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67th Foundation day of MP: स्थापना दिवस पर उभरा ग्वालियर का दर्द, एमपी राजधानी न बनने का आज भी लोगों को है मलाल

स्वतंत्रता के बाद जब मध्य भारत का गठन हुआ तो उसकी राजधानी ग्वालियर बनी थी और यहां के ऐतिहासिक मोती महल में मध्य भारत के पहले मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल ने शपथ ली थी. लेकिन, जब मध्य प्रदेश का 1 नवंबर 1956 को गठन हुआ तो राज्य की राजधानी ग्वालियर नहीं भोपाल बनी. राजधानी खोने का दर्द ग्वालियर वासियों को आज भी सालता है. (67th Foundation day of MP) (Gwalior not becoming MP capital)

67th Foundation day of MP
स्थापना दिवस पर उभरा ग्वालियर का दर्द
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Published : Nov 1, 2022, 5:50 PM IST

Updated : Nov 1, 2022, 6:10 PM IST

ग्वालियर। एक नवंबर को मध्य प्रदेश अपना स्थापना दिवस हर्षोल्लास के साथ मना रहा है. हालांकि, मध्य प्रदेश के गठन के बाद प्रदेश ने विस्तार पाया और विकास और संस्कृति का बहुत विस्तार किया, लेकिन ग्वालियर ने इसके गठन के साथ अपना एक गौरव खोया भी जिसकी कसक आज भी यहां के लोगों को रहती है और अनेक ऐसी इमारतें हैं जो स्वतंत्र भारत के बाद भी मिले अपने रसूख की गवाही देती हैं. देश के स्वतंत्र होने और राज्यों के विलीनीकरण के बाद बनाए गए राज्य मध्य भारत की राजधानी ग्वालियर ही बनाई गयी थी और यहां के ऐतिहासिक मोती महल में ही मध्य भारत के पहले मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल ने शपथ ली थी.

15 फरवरी 1947 को मध्य भारत के गठन पर चर्चा हुई: देश आजाद होने के बाद से ही राज्यों के गठन को लेकर चर्चा शुरू हो गयी थी, लेकिन इसको गति मिली स्वतंत्रता के बाद. इसके काम को तब देशी राज लोक परिषद ने अपने हाथ में ले लिया था. हालांकि पहले एक प्रस्ताव था कि बुंदेलखंड सहित मध्यभारत प्रान्त बनाया जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. 15 फरवरी 1947 को इंदौर में परिषद की बैठक हुई इसमें मध्य भारत के गठन पर चर्चा हुई. इसमें ग्वालियर के सदस्यों ने एक संघ का प्रस्ताव रखा. बुंदेलखंड और बघेलखंड के पैंतीस राज्यों को मिलाकर विन्ध्य प्रदेश के नाम से संघ बनाने की सहमति तो हो गयी, लेकिन मध्य भारत में एक या दो संघ बनाने पर भीषण संघर्ष की स्थिति निर्मित हो गयी थी, इसमें राजधानी का विवाद भी शुरू हो गया.

वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली

भोपाल के नवाब मध्य भारत में शामिल होने को नहीं थे राजी: इस बीच भोपाल के नवाब ने मध्य भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया. इससे राजाओं में खलबली मच गयी. इंदौर और ग्वालियर की धारा सभाएं मध्य भारत के लिए प्रस्ताव पास कर चुकीं थीं. अचानक वल्लभ भाई पटेल बीमार पड़ गए तो मामला सीधे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पास पहुंचा. लम्बी बहस और बातचीत के बाद मामला फिर वल्लभ भाई पटेल के पास पहुंचा और आखिरकार राज्यों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए जिसे "कोवनन्ट" नाम दिया गया. इस संघ को अंग्रेजी में यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ ग्वालियर, इंदौर एन्ड मालवा नाम दिया गया, लेकिन कोष्टक में मध्यभारत भी लिखा गया. कालांतर में यही नाम प्रचलित हो गया.

MP Foundation Day: समृद्ध और वैभवशाली इतिहास के बाद भी ग्वालियर नहीं बना MP की राजधानी, जानिए क्यों हुआ विरोध

इस नए राज्य में ग्वालियर, इंदौर, धार, देवास, जावरा, रतलाम, बड़वानी, देवास छोटी पांत, राजगढ़, झाबुआ, नरसिंहगढ़, अलीराजपुर, सैलाना, खिलचीपुर, सीतामऊ, कुरवाई, जोबट, काठियाबाड़ा, पिपलोदा और मथवड़ आदि शामिल हुईं. विधानसभा का नाम धारा सभा रखा गया और इसके राज प्रमुख ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा जीवाजी राव सिंधिया बनाये गए और उप राजप्रमुख इंदौर के महाराजा होल्कर. राजधानी को लेकर भी शक्ति संतुलन स्थापित करते हुए इसे छह - छह माह के लिए मुकर्रर रखा गया. ग्रीष्मकालीन राजधानी ग्वालियर में और शीतकालीन राजधानी इंदौर में रखी गई. राज्यों के विलीनीकरण और मध्य भारत के गठन के बाद 28 मई 1948 को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू स्वयं ग्वालियर आये और उन्होंने इस नव गठित मध्य भारत राज्य का उद्घाटन किया. उन्होंने ही जीवाजी राव सिंधिया को राज प्रमुख के तौर पर शपथ दिलाई. इस राज्य में कुल 26 जिले बनाए गए.(67th Foundation day of MP) (Gwalior not becoming MP capital)(MP Foundation Day)

ग्वालियर। एक नवंबर को मध्य प्रदेश अपना स्थापना दिवस हर्षोल्लास के साथ मना रहा है. हालांकि, मध्य प्रदेश के गठन के बाद प्रदेश ने विस्तार पाया और विकास और संस्कृति का बहुत विस्तार किया, लेकिन ग्वालियर ने इसके गठन के साथ अपना एक गौरव खोया भी जिसकी कसक आज भी यहां के लोगों को रहती है और अनेक ऐसी इमारतें हैं जो स्वतंत्र भारत के बाद भी मिले अपने रसूख की गवाही देती हैं. देश के स्वतंत्र होने और राज्यों के विलीनीकरण के बाद बनाए गए राज्य मध्य भारत की राजधानी ग्वालियर ही बनाई गयी थी और यहां के ऐतिहासिक मोती महल में ही मध्य भारत के पहले मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल ने शपथ ली थी.

15 फरवरी 1947 को मध्य भारत के गठन पर चर्चा हुई: देश आजाद होने के बाद से ही राज्यों के गठन को लेकर चर्चा शुरू हो गयी थी, लेकिन इसको गति मिली स्वतंत्रता के बाद. इसके काम को तब देशी राज लोक परिषद ने अपने हाथ में ले लिया था. हालांकि पहले एक प्रस्ताव था कि बुंदेलखंड सहित मध्यभारत प्रान्त बनाया जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. 15 फरवरी 1947 को इंदौर में परिषद की बैठक हुई इसमें मध्य भारत के गठन पर चर्चा हुई. इसमें ग्वालियर के सदस्यों ने एक संघ का प्रस्ताव रखा. बुंदेलखंड और बघेलखंड के पैंतीस राज्यों को मिलाकर विन्ध्य प्रदेश के नाम से संघ बनाने की सहमति तो हो गयी, लेकिन मध्य भारत में एक या दो संघ बनाने पर भीषण संघर्ष की स्थिति निर्मित हो गयी थी, इसमें राजधानी का विवाद भी शुरू हो गया.

वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली

भोपाल के नवाब मध्य भारत में शामिल होने को नहीं थे राजी: इस बीच भोपाल के नवाब ने मध्य भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया. इससे राजाओं में खलबली मच गयी. इंदौर और ग्वालियर की धारा सभाएं मध्य भारत के लिए प्रस्ताव पास कर चुकीं थीं. अचानक वल्लभ भाई पटेल बीमार पड़ गए तो मामला सीधे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पास पहुंचा. लम्बी बहस और बातचीत के बाद मामला फिर वल्लभ भाई पटेल के पास पहुंचा और आखिरकार राज्यों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए जिसे "कोवनन्ट" नाम दिया गया. इस संघ को अंग्रेजी में यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ ग्वालियर, इंदौर एन्ड मालवा नाम दिया गया, लेकिन कोष्टक में मध्यभारत भी लिखा गया. कालांतर में यही नाम प्रचलित हो गया.

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इस नए राज्य में ग्वालियर, इंदौर, धार, देवास, जावरा, रतलाम, बड़वानी, देवास छोटी पांत, राजगढ़, झाबुआ, नरसिंहगढ़, अलीराजपुर, सैलाना, खिलचीपुर, सीतामऊ, कुरवाई, जोबट, काठियाबाड़ा, पिपलोदा और मथवड़ आदि शामिल हुईं. विधानसभा का नाम धारा सभा रखा गया और इसके राज प्रमुख ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा जीवाजी राव सिंधिया बनाये गए और उप राजप्रमुख इंदौर के महाराजा होल्कर. राजधानी को लेकर भी शक्ति संतुलन स्थापित करते हुए इसे छह - छह माह के लिए मुकर्रर रखा गया. ग्रीष्मकालीन राजधानी ग्वालियर में और शीतकालीन राजधानी इंदौर में रखी गई. राज्यों के विलीनीकरण और मध्य भारत के गठन के बाद 28 मई 1948 को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू स्वयं ग्वालियर आये और उन्होंने इस नव गठित मध्य भारत राज्य का उद्घाटन किया. उन्होंने ही जीवाजी राव सिंधिया को राज प्रमुख के तौर पर शपथ दिलाई. इस राज्य में कुल 26 जिले बनाए गए.(67th Foundation day of MP) (Gwalior not becoming MP capital)(MP Foundation Day)

Last Updated : Nov 1, 2022, 6:10 PM IST
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