डिंडौरी। डिंडौरी जिले की दूसरी विधानसभा शाहपुरा है. इस विधानसभा में फिलहाल कांग्रेस से भूपेंद्र मरावी विधायक हैं. 2018 के चुनाव में भूपेंद्र मरावी ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी ओमप्रकाश धुर्वे को 34000 वोटों से हराया था, हालांकि 2013 में यह विधानसभा भारतीय जनता पार्टी के पास थी, यहां से ओमप्रकाश धुर्वे कांग्रेस की गंगा बाई को हराकर जीते थे. 2008 में गंगाबाई भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को हराकर जीती थी. कुल मिलाकर बीते तीन चुनाव को यदि देखा जाए तो यहां कोई भी प्रत्याशी दूसरी बार जीत कर विधायक नहीं बना है, लेकिन बीजेपी ने एक बार फिर यहां दांव ओमप्रकाश धुर्वे पर लगाया है.
गोंडवाना पार्टी भी उतरेगी चुनावी मैदान में: ओमप्रकाश धुर्वे को पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया और उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया. इसके बाद उन्हें शाहपुरा से बीजेपी की टिकट दे दी. हालांकि अभी तक कांग्रेस की ओर से टिकट की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस भी मौजूदा विधायक भूपेंद्र मरावी की जगह हैं. जिला पंचायत की सदस्य कृष्ण रेती को टिकट दे सकती है. वहीं बीजेपी के नेता चैन सिंह भवेदी भी चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतर सकते हैं. इसके अलावा इस विधानसभा में गोंडवाना भी पूरी तैयारी के साथ शाहपुरा विधानसभा में अपना प्रत्याशी उतारेगी.
सामाजिक ताना-बाना: डिंडौरी जिले की इस विधानसभा में भी आदिवासियों का माहौल है. यहां पर भी लगभग 60% आबादी आदिवासियों की है. आदिवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि है, लेकिन पानी की कमी की वजह से यहां खेती बहुत अच्छे तरीके से नहीं हो पाती और आदिवासियों को साल भर में एक फसल के भरोसे रहना पड़ता है. इसलिए ज्यादातर आदिवासी बरसात में मक्का और धान का उत्पादन करते हैं. यह फसल भी भगवान भरोसे होती है.
हरियाणा के लोगों की खेती: डिंडौरी में हरियाणा से आए लोग बड़े पैमाने पर खेती करते हैं. हरियाणा के लोग यहां पर नदी किनारे आदिवासियों की जमीन किराए पर लेते हैं. वहां आधुनिक तरीके से शिमला मिर्च, टमाटर, हरी मिर्च जैसी फसलों की खेती हो रही है. हरियाणा के किसानों की वजह से कुछ स्तर तक स्थानीय आदिवासियों का पलायन भी रोका है, क्योंकि सब्जी के इन खेतों में स्थानीय आदिवासी मजदूर को काम मिल जाता है. वहीं दूसरी तरफ हरियाणा के खेती के कारोबारी को यहां सस्ती जमीन और सस्ती लेबर मिलने की वजह से वे यहां कारोबार करते हैं.
अपर नर्मदा परियोजना: डिंडौरी जिले में ही पथरीली जमीन है और पानी की बेहद कमी है. इसलिए सरकार ने अपर नर्मदा परियोजना के तहत 2500 करोड़ रुपए की लागत के चार बांध स्वीकृत किए थे. इन चारों बांधों के बन जाने के बाद डिंडौरी में पानी की कमी नहीं होती, लेकिन सरकार ने इस विषय में बहुत गंभीरता नहीं दिखाई और स्थानीय स्तर पर होने वाले विरोध के चलते इन बांधों का काम शुरू नहीं हो पाया. यदि अपर नर्मदा परियोजना के इन बांधों को बना दिया जाता, तो डिंडौरी की तस्वीर अलग होती और डिंडौरी के आदिवासी को देश-विदेश में पलायन करके रोजगार खोजने के लिए न जाना पड़ता.
लड़कियों के गायब होने की समस्या: रोजगार के चलते डिंडौरी का आदिवासी अलग-अलग राज्यों में काम करने के लिए जाते हैं. यहां उनकी लड़कियां भी काम करने के लिए निकलते हैं, लेकिन बहुत सी लड़कियां वापस नहीं आ पाती, इसलिए डिंडौरी के थानों में बड़े पैमाने पर आदिवासी लड़कियों के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज है. इस इलाके में यह बड़ी समस्या है, लेकिन इसका समाधान किसी राजनीतिक दल के पास नहीं है.
स्वास्थ्य की बुरी स्थिति: डिंडौरी की आबादी को देखते हुए यहां के सरकारी अस्पताल में 42 पद स्वीकृत हैं, लेकिन मात्र चार डॉक्टर ही यहां सरकारी अस्पताल में काम करते हैं और वह भी ज्यादातर समय अपनी क्लीनिक में देते हैं. डिंडोरी की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था झोला छाप डॉक्टरों के भरोसे चलती है. वहीं दूसरी तरफ शाहपुरा में भी नशाखोरी बड़े पैमाने पर है. आदिवासी देसी के अलावा मसाला शराब का इस्तेमाल करते हैं. इसकी वजह से न केवल उनकी आज सामाजिक मौत होती है, बल्कि वह गंभीर बीमारियों से भी ग्रसित हो रहे हैं. राजनीतिक समीकरण के अनुसार यदि एंटी इनकंबेंसी काम करती है तो इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी के विधायक पद के प्रत्याशी ओमप्रकाश धुर्वे को ज्यादा मिलेगा, क्योंकि विधायक रहते हुए भूपेंद्र मरावी इस विधानसभा के लिए बहुत ज्यादा काम नहीं करवा पाए हैं.