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दमोह और बक्सवाह में हीरा खनन परियोजना का विरोध, जंगल बचाने के लिए पेड़ों से चिपके लोग - बक्सवाह फोरेस्ट न्यूज

दमोह जिले की सीमा से लगे बक्सवाह में हीरा खनन परियोजना को लेकर जंगल में पेड़ों के काटे जाने की खबर के बाद पर्यावरणप्रमियों में आक्रोश है. और जंगल बचाने की मुहिम को तेज कर दिया है. बता दें कि बक्सवाह की सीमा से लेग दमोह जिले के बटियागढ़, पथरिया, रजपुरा आदि गांवों के युवा और पर्यावरण प्रेमी भी अब चिपको आंदोलन की तरह पेड़ों से चिपककर सेव बक्सवाह फोरेस्ट का समर्थन कर रहे हैं.

जंगल बचाने के लिए पेड़ों से चिपके लोग
जंगल बचाने के लिए पेड़ों से चिपके लोग
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Published : May 28, 2021, 5:43 PM IST

दमोह। जिले की सीमा से लगे छतरपुर जिले के बक्सवाह में हीरा खनन परियोजना के लिए जंगल में लाखों पेड़-पौधों की कटाई होने की खबर के बाद समूचे बुंदेलखंड के पर्यावरण प्रेमियों में आक्रोश है. बताया जा रहा है कि हीरा खनन के लिए बक्सवाह के जंगलों में एक बहुत बड़े भाग में हरे-भरे पेड़ों की कटाई होनी है, इतने बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई होने से पर्यावरणविद और समाजसेवी चिंतित हैं, बक्सवाह का जंगल बचाने के लिए ग्रामीण अंचलों में भी विरोध शुरू हो गया है. बता दें कि मड़ियादो के पास शिलापरी गांव में चिपको आंदोलन की तर्ज पर अब ग्रामीण 'जंगल हमारे बुजुर्ग और पौधे हमारे बच्चे' का नारा लगाकर जंगल की रखवाली करने में जुट गए हैं. ग्रामीणों ने प्रदर्शन के दौैरान कहा कि जब जरूरत पड़ेगी तो ग्रामीण बक्सवाह के एक एक पेड़ पर चिपक जाएंगे. लोग अपने अपने तरीकों से विरोध जताकर जंगलों की रक्षा के लिए प्रयास कर रहे हैं, बक्सवाह के जिन जंगलो में हीरा खनन के लिए कटाई की जानी है, वहां की सीमा से लगे दमोह जिले के कई गांवों में भी जंगल बचाव का अभियान तेज होता जा रहा है. बटियागढ़, पथरिया, रजपुरा आदि गांवों के युवा और पर्यावरण प्रेमी अब चिपको आंदोलन की तरह पेड़ों से चिपककर सेव बक्सवाह फोरेस्ट का समर्थन कर रहे हैं.

हीरा खनन परियोजना का शुरू होने से पहले विरोध

पर्यावरण प्रेमियों ने जताई चिंता

पर्यावरण प्रेमियों और प्रदर्शनकारी युवाओं का कहना है कि लोगो को हीरा नहीं, प्राणवायु चाहिए. पिछले दिनों पूरा देश कोरोना महामारी में ऑक्सीजन की कमी से जूझ चुका है, वर्तमान हालातों में फैक्ट्रियों और उद्योगों की नहीं बल्कि प्रकृति को सहेजने की जरूरत है ,प्रदर्शनकारियों ने कहा कि विनाश रोकने के लिए लोग हर स्तर पर तैयार हैं,उन्होने कहा कि स्थानीय लोग, आदिवासी गरीब वर्ग और जंगलों में रहने वाली एक बहुत बड़ी आबादी जंगलों पर निर्भर है, इतने बड़े पैमाने पर कटाई होने से लोगों के सामने आर्थिक संकट तो खड़ा होगा ही इसके अलावा पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ जाएगा, वन्य जीवों के सामने भी संकट पैदा होगा.बता दें कि बक्सवाह के जंगलों की कटाई रोकने के लिए छतरपुर जिले के कुछ जनप्रतिनिधि और विधायक भी सरकार का ध्यानाकर्षण कराने लेटर लिख चुके हैं.

पर्यावरणविद करुणा रघुवंशी लिख चुकी हैं सीएम को खत

भोपाल की वरिष्ठ पर्यावरणविद करुणा रघुवंशी बक्सवाहा के जंगलों की रक्षा के लिए लगातार प्रयासरत हैं, उनका कहना है कि महामारी के बीच लोगों को ऑक्सीजन और जंगलों के महत्व का ज्ञान हुआ, उन्होंने भोपाल में प्रदेश के मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भी दिया है और उम्मीद जताई है कि संवेदनशील मुख्यमंत्री जरूर पर्यावरण के हित में निर्णय लेंगे

दमोह। जिले की सीमा से लगे छतरपुर जिले के बक्सवाह में हीरा खनन परियोजना के लिए जंगल में लाखों पेड़-पौधों की कटाई होने की खबर के बाद समूचे बुंदेलखंड के पर्यावरण प्रेमियों में आक्रोश है. बताया जा रहा है कि हीरा खनन के लिए बक्सवाह के जंगलों में एक बहुत बड़े भाग में हरे-भरे पेड़ों की कटाई होनी है, इतने बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई होने से पर्यावरणविद और समाजसेवी चिंतित हैं, बक्सवाह का जंगल बचाने के लिए ग्रामीण अंचलों में भी विरोध शुरू हो गया है. बता दें कि मड़ियादो के पास शिलापरी गांव में चिपको आंदोलन की तर्ज पर अब ग्रामीण 'जंगल हमारे बुजुर्ग और पौधे हमारे बच्चे' का नारा लगाकर जंगल की रखवाली करने में जुट गए हैं. ग्रामीणों ने प्रदर्शन के दौैरान कहा कि जब जरूरत पड़ेगी तो ग्रामीण बक्सवाह के एक एक पेड़ पर चिपक जाएंगे. लोग अपने अपने तरीकों से विरोध जताकर जंगलों की रक्षा के लिए प्रयास कर रहे हैं, बक्सवाह के जिन जंगलो में हीरा खनन के लिए कटाई की जानी है, वहां की सीमा से लगे दमोह जिले के कई गांवों में भी जंगल बचाव का अभियान तेज होता जा रहा है. बटियागढ़, पथरिया, रजपुरा आदि गांवों के युवा और पर्यावरण प्रेमी अब चिपको आंदोलन की तरह पेड़ों से चिपककर सेव बक्सवाह फोरेस्ट का समर्थन कर रहे हैं.

हीरा खनन परियोजना का शुरू होने से पहले विरोध

पर्यावरण प्रेमियों ने जताई चिंता

पर्यावरण प्रेमियों और प्रदर्शनकारी युवाओं का कहना है कि लोगो को हीरा नहीं, प्राणवायु चाहिए. पिछले दिनों पूरा देश कोरोना महामारी में ऑक्सीजन की कमी से जूझ चुका है, वर्तमान हालातों में फैक्ट्रियों और उद्योगों की नहीं बल्कि प्रकृति को सहेजने की जरूरत है ,प्रदर्शनकारियों ने कहा कि विनाश रोकने के लिए लोग हर स्तर पर तैयार हैं,उन्होने कहा कि स्थानीय लोग, आदिवासी गरीब वर्ग और जंगलों में रहने वाली एक बहुत बड़ी आबादी जंगलों पर निर्भर है, इतने बड़े पैमाने पर कटाई होने से लोगों के सामने आर्थिक संकट तो खड़ा होगा ही इसके अलावा पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ जाएगा, वन्य जीवों के सामने भी संकट पैदा होगा.बता दें कि बक्सवाह के जंगलों की कटाई रोकने के लिए छतरपुर जिले के कुछ जनप्रतिनिधि और विधायक भी सरकार का ध्यानाकर्षण कराने लेटर लिख चुके हैं.

पर्यावरणविद करुणा रघुवंशी लिख चुकी हैं सीएम को खत

भोपाल की वरिष्ठ पर्यावरणविद करुणा रघुवंशी बक्सवाहा के जंगलों की रक्षा के लिए लगातार प्रयासरत हैं, उनका कहना है कि महामारी के बीच लोगों को ऑक्सीजन और जंगलों के महत्व का ज्ञान हुआ, उन्होंने भोपाल में प्रदेश के मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भी दिया है और उम्मीद जताई है कि संवेदनशील मुख्यमंत्री जरूर पर्यावरण के हित में निर्णय लेंगे

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