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Indian Independence Day 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जान बचाकर भागे थे अंग्रेज, जानें क्यों जलती चिता में सती हुई थी बुंदेलखंड की रानी - 15 अगस्त 1947

1857 की क्रांति के समर में बुंदेलखंड का अभिन्न योगदान रहा. इतिहास के पन्नों में भले ही इसे जगह न मिल पाई हो, लेकिन सैकड़ों बलिदानियों ने आजादी के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया था. जब अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की शोले भड़के थे तब दमोह की भूमि से अंग्रेजों को जान बचाकर भागना पड़ा था. पकड़े गए लोगों को काले पानी की सजा दी गई थी. india independence day, azadi ka amrit mahotsav, har ghar tiranga

Indian Independence Day
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जान बचाकर भागे थे अंग्रेज
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Published : Aug 14, 2022, 2:47 PM IST

दमोह। चमक उठी सन 57 की वह तलवार पुरानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी. इतिहास के पन्नों में महारानी लक्ष्मीबाई के इस अमिट योगदान को तो बहुत स्थान मिला, लेकिन उनके पीछे अपनी जान गवा देने वाले सैकड़ों बलिदानियों का कहीं नामोनिशान तक नहीं है. बुंदेलखंड एकमात्र ऐसा केंद्र था. जहां घर-घर में विद्रोह की ज्वाला भड़क रही थी. लोग आजादी पाने के लिए ना केवल आतुर थे, बल्कि अपना सर्वस्व तक न्योछावर कर दिया था. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जान बचाकर भागे थे अंग्रेज

जब जान बचाकर भागे थे अंग्रेज: 1857 में जब झांसी की रानी ने विद्रोह किया तो उसकी ज्वाला बुंदेलखंड तक पहुंच गई. इसमें दमोह जिले का भी एक विशेष महत्व और योगदान देखने को मिलता है. इतिहासकार बताते हैं की 1857 में 2 जुलाई को बालाकोट के राजा स्वरूप सिंह तथा उनके भाई सोने सिंह, दमोह के राजा गोविंद राव तथा हिंडोरिया के अल्प वयस्क राजा उमराव सिंह की तरफ से राजा किशोर सिंह ने विद्रोह कर दिया था. उस समय उनके पास हजारों लोगों की सेना थी. उस सेना को देख कर अंग्रेज भाग खड़े हुए थे. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga) इन तीनों राजाओं ने मिलकर अंग्रेजों का डेढ़ लाख रुपए का राज कोष लूट लिया था. हालांकि कुछ इतिहासकार इसे असफल प्रयास भी बताते हैं. अंग्रेजी गजेटियर के राइटर आर वी रसल भी अपने लेख में इस बात का उल्लेख करते हैं कि, इस विद्रोह के कारण अंग्रेजों को दमोह छोड़कर अपनी जान बचाकर जंगलों के रास्ते भागना पड़ा था. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

काले पानी की सजा: उस समय दमोह और पन्ना जिले में राजा नरपत सिंह का शासन था. यह सभी राजा उन्हीं के अधीन थे. इतिहासकार बताते हैं कि, इस विद्रोह से जनमानस इतना खुश था कि उन्होंने राजा गोविंदराव का सम्मान किया था. 3 दिन तक इन राजाओं ने दमोह पर राज किया था. बाद में इस विद्रोह को कुचलने के लिए जबलपुर से मेजर किंकिनी के नेतृत्व में आई 11वीं इन्फेंट्री की रेजिमेंट ने इस विद्रोह को कुचला था. बालाकोट के राजा स्वरूप से एवं सोनेसिंह को विद्रोह भड़काने के आरोप में सरेआम फांसी की सजा दे दी गई थी. राजा गोविंद राव को अंडमान निकोबार में काले पानी की सजा हुई थी.

जलती चिता में सती हुई थी रानी: राजा गोविंदराव की मृत्यु के बाद उनकी पार्थिव देह दमोह लाई गई. उनकी पत्नी सीता देवी ने जलती हुई चिता में आत्मदाह कर लिया था. दमोह में जहां पर आज सीता बावड़ी मुक्तिधाम बना हुआ है. वह उन्हीं सीता देवी के नाम पर है. यहां सीता देवी सती हुई थी. यहां पर आज भी करीब 220 साल पुराना सती का पत्थर लगा हुआ है. थोड़ी ही दूरी पर एक बड़ी बावड़ी बनी हुई है. इसी कारण से उस स्थान का नाम सीता बावड़ी पड़ गया. ठीक इसी तरह जहां पर राजा गोविंदराव की गढ़ी बनी हुई थी. उसी गढ़ी के नाम पर आज पूरे मोहल्ले का नाम गढ़ी मोहल्ला पड़ गया है. हालांकि अब वह गढ़ी तो नहीं बची, लेकिन उसके अवशेष अभी वहां पर मौजूद हैं, उनके वंशज आज भी यहां पर रह रहे हैं. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

500 का इनाम था घोषित: इसी तरह अंग्रेजों ने राजा स्वरूप से राजा सोनी सिंह को फांसी देने के बाद दमोह से 18 किलोमीटर दूर ग्राम बालाकोट में बने हुए उनके बड़े-बड़े परकोटे और गढ़ी को तोपों से ध्वस्त कर दिया था. इसके साथ ही मुंशी तखत श्रीवास्तव को दमोह का आरनरी मजिस्ट्रेट नियुक्त कर दिया था. कुछ इतिहासकार यह भी बताते हैं की हिंडोरिया के राजा किशोर सिंह लोधी पर अंग्रेजों ने 500 का इनाम घोषित किया था. इस तरह गदर में शामिल होने वाले 29 लोगों पर इनाम घोषित किया गया था. बाद में उस जुर्माने को रानी विक्टोरिया ने माफ कर दिया था. मुंशी तखत सिंह के वंशज एवं हिस्टोरियन विनोद श्रीवास्तव बताते हैं कि उस समय पूरा दमोह जिला पन्ना राजा के अधीन था. पन्ना राजा अंग्रेजों से जुड़े हुए थे. हठरी के राजा का किशोर सिंह बहुत सम्मान करते थे. इस कारण उन्होंने अंग्रेजों का खजाना नहीं लूटा था. मुंशी तखत सिंह ने राजा उमराव सिंह की बहुत मदद भी की थी. हालांकि शंभू दयाल गुरु के गजेटियर में खजाना लूटने की बात का उल्लेख मिलता है. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

Indian Independence Day 15 अगस्त 1947 को नहीं, ग्वालियर में 10 दिन बाद फहराया गया था तिरंगा, जानें क्या था सिंधिया और सरकार का विवाद

आम के पेड़ों से लटका कर दी फांसी: इतिहास में वर्णन मिलता है कि जब गदर हुई थी. तब राजा किशोर सिंह, राजा स्वरूप सिंह, राजा सोनसिंह, सिंग्रामपुर के राजा देवी, जबेरा के राजा कर्ण देव आदि ने पंडित गोविंद राव का राजतिलक किया था. इससे कुपित होकर अंग्रेजों की तरफ से पन्ना राजा की सेना श्यामले जू तथा झरकुवा वाले राव साहब के नेतृत्व में दमोह आई थी. स्वतंत्रता सेनानियों और अंग्रेजों के मध्य भीषण स्वतंत्रता संग्राम गढ़ी के मैदान में हुआ था. उसी स्वतंत्रता समर में राजा सोने सिंह, स्वरूप सिंह एवं गोविंदराव को पकड़ा गया था. इसमें गोविंदराव को काले पानी की सजा एवं स्वरूप से तथा सोने सिंह को फांसी दे दी गई थी. जो भी जिंदा सेनानी बच्चे थे. उन्हें पकड़कर अंग्रेजों ने वर्तमान के फुटेरा तालाब से लेकर पखी तक लगे हुए आम के पेड़ों से लटका कर फांसी की सजा दी थी. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

दमोह। चमक उठी सन 57 की वह तलवार पुरानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी. इतिहास के पन्नों में महारानी लक्ष्मीबाई के इस अमिट योगदान को तो बहुत स्थान मिला, लेकिन उनके पीछे अपनी जान गवा देने वाले सैकड़ों बलिदानियों का कहीं नामोनिशान तक नहीं है. बुंदेलखंड एकमात्र ऐसा केंद्र था. जहां घर-घर में विद्रोह की ज्वाला भड़क रही थी. लोग आजादी पाने के लिए ना केवल आतुर थे, बल्कि अपना सर्वस्व तक न्योछावर कर दिया था. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जान बचाकर भागे थे अंग्रेज

जब जान बचाकर भागे थे अंग्रेज: 1857 में जब झांसी की रानी ने विद्रोह किया तो उसकी ज्वाला बुंदेलखंड तक पहुंच गई. इसमें दमोह जिले का भी एक विशेष महत्व और योगदान देखने को मिलता है. इतिहासकार बताते हैं की 1857 में 2 जुलाई को बालाकोट के राजा स्वरूप सिंह तथा उनके भाई सोने सिंह, दमोह के राजा गोविंद राव तथा हिंडोरिया के अल्प वयस्क राजा उमराव सिंह की तरफ से राजा किशोर सिंह ने विद्रोह कर दिया था. उस समय उनके पास हजारों लोगों की सेना थी. उस सेना को देख कर अंग्रेज भाग खड़े हुए थे. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga) इन तीनों राजाओं ने मिलकर अंग्रेजों का डेढ़ लाख रुपए का राज कोष लूट लिया था. हालांकि कुछ इतिहासकार इसे असफल प्रयास भी बताते हैं. अंग्रेजी गजेटियर के राइटर आर वी रसल भी अपने लेख में इस बात का उल्लेख करते हैं कि, इस विद्रोह के कारण अंग्रेजों को दमोह छोड़कर अपनी जान बचाकर जंगलों के रास्ते भागना पड़ा था. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

काले पानी की सजा: उस समय दमोह और पन्ना जिले में राजा नरपत सिंह का शासन था. यह सभी राजा उन्हीं के अधीन थे. इतिहासकार बताते हैं कि, इस विद्रोह से जनमानस इतना खुश था कि उन्होंने राजा गोविंदराव का सम्मान किया था. 3 दिन तक इन राजाओं ने दमोह पर राज किया था. बाद में इस विद्रोह को कुचलने के लिए जबलपुर से मेजर किंकिनी के नेतृत्व में आई 11वीं इन्फेंट्री की रेजिमेंट ने इस विद्रोह को कुचला था. बालाकोट के राजा स्वरूप से एवं सोनेसिंह को विद्रोह भड़काने के आरोप में सरेआम फांसी की सजा दे दी गई थी. राजा गोविंद राव को अंडमान निकोबार में काले पानी की सजा हुई थी.

जलती चिता में सती हुई थी रानी: राजा गोविंदराव की मृत्यु के बाद उनकी पार्थिव देह दमोह लाई गई. उनकी पत्नी सीता देवी ने जलती हुई चिता में आत्मदाह कर लिया था. दमोह में जहां पर आज सीता बावड़ी मुक्तिधाम बना हुआ है. वह उन्हीं सीता देवी के नाम पर है. यहां सीता देवी सती हुई थी. यहां पर आज भी करीब 220 साल पुराना सती का पत्थर लगा हुआ है. थोड़ी ही दूरी पर एक बड़ी बावड़ी बनी हुई है. इसी कारण से उस स्थान का नाम सीता बावड़ी पड़ गया. ठीक इसी तरह जहां पर राजा गोविंदराव की गढ़ी बनी हुई थी. उसी गढ़ी के नाम पर आज पूरे मोहल्ले का नाम गढ़ी मोहल्ला पड़ गया है. हालांकि अब वह गढ़ी तो नहीं बची, लेकिन उसके अवशेष अभी वहां पर मौजूद हैं, उनके वंशज आज भी यहां पर रह रहे हैं. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

500 का इनाम था घोषित: इसी तरह अंग्रेजों ने राजा स्वरूप से राजा सोनी सिंह को फांसी देने के बाद दमोह से 18 किलोमीटर दूर ग्राम बालाकोट में बने हुए उनके बड़े-बड़े परकोटे और गढ़ी को तोपों से ध्वस्त कर दिया था. इसके साथ ही मुंशी तखत श्रीवास्तव को दमोह का आरनरी मजिस्ट्रेट नियुक्त कर दिया था. कुछ इतिहासकार यह भी बताते हैं की हिंडोरिया के राजा किशोर सिंह लोधी पर अंग्रेजों ने 500 का इनाम घोषित किया था. इस तरह गदर में शामिल होने वाले 29 लोगों पर इनाम घोषित किया गया था. बाद में उस जुर्माने को रानी विक्टोरिया ने माफ कर दिया था. मुंशी तखत सिंह के वंशज एवं हिस्टोरियन विनोद श्रीवास्तव बताते हैं कि उस समय पूरा दमोह जिला पन्ना राजा के अधीन था. पन्ना राजा अंग्रेजों से जुड़े हुए थे. हठरी के राजा का किशोर सिंह बहुत सम्मान करते थे. इस कारण उन्होंने अंग्रेजों का खजाना नहीं लूटा था. मुंशी तखत सिंह ने राजा उमराव सिंह की बहुत मदद भी की थी. हालांकि शंभू दयाल गुरु के गजेटियर में खजाना लूटने की बात का उल्लेख मिलता है. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

Indian Independence Day 15 अगस्त 1947 को नहीं, ग्वालियर में 10 दिन बाद फहराया गया था तिरंगा, जानें क्या था सिंधिया और सरकार का विवाद

आम के पेड़ों से लटका कर दी फांसी: इतिहास में वर्णन मिलता है कि जब गदर हुई थी. तब राजा किशोर सिंह, राजा स्वरूप सिंह, राजा सोनसिंह, सिंग्रामपुर के राजा देवी, जबेरा के राजा कर्ण देव आदि ने पंडित गोविंद राव का राजतिलक किया था. इससे कुपित होकर अंग्रेजों की तरफ से पन्ना राजा की सेना श्यामले जू तथा झरकुवा वाले राव साहब के नेतृत्व में दमोह आई थी. स्वतंत्रता सेनानियों और अंग्रेजों के मध्य भीषण स्वतंत्रता संग्राम गढ़ी के मैदान में हुआ था. उसी स्वतंत्रता समर में राजा सोने सिंह, स्वरूप सिंह एवं गोविंदराव को पकड़ा गया था. इसमें गोविंदराव को काले पानी की सजा एवं स्वरूप से तथा सोने सिंह को फांसी दे दी गई थी. जो भी जिंदा सेनानी बच्चे थे. उन्हें पकड़कर अंग्रेजों ने वर्तमान के फुटेरा तालाब से लेकर पखी तक लगे हुए आम के पेड़ों से लटका कर फांसी की सजा दी थी. (india independence day) (azadi ka amrit mahotsav) (har ghar tiranga)

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