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राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जयंती पर दिग्गजों ने किया याद! 'लोकमाता' के इस फैसले ने सबको कर दिया था हैरान

राजमाता विजयाराजे सिंधिया की आज जयंती है, उन्हें प्रदेश के दिग्गज नेताओं ने श्रद्धांजलि दी. राजमाता बीजेपी की संस्थापक सदस्य थीं, यही वजह है कि बीजेपी उन्हें सिर आंखों पर बैठाए रखती है, राजमाता की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बेटे की हार के डर से ऐन वक्त पर उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी को बैठा दिया था.

birth anniversary of Rajmata Vijayaraje Scindia
राजमाता विजयाराजे सिंधिया को श्रद्धांजलि देते सीएम शिवराज
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Published : Oct 12, 2021, 2:19 PM IST

ग्वालियर। भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक सदस्यों में से एक रहीं कैलाशवासी राजमाता विजयाराजे सिंधिया की 102वीं जयंती पर रियासत कालीन छतरी परिसर में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. इस मौके पर केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, उनकी मां माधवी राजे सिंधिया, पत्नी प्रियदर्शनी राजे सिंधिया, पुत्र महाआर्यमन सिंधिया के अलावा प्रदेश के कैबिनेट मंत्री नरोत्तम मिश्रा, प्रद्युम्न सिंह तोमर, प्रभु राम चौधरी, तुलसीराम सिलावट सहित पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा, रुस्तम सिंह, ऐदल सिंह कंषाना, गिर्राज दंडोतिया, अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष लाल सिंह आर्य मौजूद रहे. सभी ने कैलाशवासी राजमाता विजयराजे सिंधिया को श्रद्धा सुमन अर्पित किए और उन्हें एक महान जनसेवक और परोपकारी नेता बताया. लोक कलाकारों ने राजमाता की याद में भजन गाया.

सागर में जन्मी थीं लेखा देवेश्वरी देवी, पढ़ें विजया राजे सिंधिया से लेकर राजमाता तक का सफर

माधवराव को जिताने के लिए बीजेपी ने अपने प्रत्याशी को बैठाया

राजपथ से जनपथ तक का सफर तय करने वाली जनसंघ की संस्थापक रहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया बीजेपी और जनसंघ की सर्वोच्च नेता रहीं, राजमाता की जिंदगी काफी उथल-पुथल भरी रही है, उनके जीवन के कुछ फैसले तो ऐसे हैं, जो इतिहास बन गए हैं और कुछ फैसले उन्होंने ऐसे लिए हैं, जो आज भी चर्चा का विषय बने रहते हैं, ऐसा ही एक फैसला सन 1977 में राजमाता ने लिया था, जिसके बाद तहलका मच गया था. हुआ ये था कि ऐन मतदान के वक्त बेटे को हार से बचाने के लिए राजमाता ने बीजेपी प्रत्याशी को बैठा दिया था, जिससे माधवराव रिकॉर्ड मतों से विजयी हुए थे.

राजनीतिक-पारिवारिक मतभेद के बाद भी करती थी बेटे की मदद

राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जनसंघ और बीजेपी में कितनी ताकत थी, पार्टी के नेता उन पर कितना भरोसा करते थे, इस बात का एक बड़ा सुबूत है. शुरू से ही राजमाता और उनके बेटे माधवराव सिंधिया एक साथ बहुत कम रहे हैं. भले ही माधवराव सिंधिया ने 1972 में जनसंघ से चुनाव लड़ा था, लेकिन 1976-77 में वह कांग्रेस में चले गए. तब से न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि पारिवारिक रूप से भी अलग अलग रहने लगे थे और दोनों जय विलास महल के अलग-अलग हिस्सों में रहने लगे थे, उसके बाद जब माधव सिंधिया प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने, उस समय हवाला मामले में उनका नाम आने के बाद पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया था, उसके बाद 1977 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी थी. इसके बावजूद वह माधवराव की मदद करती थीं.

माधवराव की हार के डर से राजमाता ने वापस लिया नामांकन

जब माधवराव सिंधिया निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे, तब कांग्रेस मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस पार्टी थी. उस समय उनके सामने कांग्रेस के उम्मीदवार शशि भूषण भारती मैदान में थे और बीजेपी ने भी अपना उम्मीदवार माधव शंकर इंदिरा पुरकर को घोषित कर दिया था, घोषणा के बाद जोरों से प्रचार-प्रसार चल रहा था, लेकिन मतदान के ऐन वक्त अचानक बीजेपी ने अपने प्रत्याशी को वापस लेने की घोषणा कर दी. इस सूचना से पूरे देश में तहलका मच गया था. इसके पीछे राजमाता विजयराजे सिंधिया की ताकत थी. बताया जाता है कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने पहले ही यह जान लिया था कि उनके बेटे की बड़ी हार होने वाली है. यही वजह है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से आग्रह कर बीजेपी उम्मीदवार को बैठा दिया था. इसका नतीजा यह हुआ कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया रिकॉर्ड मतों से विजयी हुए थे.

आज राजमाता विजयराजे सिंधिया की है जयंती

आज यानि 12 अक्टूबर को राजमाता विजयराजे सिंधिया की जयंती है और इस मौके पर उनकी पोते केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर पहुंचे और उनके साथ उनके समर्थक मंत्री भी मौजूद रहे. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया राजमाता विजयराजे सिंधिया की छतरी पर पहुंचकर पुष्पांजलि अर्पित किए, राजमाता की जयंती के मौके पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व कई मंत्री भी राजमाता को श्रद्धांजलि देने पहुंचे.

ग्वालियर। भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक सदस्यों में से एक रहीं कैलाशवासी राजमाता विजयाराजे सिंधिया की 102वीं जयंती पर रियासत कालीन छतरी परिसर में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. इस मौके पर केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, उनकी मां माधवी राजे सिंधिया, पत्नी प्रियदर्शनी राजे सिंधिया, पुत्र महाआर्यमन सिंधिया के अलावा प्रदेश के कैबिनेट मंत्री नरोत्तम मिश्रा, प्रद्युम्न सिंह तोमर, प्रभु राम चौधरी, तुलसीराम सिलावट सहित पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा, रुस्तम सिंह, ऐदल सिंह कंषाना, गिर्राज दंडोतिया, अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष लाल सिंह आर्य मौजूद रहे. सभी ने कैलाशवासी राजमाता विजयराजे सिंधिया को श्रद्धा सुमन अर्पित किए और उन्हें एक महान जनसेवक और परोपकारी नेता बताया. लोक कलाकारों ने राजमाता की याद में भजन गाया.

सागर में जन्मी थीं लेखा देवेश्वरी देवी, पढ़ें विजया राजे सिंधिया से लेकर राजमाता तक का सफर

माधवराव को जिताने के लिए बीजेपी ने अपने प्रत्याशी को बैठाया

राजपथ से जनपथ तक का सफर तय करने वाली जनसंघ की संस्थापक रहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया बीजेपी और जनसंघ की सर्वोच्च नेता रहीं, राजमाता की जिंदगी काफी उथल-पुथल भरी रही है, उनके जीवन के कुछ फैसले तो ऐसे हैं, जो इतिहास बन गए हैं और कुछ फैसले उन्होंने ऐसे लिए हैं, जो आज भी चर्चा का विषय बने रहते हैं, ऐसा ही एक फैसला सन 1977 में राजमाता ने लिया था, जिसके बाद तहलका मच गया था. हुआ ये था कि ऐन मतदान के वक्त बेटे को हार से बचाने के लिए राजमाता ने बीजेपी प्रत्याशी को बैठा दिया था, जिससे माधवराव रिकॉर्ड मतों से विजयी हुए थे.

राजनीतिक-पारिवारिक मतभेद के बाद भी करती थी बेटे की मदद

राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जनसंघ और बीजेपी में कितनी ताकत थी, पार्टी के नेता उन पर कितना भरोसा करते थे, इस बात का एक बड़ा सुबूत है. शुरू से ही राजमाता और उनके बेटे माधवराव सिंधिया एक साथ बहुत कम रहे हैं. भले ही माधवराव सिंधिया ने 1972 में जनसंघ से चुनाव लड़ा था, लेकिन 1976-77 में वह कांग्रेस में चले गए. तब से न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि पारिवारिक रूप से भी अलग अलग रहने लगे थे और दोनों जय विलास महल के अलग-अलग हिस्सों में रहने लगे थे, उसके बाद जब माधव सिंधिया प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने, उस समय हवाला मामले में उनका नाम आने के बाद पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया था, उसके बाद 1977 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी थी. इसके बावजूद वह माधवराव की मदद करती थीं.

माधवराव की हार के डर से राजमाता ने वापस लिया नामांकन

जब माधवराव सिंधिया निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे, तब कांग्रेस मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस पार्टी थी. उस समय उनके सामने कांग्रेस के उम्मीदवार शशि भूषण भारती मैदान में थे और बीजेपी ने भी अपना उम्मीदवार माधव शंकर इंदिरा पुरकर को घोषित कर दिया था, घोषणा के बाद जोरों से प्रचार-प्रसार चल रहा था, लेकिन मतदान के ऐन वक्त अचानक बीजेपी ने अपने प्रत्याशी को वापस लेने की घोषणा कर दी. इस सूचना से पूरे देश में तहलका मच गया था. इसके पीछे राजमाता विजयराजे सिंधिया की ताकत थी. बताया जाता है कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने पहले ही यह जान लिया था कि उनके बेटे की बड़ी हार होने वाली है. यही वजह है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से आग्रह कर बीजेपी उम्मीदवार को बैठा दिया था. इसका नतीजा यह हुआ कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया रिकॉर्ड मतों से विजयी हुए थे.

आज राजमाता विजयराजे सिंधिया की है जयंती

आज यानि 12 अक्टूबर को राजमाता विजयराजे सिंधिया की जयंती है और इस मौके पर उनकी पोते केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर पहुंचे और उनके साथ उनके समर्थक मंत्री भी मौजूद रहे. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया राजमाता विजयराजे सिंधिया की छतरी पर पहुंचकर पुष्पांजलि अर्पित किए, राजमाता की जयंती के मौके पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व कई मंत्री भी राजमाता को श्रद्धांजलि देने पहुंचे.

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