल 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस कब्जा लिया. साल 1804 और 1844 के बीच इस पर अंग्रेजों और सिंधिया घराने का राज रहा, आखिरकार 1844 में महाराजापुर की लड़ाई के बाद ये किला पूरी तरह से सिंधिया के कब्जे में आ गया.
दूर-दूर से आते हैं पर्यटक
ग्वालियर का किला इतना खूबसूरत है कि दूर-दूर से पर्यटक इसे निहारने आते हैं, किले की दीवारें और इसके प्राचीर इतने भव्य हैं कि देश ही नहीं विदेशों से ही लोग खिचें चले आते हैं. भले ही ग्वालियर के किले ने कई आक्रमण देखे हों लेकिन इसकी भव्यता आज भी बरकरार है.