धार। प्राचीन काल से बिना किसी सहारे के एक ही पत्थर पर खड़ी भारी भरकम साढ़े 12 फिट लंबी और साढ़े 3 फिट चौड़ी विशाल चमत्कारी प्रतिमा बलवारी वाले बालाजी की है. बलवारी वाले बालाजी की यह प्रतिमा स्वयंभू है, जिनके चरणों में पाताल देवी चंडिका का वास है. बताया जाता है कि इस मंदिर में भक्त उल्टे स्वास्तिक बना कर अपनी मन्नत मांगते है और मन्नत पूरी होने पर स्वास्तिक को सीधा करने आते हैं.
त्रेता युग में जब अहिरावण और महिरावण ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को बंदी बनाकर पाताल लोक में बलि देने के लिए ले गए थे तभी भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान पाताल लोक जाकर देवी चंडिका से राम और लक्ष्मण की रक्षा के लिए प्रार्थना की थी. जिसके बाद पाताल लोक की देवी चंडिका ने अपने सर पर हनुमान जी को जगह दी और अहिरावण और महिरावण का वध किया था. तब से उसी स्वरूप में यह बलवारी वाले बालाजी की प्रतिमा यहां स्थापित है जिनके चरणों में पाताल देवी चंडिका का वास है.
बलवारी वाले बालाजी मंदिर के पुजारी चंदन दास वैष्णव ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि बलवारी वाले बालाजी के सर पर काफी समय तक छत नहीं थी. यहां जब भी किसी भक्त द्वारा मंदिर की छत का निर्माण कराया गया वह किसी कारणवश टिक नहीं पाई. लेकिन काफी वर्षों पूर्व बालाजी ने इंदौर निवासी अपने एक भक्त नरसिंह दास जी खंडेलवाल को उनसे अपने सर के ऊपर छत बनवाने का स्वप्न दिया था. उसके बाद से ही इस चमत्कारी बालाजी के सर के ऊपर के छत का निर्माण कराया गया था.
बता दें कि बलवारी वाले बालाजी अपने भक्तों को सुबह बालस्वरूप में दोपहर को युवा स्वरूप में और शाम के समय वृद्ध स्वरूप में दर्शन देते हैं. ऐसा बताया जाता है कि पांडवों ने भी अपने वनवास के समय बलवारी वाले बालाजी के दर्शन किए थे. हनुमान जयंती और राम जयंती के मौके पर यहां पर विशाल भंडारे और महापूजा महाआरती का आयोजन किया जाता है. उस समय लाखों की संख्या में बलवारी वाले बालाजी के भक्त यहां पहुंचते हैं.