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खुद के पैसों से डॉक्टर ने बदल दी सरकारी अस्पताल की सूरत, देखिए सुकून सेंटर

इस सरकारी अस्पताल में बैठने के लिए एक ऐसी जगह बनाई गई हैं जहां बैठते ही खुद को 'सुकून' महसूस होता है. इस सरकारी अस्पताल का दीदार करने के लिए अधिकारी, जनप्रतिनिधि और लोग पहुंचते हैं.

Chhindwara Government Hospital
छिंदवाड़ा सरकारी अस्पताल
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Published : Apr 20, 2023, 10:59 PM IST

खुद के पैसों से डॉक्टर ने बदल दी सरकारी अस्पताल की सूरत

छिंदवाड़ा। सरकारी अस्पताल मतलब गंदगी लापरवाही और डॉक्टरों की मनमानी जैसे मामले सुनने को मिलते हैं. अधिकतर लोग बेहतर इलाज के लिए सरकारी अस्पताल से हटकर निजी अस्पतालों का रुख करते हैं, लेकिन पांढुर्णा के छोटे से गांव मांगुरली में एक ऐसा सरकारी अस्पताल है, जहां मरीजों को सुकून मिलता है. यहां के एक डॉक्टर अपने खर्च से इस सरकारी अस्पताल को किसी रिसोर्ट से कम नहीं बनाया है, इसे देखने और इलाज करवाने के लिए दूर-दराज से लोग यहां पहुंचते हैं.

अस्पताल नाम दिया सुकून: पांढुर्णा के मांगुरली गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र किसी रिसोर्ट से कम नहीं हैं. इस सरकारी अस्पताल की सूरत डॉक्टर नितिन उपाध्याय ने बदल दी. यहां 4 हजार वर्गफीट में बनाए गए पार्क में घूमने के लिए दूरदराज से लोग पहुंचते हैं. यहां लोगों को इलाज के साथ-साथ सुकून मिलता है. इसलिए इस अस्पताल का नाम 'सुकून' रखा गया है.

पैसे का सही उपयोग: मांगुरली सरकारी अस्पताल की जिम्मेदारी संभालने वाले डॉक्टर नितिन उपाध्याय बताते हैं कि, स्वास्थ्य विभाग से जो भी फंड आता है, उस फंड की राशि को इस अस्पताल की व्यवस्था में लगाई जाती है. बाकी आर्थिक मदद, उनके भाई और वे खुद अपने वेतन से करते हैं. वर्तमान में इस अस्पताल के चारों ओर हरियाली और मनमोहक पौधे मौजूद हैं.

चपरासी के हाथ में पेंटिंग का हुनर: इस सरकारी अस्पताल में कुल 3 लोगों का स्टॉफ हैं, लेकिन सभी कर्मचारियों में से अस्पताल के चपरासी जितेंद्र इरपाची के हाथों में पेंटिंग का गजब हुनर है, उन्होंने इस अस्पताल की दीवार, गमले, टीन शेड सहित अन्य जगहों पर पेंटिंग की है जो आकर्षण का केंद्र है.

डॉक्टर को भगवान मानते हैं ग्रामीण: ग्रामीण बताते हैं कि इस सरकारी अस्पताल का निर्माण सन् 1985 में हुआ था. उस दौरान यहां पर कोई डॉक्टर नहीं था. पूरा अस्पताल अस्त-व्यस्त था, लेकिन साल 2017 से डॉक्टर नितिन उपाध्यक्ष की नियुक्ति हुई और तब से इस अस्पताल की सूरत बदल गई. यहां के लोग डॉक्टर को भगवान से कम नहीं मानते हैं.

बेटे की याद में खुदवाया कुआं: डॉक्टर नितिन उपाध्याय बताते हैं कि, इस अस्पताल में पानी की सबसे ज्यादा परेशानी थी. गार्डन में सिंचाई के लिए खुद के पैसे से पानी खरीदा करते थे, लेकिन अब पांढुर्ना के प्रभु पटेल ने अपने बेटे की याद में एक कुआं खुदवाया है. इसमें भरपूर पानी है.

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MBBS के बाद ग्रामीणों की सेवा का लक्ष्य: डॉ. नितिन उपाध्याय ने भोपाल से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्रामीणों की सेवा करने का लक्ष्य चुना. डॉ. कहते हैं कि अधिकतर लोग पढ़ाई करने के बाद शहर में नौकरी करना चाहते हैं या फिर अपना अस्पताल खोलना चाहते हैं, लेकिन उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ग्रामीण की रही है. इसलिए उन्होंने ग्रामीणों की सेवा करने की सोची, क्योंकि शहर में तो आसानी से स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो जाती है. असल जरूरत गांवों में होती है ताकि अच्छा स्वास्थ्य मिल सके इसी उद्देश्य के साथ वे गांव में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने का प्रयास कर रहे हैं.

खुद के पैसों से डॉक्टर ने बदल दी सरकारी अस्पताल की सूरत

छिंदवाड़ा। सरकारी अस्पताल मतलब गंदगी लापरवाही और डॉक्टरों की मनमानी जैसे मामले सुनने को मिलते हैं. अधिकतर लोग बेहतर इलाज के लिए सरकारी अस्पताल से हटकर निजी अस्पतालों का रुख करते हैं, लेकिन पांढुर्णा के छोटे से गांव मांगुरली में एक ऐसा सरकारी अस्पताल है, जहां मरीजों को सुकून मिलता है. यहां के एक डॉक्टर अपने खर्च से इस सरकारी अस्पताल को किसी रिसोर्ट से कम नहीं बनाया है, इसे देखने और इलाज करवाने के लिए दूर-दराज से लोग यहां पहुंचते हैं.

अस्पताल नाम दिया सुकून: पांढुर्णा के मांगुरली गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र किसी रिसोर्ट से कम नहीं हैं. इस सरकारी अस्पताल की सूरत डॉक्टर नितिन उपाध्याय ने बदल दी. यहां 4 हजार वर्गफीट में बनाए गए पार्क में घूमने के लिए दूरदराज से लोग पहुंचते हैं. यहां लोगों को इलाज के साथ-साथ सुकून मिलता है. इसलिए इस अस्पताल का नाम 'सुकून' रखा गया है.

पैसे का सही उपयोग: मांगुरली सरकारी अस्पताल की जिम्मेदारी संभालने वाले डॉक्टर नितिन उपाध्याय बताते हैं कि, स्वास्थ्य विभाग से जो भी फंड आता है, उस फंड की राशि को इस अस्पताल की व्यवस्था में लगाई जाती है. बाकी आर्थिक मदद, उनके भाई और वे खुद अपने वेतन से करते हैं. वर्तमान में इस अस्पताल के चारों ओर हरियाली और मनमोहक पौधे मौजूद हैं.

चपरासी के हाथ में पेंटिंग का हुनर: इस सरकारी अस्पताल में कुल 3 लोगों का स्टॉफ हैं, लेकिन सभी कर्मचारियों में से अस्पताल के चपरासी जितेंद्र इरपाची के हाथों में पेंटिंग का गजब हुनर है, उन्होंने इस अस्पताल की दीवार, गमले, टीन शेड सहित अन्य जगहों पर पेंटिंग की है जो आकर्षण का केंद्र है.

डॉक्टर को भगवान मानते हैं ग्रामीण: ग्रामीण बताते हैं कि इस सरकारी अस्पताल का निर्माण सन् 1985 में हुआ था. उस दौरान यहां पर कोई डॉक्टर नहीं था. पूरा अस्पताल अस्त-व्यस्त था, लेकिन साल 2017 से डॉक्टर नितिन उपाध्यक्ष की नियुक्ति हुई और तब से इस अस्पताल की सूरत बदल गई. यहां के लोग डॉक्टर को भगवान से कम नहीं मानते हैं.

बेटे की याद में खुदवाया कुआं: डॉक्टर नितिन उपाध्याय बताते हैं कि, इस अस्पताल में पानी की सबसे ज्यादा परेशानी थी. गार्डन में सिंचाई के लिए खुद के पैसे से पानी खरीदा करते थे, लेकिन अब पांढुर्ना के प्रभु पटेल ने अपने बेटे की याद में एक कुआं खुदवाया है. इसमें भरपूर पानी है.

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MBBS के बाद ग्रामीणों की सेवा का लक्ष्य: डॉ. नितिन उपाध्याय ने भोपाल से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्रामीणों की सेवा करने का लक्ष्य चुना. डॉ. कहते हैं कि अधिकतर लोग पढ़ाई करने के बाद शहर में नौकरी करना चाहते हैं या फिर अपना अस्पताल खोलना चाहते हैं, लेकिन उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ग्रामीण की रही है. इसलिए उन्होंने ग्रामीणों की सेवा करने की सोची, क्योंकि शहर में तो आसानी से स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो जाती है. असल जरूरत गांवों में होती है ताकि अच्छा स्वास्थ्य मिल सके इसी उद्देश्य के साथ वे गांव में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने का प्रयास कर रहे हैं.

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