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देसी जुगाड़ की बैशाखी पर छिंदवाड़ा का किसान, जोखिम उठा नदी पार करते अन्नदाता - CHHINDWARA farmer NEWS

छिंदवाड़ा के निमनी गांव के 40 फीसदी किसानों की जमीन कन्हान नदी के दूसरी पार है. नदीं के उस पार जाने के लिए किसान जुगाड़ की लाइफ जैकेट पहनकर नदी पार कर खेती करने जाते हैं, जो बेहद जोखिम भरा होता है, कई किसान अब तक इस जोखिम के चलते मौत के मुंह में समा चुके हैं.

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रोजी-रोटी के लिए देसी लाइफ जैकेट बनी सहारा
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Published : Aug 8, 2020, 11:52 AM IST

छिंदवाड़ा। बंद कमरे में बैठकर किसानों के हितों की बात करने वाले लोगों के सामने छिंदवाड़ा के निमनी गांव की तस्वीरें किसी तमाचे से कम नहीं हैं. सालों से यहां के किसान खेत जाने के लिए जुगाड़ की लाइफ जैकेट पहनकर जान हथेली पर रखकर नदी पार कर खेती करते हैं.

रोजी-रोटी के लिए देसी लाइफ जैकेट बनी सहारा

लौकी के तूमे से बनाते हैं लाइफ जैकेट

सौंसर के नीमनी गांव के 40 फीसदी किसानों की जमीन कन्हान नदी के दूसरी पार है. सालों से किसानों को खेती करने के लिए नदी पार कर जाना पड़ता है. नदी पर पुल नहीं होने की वजह से किसान जुगाड़ की लाइफ जैकेट पहनते हैं और नदी पार करते हैं. किसान पहले अपने खेतों में गोल आकार की देसी लौकी जिसे स्थानीय बोली में तूमा कहा जाता है, उगाते हैं और फिर उसे सुखाने के बाद रस्सी की सहायता से उसका लाइफ जैकेट बनाते हैं.

रोजी-रोटी के लिए जान का जोखिम

जमीनी हकीकत जानने पहुंची ईटीवी भारत की टीम को किसान ने बताया कि हर दिन वे अपनी जान हथेली पर रखकर खेती करने जाते हैं. घर से निकलते वक्त उन्हें ये भी नहीं मालूम होता है कि वो शाम को वापस लौटेंगे भी या नहीं. सिर्फ इतना ही नहीं, उनके साथ खेती में सहयोग करने महिलाएं भी इसी के सहारे जाती हैं.

कई किसान गवां चुके हैं जान

खेती करने लिए उमेश पाटिल के पिता भी इसी नदी में अपनी जान गवां चुके हैं. उमेश पाटिल ने ईटीवी भारत को बताया कि तूमे के सहारे नदी पार करके जाने वाले कई किसान अपनी जान गवां चुके हैं. पिछले साल गांव का ही एक व्यक्ति खेती करने गया था और जब वापस तूमे के सहारे नदी पार कर रहा था तो उस दौरान बाढ़ आई और वो बह गया.

चुनावी मौसम में नेताओं का जमावड़ा गांव में लगता है और हमेशा मुद्दा नदी पर पुल का भी होता है, लेकिन चुनाव के बाद ग्रामीणों और किसानों को इसी हालत में जीना पड़ता है. इस दौरान कोई भी नेता इनकी सुध नहीं लेता.

छिंदवाड़ा। बंद कमरे में बैठकर किसानों के हितों की बात करने वाले लोगों के सामने छिंदवाड़ा के निमनी गांव की तस्वीरें किसी तमाचे से कम नहीं हैं. सालों से यहां के किसान खेत जाने के लिए जुगाड़ की लाइफ जैकेट पहनकर जान हथेली पर रखकर नदी पार कर खेती करते हैं.

रोजी-रोटी के लिए देसी लाइफ जैकेट बनी सहारा

लौकी के तूमे से बनाते हैं लाइफ जैकेट

सौंसर के नीमनी गांव के 40 फीसदी किसानों की जमीन कन्हान नदी के दूसरी पार है. सालों से किसानों को खेती करने के लिए नदी पार कर जाना पड़ता है. नदी पर पुल नहीं होने की वजह से किसान जुगाड़ की लाइफ जैकेट पहनते हैं और नदी पार करते हैं. किसान पहले अपने खेतों में गोल आकार की देसी लौकी जिसे स्थानीय बोली में तूमा कहा जाता है, उगाते हैं और फिर उसे सुखाने के बाद रस्सी की सहायता से उसका लाइफ जैकेट बनाते हैं.

रोजी-रोटी के लिए जान का जोखिम

जमीनी हकीकत जानने पहुंची ईटीवी भारत की टीम को किसान ने बताया कि हर दिन वे अपनी जान हथेली पर रखकर खेती करने जाते हैं. घर से निकलते वक्त उन्हें ये भी नहीं मालूम होता है कि वो शाम को वापस लौटेंगे भी या नहीं. सिर्फ इतना ही नहीं, उनके साथ खेती में सहयोग करने महिलाएं भी इसी के सहारे जाती हैं.

कई किसान गवां चुके हैं जान

खेती करने लिए उमेश पाटिल के पिता भी इसी नदी में अपनी जान गवां चुके हैं. उमेश पाटिल ने ईटीवी भारत को बताया कि तूमे के सहारे नदी पार करके जाने वाले कई किसान अपनी जान गवां चुके हैं. पिछले साल गांव का ही एक व्यक्ति खेती करने गया था और जब वापस तूमे के सहारे नदी पार कर रहा था तो उस दौरान बाढ़ आई और वो बह गया.

चुनावी मौसम में नेताओं का जमावड़ा गांव में लगता है और हमेशा मुद्दा नदी पर पुल का भी होता है, लेकिन चुनाव के बाद ग्रामीणों और किसानों को इसी हालत में जीना पड़ता है. इस दौरान कोई भी नेता इनकी सुध नहीं लेता.

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