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स्वच्छ भारत मिशन पर अधिकारी लगा रहे पलीता, आधे-अधूरे बने शौचालय, फिर भी गांव ओडीएफ घोषित

स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव के हर व्यक्ति को खुले में शौच करने से मुक्त कराना है, लेकिन दमोह के कई गांवों में आधे अधूरे बने शौचालयों को ओडीएफ की सूची में शामिल कर दिया गया है.

Incomplete toilets included in ODF list
ओडीएफ सूची में शामिल आधे-अधूरे बने शौचालय
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Published : Aug 1, 2020, 4:47 PM IST

दमोह। स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत दो अक्टूबर 2014 को की गई थी. इस योजना के तहत अक्टूबर 2019 तक सभी गांवों को खुले में शौच से मुक्त किया जाना था, लेकिन पथरिया विधानसभा क्षेत्र इन सब बातों से अलग है. विधानसभा में करीबन 62 ग्राम पंचायतों में 84 से अधिक गांव हैं, जिसमें स्वच्छ भारत मिशन के तहत सभी गांवों को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है, लेकिन अब भी आधे अधूरे ही शौचालय बने हुए हैं.

वाहवाही लूटने के लिए अफसरों ने छोटे गांवों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) बनाने के अभियान में शामिल कर लिया, लेकिन हकीकत यह है कि वहां भी शत-प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं. ओडीएफ घोषित किए गए सासा और सरखड़ी गांव में हालत बदतर है. सासा के लोगों ने सरपंच-सचिव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए बताया कि शौचालय निर्माण की राशि अपने निजी खर्चों में व्यय कर दी गई, जिससे कार्य अधूरे पड़े हुए हैं, जबकि सरखड़ी के लुहर्रा गांव में शौचालय आधे-अधूरे ही बन पाए है. इन गांवों में स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण के लिए हर लाभार्थी को बारह हजार रुपये दिए जा चुके हैं, लेकिन इतनी धन राशि में भी अधिकतर शौचालय बन नहीं सके. ऐसा इसलिए क्योंकि राशि ग्रामीणों तक पूरी पहुंची ही नहीं है.

यह दोनों गांव उन करीब 84 गांवों की सूची में है, जिन्हें खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका है. सासा एक बड़ा गांव है, जिसमें करीबन 250 घर हैं, जिनकी आबादी दो हजार से अधिक है. फिर भी यहां कुछ ही लाभार्थियों के नाम से शौचालय आवंटित किए गए हैं. केवल सरकारी कागजों में ही इन शौचालयों का प्रयोग हो रहा है, लेकिन मौके की तस्वीर कुछ अलग ही गवाही दे रही हैं. आधे-अधूरे शौचालय बने होने के चलते पुरुष और महिलाओं को खुले में शौच के लिए जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

इस पर जनपद अधिकारी का कहना है कि पथरिया ब्लॉक ओडीएफ हो जाने के चलते शौचालय बनाने की प्रक्रिया बन्द हो गई है. जिस योजना के तहत भारत शौच मुक्त होता है, वह अधूरे कार्यों के पड़े रहने से भी ओडीएफ घोषित कर दिया गया है. सासा के लोगों ने कुटीर के एवज में पैसे मांगने जैसी बाते भी बताई है.

अधिकारियों की मिलीभगत से ग्रामीण मजबूरन कर रहे खुले में शौच

सासा में आधे से ज्यादा लोग खुले में शौच कर रहे हैं. उसके बाद भी अधिकारियों ने पूरे ब्लॉक को ओडीएफ घोषित कर दिया है, जबकि ओडीएफ के लिए प्रशासन द्वारा जिले के लिए अलग से टीम बनाई गई है. उसके बाद भी इतनी बड़ी लापरवाही सामने आ रही है, जिसका खामियाजा ग्रामीण और ब्लॉक को भुगतना पड़ रहा है.

क्या है ओडीएफ का मतलब

कोई ग्राम पंचायत या एक गांव तब तक खुले में शौच से मुक्त नहीं माना जाता, जब तक गांव का हर एक व्यक्ति शौचालय का प्रयोग करने लगे. सरपंच के प्रस्ताव पर शौचालय निर्माण के लिए पात्रों का चयन किया जाता है. गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को ही शौचालय निर्माण के लिए सरकारी धन दिया जाता है. पात्रता में नहीं आने वालों को खुद से निर्माण के लिए प्रेरित किया जाता है. शौचालय से जुड़ी रिपोर्ट की जांच जिला स्तर पर गठित टीम करती है. लोग शौचालय का प्रयोग कर रहे हैं या नहीं, इसकी निगरानी के लिए टीम गठित की जाती है.

बहुत कम बने शौचालय

सासा में बहुत ही कम शौचालय बने हुए हैं और जो बने हैं वह खुद हितग्राही ने अपने पैसों से बनवाए हैं. गांव के एक तिहाई लोग खुले में शौच कर रहे हैं, जबकि कागजी रिकॉर्ड में सासा ओडीएफ घोषित हो चुका है. यही नहीं अंतिम संस्कार में दी जाने वाली 5 हजार रुपये की राशि भी नहीं मिली. ग्रामीण ने बताया कि करीब 6 माह पहले उसकी पत्नी का कैंसर के चलते निधन हो गया था, जिसके लिए शासन द्वारा अंतिम संस्कार की राशि दी जानी थी, पर सरपंच-सचिव से कई बार गुहार लगाने के बाद भी लाभ नहीं मिल सका.

ग्रामीणों ने बताया कि अब तक ग्राम पंचायत में लगभग सभी लोग बाहर ही शौच करने जाते हैं, जिससे गंदगी फैल रही है. इससे लोगों का स्वास्थ्य खराब हो सकता है. वहीं सासा के ग्रामीण संजू बसोर ने बताया कि सरपंच ने कुटीर के एवज में 2 हजार रुपये देने की बात भी कही है. इसके अलावा रमचंदा बंसल ने बताया कि शौचालय खुद के पैसे से बनाया गया है, लेकिन सरंपच अपना नाम लिख कर चले गए.

दमोह। स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत दो अक्टूबर 2014 को की गई थी. इस योजना के तहत अक्टूबर 2019 तक सभी गांवों को खुले में शौच से मुक्त किया जाना था, लेकिन पथरिया विधानसभा क्षेत्र इन सब बातों से अलग है. विधानसभा में करीबन 62 ग्राम पंचायतों में 84 से अधिक गांव हैं, जिसमें स्वच्छ भारत मिशन के तहत सभी गांवों को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है, लेकिन अब भी आधे अधूरे ही शौचालय बने हुए हैं.

वाहवाही लूटने के लिए अफसरों ने छोटे गांवों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) बनाने के अभियान में शामिल कर लिया, लेकिन हकीकत यह है कि वहां भी शत-प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं. ओडीएफ घोषित किए गए सासा और सरखड़ी गांव में हालत बदतर है. सासा के लोगों ने सरपंच-सचिव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए बताया कि शौचालय निर्माण की राशि अपने निजी खर्चों में व्यय कर दी गई, जिससे कार्य अधूरे पड़े हुए हैं, जबकि सरखड़ी के लुहर्रा गांव में शौचालय आधे-अधूरे ही बन पाए है. इन गांवों में स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण के लिए हर लाभार्थी को बारह हजार रुपये दिए जा चुके हैं, लेकिन इतनी धन राशि में भी अधिकतर शौचालय बन नहीं सके. ऐसा इसलिए क्योंकि राशि ग्रामीणों तक पूरी पहुंची ही नहीं है.

यह दोनों गांव उन करीब 84 गांवों की सूची में है, जिन्हें खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका है. सासा एक बड़ा गांव है, जिसमें करीबन 250 घर हैं, जिनकी आबादी दो हजार से अधिक है. फिर भी यहां कुछ ही लाभार्थियों के नाम से शौचालय आवंटित किए गए हैं. केवल सरकारी कागजों में ही इन शौचालयों का प्रयोग हो रहा है, लेकिन मौके की तस्वीर कुछ अलग ही गवाही दे रही हैं. आधे-अधूरे शौचालय बने होने के चलते पुरुष और महिलाओं को खुले में शौच के लिए जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

इस पर जनपद अधिकारी का कहना है कि पथरिया ब्लॉक ओडीएफ हो जाने के चलते शौचालय बनाने की प्रक्रिया बन्द हो गई है. जिस योजना के तहत भारत शौच मुक्त होता है, वह अधूरे कार्यों के पड़े रहने से भी ओडीएफ घोषित कर दिया गया है. सासा के लोगों ने कुटीर के एवज में पैसे मांगने जैसी बाते भी बताई है.

अधिकारियों की मिलीभगत से ग्रामीण मजबूरन कर रहे खुले में शौच

सासा में आधे से ज्यादा लोग खुले में शौच कर रहे हैं. उसके बाद भी अधिकारियों ने पूरे ब्लॉक को ओडीएफ घोषित कर दिया है, जबकि ओडीएफ के लिए प्रशासन द्वारा जिले के लिए अलग से टीम बनाई गई है. उसके बाद भी इतनी बड़ी लापरवाही सामने आ रही है, जिसका खामियाजा ग्रामीण और ब्लॉक को भुगतना पड़ रहा है.

क्या है ओडीएफ का मतलब

कोई ग्राम पंचायत या एक गांव तब तक खुले में शौच से मुक्त नहीं माना जाता, जब तक गांव का हर एक व्यक्ति शौचालय का प्रयोग करने लगे. सरपंच के प्रस्ताव पर शौचालय निर्माण के लिए पात्रों का चयन किया जाता है. गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को ही शौचालय निर्माण के लिए सरकारी धन दिया जाता है. पात्रता में नहीं आने वालों को खुद से निर्माण के लिए प्रेरित किया जाता है. शौचालय से जुड़ी रिपोर्ट की जांच जिला स्तर पर गठित टीम करती है. लोग शौचालय का प्रयोग कर रहे हैं या नहीं, इसकी निगरानी के लिए टीम गठित की जाती है.

बहुत कम बने शौचालय

सासा में बहुत ही कम शौचालय बने हुए हैं और जो बने हैं वह खुद हितग्राही ने अपने पैसों से बनवाए हैं. गांव के एक तिहाई लोग खुले में शौच कर रहे हैं, जबकि कागजी रिकॉर्ड में सासा ओडीएफ घोषित हो चुका है. यही नहीं अंतिम संस्कार में दी जाने वाली 5 हजार रुपये की राशि भी नहीं मिली. ग्रामीण ने बताया कि करीब 6 माह पहले उसकी पत्नी का कैंसर के चलते निधन हो गया था, जिसके लिए शासन द्वारा अंतिम संस्कार की राशि दी जानी थी, पर सरपंच-सचिव से कई बार गुहार लगाने के बाद भी लाभ नहीं मिल सका.

ग्रामीणों ने बताया कि अब तक ग्राम पंचायत में लगभग सभी लोग बाहर ही शौच करने जाते हैं, जिससे गंदगी फैल रही है. इससे लोगों का स्वास्थ्य खराब हो सकता है. वहीं सासा के ग्रामीण संजू बसोर ने बताया कि सरपंच ने कुटीर के एवज में 2 हजार रुपये देने की बात भी कही है. इसके अलावा रमचंदा बंसल ने बताया कि शौचालय खुद के पैसे से बनाया गया है, लेकिन सरंपच अपना नाम लिख कर चले गए.

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