देवास। खातेगांव में खिवनी अभयारण्य का जंगल वन संपदा की दृष्टि से काफी समृद्ध माना जाता है, लेकिन इन दिनों वन माफिया पेडों की अवैध कराई कर जंगल उजाड़ रहे हैं. विभाग की उदासीनता के चलते सागौन के विशालकाय पेड़ों की रात-दिन कटाई कर रहे हैं, जिससे क्षेत्र के जंगल का अस्तित्व खतरे में है.
सरकार अभयारण्य पर्यटन के लिए विकसित कर रहा है, लेकिन इन दिनों खिवनी अभयारण्य के जंगल को लकड़ी माफियाओं की ऐसी नजर लगी की जंगल दिन प्रतिदिन मैदान में बदलता जा रहा है. जंगल में सिर्फ ठूठ ही ठूठ दिख रहे हैं. जंगल में सागौन के पेड़ों की अवैध कटाई के बाद मौके पर ही सिल्लियां भी बनाई जाती हैं, काम की लकड़ी अपने साथ ले जाते हैं और बाकी अवशेष मौके पर छोड़ जाते हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जंगल की अंधाधुंध कटाई बेखौफ जारी है.
खिवनी अभयारण्य में आने वाले जंगल के कक्षों में इन दिनों सागवान के पेड़ों की कटाई लगातार जारी है, जिसका ताजा उदाहरण कक्ष क्रमांक 185 और 192 सहित अन्य कक्षों में आसानी से देखा जा सकता है. यह कक्ष ग्राम ओंकारा के मजरा ग्राम टाण्डा से लगा हुआ है, जिसमें लगातार सागौन के पेड़ों की अवैध कटाई हुई है और धड़ल्ले से जारी भी है.
लकड़ी माफिया सिल्लियां बनाकर बेखौफ ले जा रहे हैं. वैसे तो खिवनी अभयारण्य का जंगल भिलाई से पटरानी-निवारदी गांव से लगा हुआ है, जहां जंगल में हुई पेड़ों की कटाई से इनकार नहीं किया जा सकता. जंगल से अनगिनत पेड़ काटे गए, जिसका प्रमाण ठूठ और पेड़ के पास पड़ी लकड़ियों की टहनियां दे रही हैं. जंगल के रास्तों पर बैलगाड़ी के पहियों के निशान भी आसानी से देखे जा सकते हैं.
बेरोकटोक घुस रहे लोग
इस तरह जंगल में हो रही नुकसानी विभाग के कर्मचारियों की उदासीनता बयां कर रही है. लकड़ी माफिया भी सागवान के पेड़ों की कटाई में लगे है. जंगल में कोई भी व्यक्ति बेरोकटोक घुस जाता है, जबकि खिवनी अभयारण्य का जंगल वन्य प्राणियों के लिए आरक्षित क्षेत्र है, जिसमें मानवों के प्रवेश से वन्य जीवों के जीवन पर भी संकट छाया रहता है.
मुंह चिढ़ाती ईंट की भट्टियां
इधर ग्राम खिवनी अभयारण्य के जंगल से लगे कई खेतो में ईंट की भट्टियां लगी हुई हैं, जो जंगल की कटाई का एक कारण माना जा सकता है. जगह-जगह लगी ईंट की भट्टियां वन विभाग को मुंह चिड़ा रही हैं. विभाग की ऐसी क्या मजबूरी है जो जंगल से लगे खेतों की भट्टियों पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है. इससे वन विभाग के जिम्मेदारों की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
चौकी बनी खंडहर
टाण्डा गांव के बाहर वर्षों पहले वन विभाग ने कर्मचारियों को ठहरने के लिए लाखों रुपये खर्च करके भवन का निर्माण किया, लेकिन इस भवन में कर्मचारियों के न रहने से यह भवन खंडहर में तब्दील हो गया है. वर्तमान में यह भवन असामाजिक तत्वों का अड्डा बना हुआ है. सूत्रों की माने तो जंगल की निगरानी के लिए वन विभाग ने ये कक्ष बनवाया लेकिन वन विभाग के अधिकारी उक्त भवन में न रहते हुए अन्य स्थानों से कभी-कभार जंगल में पहुंचते हैं. यदि इस भवन में कर्मचारी रहने लगे तो कुछ हद तक जंगल में पेड़ों की अवैध कटाई पर अंकुश लग सकता है.
क्या कह रहे अधिकारी
इस संबंध में खिवनी अभयारण्य के अधीक्षक पीसी दायमा से चर्चा की तो उन्होंने गोल मोल जवाब देते हुए बताया कि आपके माध्यम से मामला मेरे संज्ञान में आया है. जंगल में पेड़ों की अवैध कटाई एवं परिवहन की जानकारी लेकर बताऊंगा, ईंट की भट्टियों की भी जानकारी ली जा रही है.