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सियासी दांव पेंच में फंसी पान की खेती, पान विकास बोर्ड निगम के गठन का सपना देख रहे किसान

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Published : May 1, 2019, 6:07 PM IST

छतरपुर जिले में पान की खेती करने वाले किसान पान विकास बोर्ड निगम का गठन न होने से परेशान है. उनका कहना है कि सीएम कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान उन्हें आश्वासन दिया था, लेकिन चुनाव के बाद कुछ नहीं हुआ.

पान की खेती करने वाले किसान

छतरपुर। बुंदेलखंड की शान माना जाने वाला बुंदेली पान अब वहां की पहचान बनता जा रहा है, जिसकी खपत अब विदेशों में भी होने लगी है, लेकिन मौसम की बेरूखी और जनप्रतिनिधियों के लचीले रवैये से पान किसान उपेक्षा के शिकार हैं. आलम ये है कि उन्हें उनकी लागत का मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है.

पान विकास बोर्ड निगम का गठन न होने से परेशान पान की खेती करने वाले किसान

हर चुनाव में पान विकास निगम एवं विकास बोर्ड बनाए जाने की चर्चा शुरु होती है, लेकिन चुनाव बाद गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाता है. पान किसानों का कहना है कि चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान से लेकर कमलनाथ तक ने आश्वासन दिया था, बड़े बड़े वादे करते हुए पान विकास बोर्ड बनाने की बात भी कही थी. बावजदू इसके दोनों नेताओं ने सत्ता में आने के बाद भी इस दिशा में कोई काम नहीं किया.

विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी-कांग्रेस ने पान की खेती करने वाले किसानों के लिए पान विकास बोर्ड गठित करने की बात कही थी, लेकिन चुनाव के बाद ये मुद्दा सियासी दांव-पेंचों में फंसकर रह गया है. साथ ही 10 हजार के नुकसान पर 50 रुपये का मुआवजा पान की खेती करने वाले किसानों को दिया जाता है. इस चुनाव में भी पान की खेती करने वाले किसानों का मुद्दा नेताओं की जुबान पर है, लेकिन पान विकास निगम बोर्ड के गठन का सपना पाल रहे किसानों के हालात जस के तस हैं.

छतरपुर। बुंदेलखंड की शान माना जाने वाला बुंदेली पान अब वहां की पहचान बनता जा रहा है, जिसकी खपत अब विदेशों में भी होने लगी है, लेकिन मौसम की बेरूखी और जनप्रतिनिधियों के लचीले रवैये से पान किसान उपेक्षा के शिकार हैं. आलम ये है कि उन्हें उनकी लागत का मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है.

पान विकास बोर्ड निगम का गठन न होने से परेशान पान की खेती करने वाले किसान

हर चुनाव में पान विकास निगम एवं विकास बोर्ड बनाए जाने की चर्चा शुरु होती है, लेकिन चुनाव बाद गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाता है. पान किसानों का कहना है कि चुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान से लेकर कमलनाथ तक ने आश्वासन दिया था, बड़े बड़े वादे करते हुए पान विकास बोर्ड बनाने की बात भी कही थी. बावजदू इसके दोनों नेताओं ने सत्ता में आने के बाद भी इस दिशा में कोई काम नहीं किया.

विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी-कांग्रेस ने पान की खेती करने वाले किसानों के लिए पान विकास बोर्ड गठित करने की बात कही थी, लेकिन चुनाव के बाद ये मुद्दा सियासी दांव-पेंचों में फंसकर रह गया है. साथ ही 10 हजार के नुकसान पर 50 रुपये का मुआवजा पान की खेती करने वाले किसानों को दिया जाता है. इस चुनाव में भी पान की खेती करने वाले किसानों का मुद्दा नेताओं की जुबान पर है, लेकिन पान विकास निगम बोर्ड के गठन का सपना पाल रहे किसानों के हालात जस के तस हैं.

Intro: पान एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर ही लोगों के मन में अलग सी चमक आ जाती है जिस पान को खा नेता अपने होठों पर रचाकर जनता के बीच में पहुंचकर भाषण देते है शायद ही पान की खेती करने वाले किसानों के दर्द एहसास हो! किसानों के दर्द एवं आर्थिक सहयोग के लिए पान विकास निगम एवं पान विकास बोर्ड की लंबे समय से मांग चली आ रही है हालांकि शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव के ठीक पहले पान विकास बोर्ड की बात कही थी लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद वह सिर्फ एक चुनावी घोषणा ही साबित हुई!


Body: छतरपुर जिले के गढ़ी मलहरा एवं महाराजपुर में पान की अधिकतम खेती की जाती है यहां का पान न सिर्फ भारत देश में बल्कि विदेशों में भी भेजा जाता है इस क्षेत्र का पान इतनी अच्छी गुणवत्ता का होता है कि इसे पाकिस्तान भी भेजा जाता था लेकिन देश भक्ति साबित करते हुए पान के किसानों ने अपने बालों को पाकिस्तान भेजने से साफ इनकार कर दिया था लेकिन अब वही किसान सरकार की एवं सत्ता में बैठे नेताओं की उपेक्षा का शिकार है!

चुनाव के पहले पान विकास निगम एवं विकास बोर्ड को लेकर चर्चाएं जोरों पर थी शिवराज सिंह चौहान से लेकर कमलनाथ तक ने पान की खेती करने वाले किसानों को ना सिर्फ आश्वासन दिए बल्कि बड़े बड़े वादे करते हुए पान विकास बोर्ड बनाने की बात भी कही थी सत्ता परिवर्तन हो गया कमलनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन गए बावजूद इसके पान की खेती करने वाले किसान आज भी अपने हालातों पर रो रहे हैं!

पान की खेती करने वाले किसानों का दर्द और उनका आर्थिक नुकसान शिवराज सिंह चौहान एवं कमलनाथ के राजनीतिक दांव पेंचों के बीच फंस कर रह गया है किसान आज भी पान की खेती में होने वाले नुकसान ओं को पूरी तरह से खुद के ऊपर ही निर्भर है! आपको जानकर यह हैरानी होगी की 10 हजार के नुकसान पर 50 रुपये का मुआवजा पान की खेती करने वाले किसानों को दिया जाता है!

आपको बता दें कि पान की खेती करने वाले किसान जहां खेती करते है उसे बरेजा कहते है और उसकी एक क्यारी को पारी बोलते हैं जिसमें लगभग 10 हजार रुपए का अनुमानित खर्च आता है लेकिन जब कभी पान की खेती में नुकसान होता है तो इस एक पारी के एवज में किसान को मात्र ₹50 ही मुआवजे के तौर पर मिलते हैं अब जरा सोचिए कि यह मुआवजा उस 10 हजार के एवज में कितना उपयुक्त है!

पान की खेती करने वाले किसान अशोक चौरसिया बताते हैं कि वह बचपन से ही पान की खेती करते आ रहे हैं इस बार भी उन्हें पान की खेती में नुकसान हुआ है लेकिन सरकार की तरफ से अभी तक किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं किया गया है जब हमने उनको पूछा कि आप पान विकास निगम व्यापार विकास बोर्ड के बारे में जानते हैं तो उनका कहना था कि उन्होंने कभी इन शब्दों के बारे में सुना भी नहीं है हां इतना जरूर है कि एक बार उन्हें पान के मुआवजे के रूप में एक पारी के लिए ₹50 दिए गए थे जो कि एक भद्दा मजाक था!

वहीं दूसरे पान की खेती करने वाले किसान घासीराम चौरसिया का कहना है कि सरकार के लिए पान की खेती करने वाले किसानों की कोई वैल्यू नहीं है हम अपनी ही लागत से पान के खेतों में काम करते हैं और पान की उपज तयार करते हैं लेकिन जब कभी यह पान अधिक गर्मी या अधिक ठंड के वजह से खराब हो जाती है तो इसका नुकसान भी हमें स्वयं ही भरना होता है सरकार की तरफ से जो मजा में दिया जाता है वह लगभग ना के बराबर होता है!

जब हमने उनसे पूछा कि वर्तमान में लोकसभा चुनाव नजदीक है आने वाले समय में लोकसभा चुनाव को लेकर आप लोग मतदान करेंगे तो क्या आपका इस चुनाव में यह मुद्दा होगा तो इस बात को लेकर उनका कहना था कि देश में चुनाव आते जाते रहते हैं सत्ता परिवर्तन भी होती रहती है लेकिन पान की खेती करने वाले किसानों का दर्द कोई नहीं समझता है!

आपको बता दें कि कमलनाथ ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वन विकास निगम/बोर्ड को शामिल किया था लेकिन अब वह भी पान की खेती करने वाले किसानों के लिए एक भद्दा मजाक बनकर रह गया है!

वहीं इस क्षेत्र के कांग्रेस के एक बड़े नेता चौरसिया राजेश महत्व का कहना है कि उन्होंने पान की खेती करने वाले किसानों के लिए एक लंबा संघर्ष किया है! उनका कहना है कि कमलनाथ ने चुनाव के वचन पत्र में इस मुद्दे को शामिल किया था लेकिन जल्द ही आचार संहिता लग गई जिस वजह से यह अभी धरातल पर नहीं आया है!


Conclusion: नेता भले ही राजनीतिक लाभ लेने के लिए कुछ भी कहे लेकिन हकीकत यह है कि पान का किसान शिवराज सिंह चौहान के वादों और कमलनाथ के दामों में फंसकर रह गया है मोदी के नाम पर पान की खेती करने वाले किसानों से सिर्फ भद्दा मजाक ही किया जा रहा है ऐसे में पान विकास निगम जापान विकास बोर्ड का गठन होना किसी सपने से कम नहीं है!
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