छिंदवाड़ा। लॉकडाउन 3.0 में सरकार ने कुछ राहत तो दी है, लेकिन आज भी एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमा को जोड़ने वाले जिलों के लिए चुनौती कम नहीं हैं. इन्हीं चुनौतियों का जायजा लेने मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा और महाराष्ट्र के नागपुर को जोड़ने वाले सौंसर और छिंदवाड़ा से 94 किलोमीटर दूर सतनूर बॉर्डर पहुंचा ईटीवी भारत और जाना यहां तैनात कोरोना वॉरियर्स का हाल और बॉर्डर के हालात.
प्रदेश की सुरक्षा में डटे कोरोना वॉरियर्स, एमपी-महाराष्ट्र बॉर्डर पर की जा रही निगरानी
मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा और महाराष्ट्र के नागपुर को जोड़ने वाले सौंसर और छिंदवाड़ा से 94 किलोमीटर दूर सतनूर बॉर्डर पहुंचा ईटीवी भारत और जाना यहां तैनात कोरोना वॉरियर्स का हाल और बॉर्डर के हालात.
MP-MH बॉर्डर पर की जा रही कड़ी चौकसी
छिंदवाड़ा। लॉकडाउन 3.0 में सरकार ने कुछ राहत तो दी है, लेकिन आज भी एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमा को जोड़ने वाले जिलों के लिए चुनौती कम नहीं हैं. इन्हीं चुनौतियों का जायजा लेने मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा और महाराष्ट्र के नागपुर को जोड़ने वाले सौंसर और छिंदवाड़ा से 94 किलोमीटर दूर सतनूर बॉर्डर पहुंचा ईटीवी भारत और जाना यहां तैनात कोरोना वॉरियर्स का हाल और बॉर्डर के हालात.
छिंदवाड़ा जिले की सतनूर सीमा महाराष्ट्र के प्रमुख शहर नागपुर को जोड़ती है अब धीरे-धीरे प्रवासी मजदूरों की वापसी हो रही है साथ ही नागपुर मेडिकल सुविधाओं के लिए जाना जाता है इसलिए हर दिन यहां से मजदूरों समेत हजारों लोग इस बॉर्डर को पार करके जाते हैं.अब तक करीब 25 हजार लोगों की हो चुकी है थर्मल स्कैनिंग
किसी भी तरीके से कोरोना वायरस छिंदवाड़ा में दस्तक ना दे इसलिए को कोरोना योद्धा लगातार डटे हुए हैं, अभी तक करीब 25000 लोगों की इस बॉर्डर से थर्मल स्केनिंग हो चुकी है खास बात यह है कि नागपुर हॉटस्पॉट एरिया है हालांकि छिंदवाड़ा अभी ऑरेंज ज़ोन में है और अब मात्र 2 मरीजों का इलाज हो रहा है.संसाधनों का अभाव लेकिन सेवा का जज्बा
स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी बताते हैं कि अभी तक विभाग के पास इतने डिस्पोजेबल पीपीई किट नहीं है कि वह विभाग के हर व्यक्ति को उपलब्ध करा सकें इसलिए जहां जरूरत है वहां पहले कराई जा रही है इन लोगों के पास डिस्पोजेबल किट नहीं है इसलिए हर दिन कॉटन की गाउन और अपने कपड़े धूलकर दूसरे दिन उन्हें पहनकर ही काम करते हैं लेकिन देश को और जिले को सुरक्षित रखना उनकी पहली प्राथमिकता है इसलिए उन्हें कभी जरा सा भी डर नहीं लगता.मजदूरों के लिए मिसाल बना है अमला
यहां तैनात पुलिसकर्मी बताते हैं कि यहां हर दिन सैकड़ों की संख्या में पैदल गरीब मजदूर आते हैं असहाय गरीब मजदूर इतने थके होते हैं कि वह कई दिनों से भूखे भी होते हैं उनके लिए भोजन की व्यवस्था कराना और उनके ठहरने की व्यवस्था भी करते हैं खासतौर पर इस रास्ते से अधिकतर लोग इलाज के लिए नागपुर जाते हैं कई ऐसे मौके आते हैं जब लोगों के पास सिर्फ इमरजेंसी होती है उस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि कहीं वायरस के डर से लोगों की और दूसरे कारण से मौत ना हो जाए, इसलिए उन्हें भी जांच परख कर इलाज के लिए मौका दे दिया जाता है.
छिंदवाड़ा जिले की सतनूर सीमा महाराष्ट्र के प्रमुख शहर नागपुर को जोड़ती है अब धीरे-धीरे प्रवासी मजदूरों की वापसी हो रही है साथ ही नागपुर मेडिकल सुविधाओं के लिए जाना जाता है इसलिए हर दिन यहां से मजदूरों समेत हजारों लोग इस बॉर्डर को पार करके जाते हैं.अब तक करीब 25 हजार लोगों की हो चुकी है थर्मल स्कैनिंग
किसी भी तरीके से कोरोना वायरस छिंदवाड़ा में दस्तक ना दे इसलिए को कोरोना योद्धा लगातार डटे हुए हैं, अभी तक करीब 25000 लोगों की इस बॉर्डर से थर्मल स्केनिंग हो चुकी है खास बात यह है कि नागपुर हॉटस्पॉट एरिया है हालांकि छिंदवाड़ा अभी ऑरेंज ज़ोन में है और अब मात्र 2 मरीजों का इलाज हो रहा है.संसाधनों का अभाव लेकिन सेवा का जज्बा
स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी बताते हैं कि अभी तक विभाग के पास इतने डिस्पोजेबल पीपीई किट नहीं है कि वह विभाग के हर व्यक्ति को उपलब्ध करा सकें इसलिए जहां जरूरत है वहां पहले कराई जा रही है इन लोगों के पास डिस्पोजेबल किट नहीं है इसलिए हर दिन कॉटन की गाउन और अपने कपड़े धूलकर दूसरे दिन उन्हें पहनकर ही काम करते हैं लेकिन देश को और जिले को सुरक्षित रखना उनकी पहली प्राथमिकता है इसलिए उन्हें कभी जरा सा भी डर नहीं लगता.मजदूरों के लिए मिसाल बना है अमला
यहां तैनात पुलिसकर्मी बताते हैं कि यहां हर दिन सैकड़ों की संख्या में पैदल गरीब मजदूर आते हैं असहाय गरीब मजदूर इतने थके होते हैं कि वह कई दिनों से भूखे भी होते हैं उनके लिए भोजन की व्यवस्था कराना और उनके ठहरने की व्यवस्था भी करते हैं खासतौर पर इस रास्ते से अधिकतर लोग इलाज के लिए नागपुर जाते हैं कई ऐसे मौके आते हैं जब लोगों के पास सिर्फ इमरजेंसी होती है उस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि कहीं वायरस के डर से लोगों की और दूसरे कारण से मौत ना हो जाए, इसलिए उन्हें भी जांच परख कर इलाज के लिए मौका दे दिया जाता है.