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न बीजेपी का 'संबल' न कांग्रेस का 'सवेरा', इस गांव में आज भी कायम है अंधेरा

बीजेपी और कांग्रेस की कोई भी योजना छतरपुर के इस गांव में बिजली नहीं ला सकी है. पिछले 10 सालों से यह गांव बिजली के लिए मोहताज है.जहां बच्चे ढिबरी के सहारे अपना भविष्य संवार रहे हैं.

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Published : Oct 23, 2019, 8:07 PM IST

इस गांव में नहीं है बिजली

छतरपुर। बीजेपी का संबल भी इनको संबल नहीं दे पाया और न ही कांग्रेस का नया सवेरा इनके जीवन में उजाला कर सका, सूनी गलियां, मायूस चेहरे, खपरैल वाले कच्चे मकान और टिमटिमाती ढिबरी की रोशनी से भविष्य संवारते यहां के बच्चे. आज भी छतरपुरे के बिदासन पुरवा गांव के ज्यादातर घरों में अंधेरा है. इस दौरान कई बार सत्ता बदली, पर इनकी किस्मत अब भी सियासी अंधेरे में गुम है.

बीजेपी की अटल ज्योति भी यहां के ग्रामीणों के जीवन में ज्योति न फैला सकी और न ही सत्ता परिवर्तन के बाद कमलनाथ सरकार का नया सवेरा इनके जीवन में रोशनी का सवेरा ला सका. सत्ता परिवर्तन के बाद सरकारें योजनाओं का नाम बदल देती हैं, इसके बावजूद भी इन योजनाओं का अर्थ नहीं बदलता. हालांकि, इस अंधेरे के पीछे का कुछ ठोस वजह किसी को पता नहीं है.

इस गांव में नहीं है बिजली

इस गांव में रात का अंधेरा दूर करने के लिए ढिबरी व लालटेन का ही सहारा है. महिलाएं बताती हैं कि सालों से उनके गांव में लाइट नहीं है. कई बार आवेदन देने के बावजूद नतीजे वही ढाक के तीन पात जैसे ही हैं.

ढिबरी की रोशनी में पढ़ाई करते बच्चों पर जब ईटीवी भारत की नजर पड़ी, तब इस अंधेरे की अंधेरगर्दी के बारे में कलेक्टर साहब को बताया, जिस पर उन्होंने जल्द गांव में बिजली पहुंचाने का भरोसा दिलाया है.
मोदी सरकार की डिजिटल इंडिया हो या फिर मेक इन इंडिया, सारी की सारी योजनाएं इस गांव में धूल फांकती नजर आती हैं. यहां के लोगों के लिए मोबाइल-टीवी और इंटरनेट तो बस एक ख्वाब है क्योंकि जब बिजली ही नहीं है तो दुनिया से इनका नाता ही कैसा?

छतरपुर। बीजेपी का संबल भी इनको संबल नहीं दे पाया और न ही कांग्रेस का नया सवेरा इनके जीवन में उजाला कर सका, सूनी गलियां, मायूस चेहरे, खपरैल वाले कच्चे मकान और टिमटिमाती ढिबरी की रोशनी से भविष्य संवारते यहां के बच्चे. आज भी छतरपुरे के बिदासन पुरवा गांव के ज्यादातर घरों में अंधेरा है. इस दौरान कई बार सत्ता बदली, पर इनकी किस्मत अब भी सियासी अंधेरे में गुम है.

बीजेपी की अटल ज्योति भी यहां के ग्रामीणों के जीवन में ज्योति न फैला सकी और न ही सत्ता परिवर्तन के बाद कमलनाथ सरकार का नया सवेरा इनके जीवन में रोशनी का सवेरा ला सका. सत्ता परिवर्तन के बाद सरकारें योजनाओं का नाम बदल देती हैं, इसके बावजूद भी इन योजनाओं का अर्थ नहीं बदलता. हालांकि, इस अंधेरे के पीछे का कुछ ठोस वजह किसी को पता नहीं है.

इस गांव में नहीं है बिजली

इस गांव में रात का अंधेरा दूर करने के लिए ढिबरी व लालटेन का ही सहारा है. महिलाएं बताती हैं कि सालों से उनके गांव में लाइट नहीं है. कई बार आवेदन देने के बावजूद नतीजे वही ढाक के तीन पात जैसे ही हैं.

ढिबरी की रोशनी में पढ़ाई करते बच्चों पर जब ईटीवी भारत की नजर पड़ी, तब इस अंधेरे की अंधेरगर्दी के बारे में कलेक्टर साहब को बताया, जिस पर उन्होंने जल्द गांव में बिजली पहुंचाने का भरोसा दिलाया है.
मोदी सरकार की डिजिटल इंडिया हो या फिर मेक इन इंडिया, सारी की सारी योजनाएं इस गांव में धूल फांकती नजर आती हैं. यहां के लोगों के लिए मोबाइल-टीवी और इंटरनेट तो बस एक ख्वाब है क्योंकि जब बिजली ही नहीं है तो दुनिया से इनका नाता ही कैसा?

Intro:मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में एक ऐसा गांव है जहां पिछले 10 सालों से लाइट नहीं है गांव में रहने वाले लोग लगातार विद्युत विभाग में घरों में लाइट को लेकर आवेदन दे रहे हैं लेकिन विद्युत विभाग अभी तक उनके घरों में रोशनी नहीं पहुंचा पाया है कुछ दिनों पहले ही गांव में रहने वाले सभी ग्रामीण एकत्र होकर विद्युत विभाग में आवेदन देने के लिए गए थे और उन्होंने अपने घरों में मीटर लगाने एवं बिजली देने की बात कही थी!


Body: छतरपुर जिले के छोटे से गांव बिदासन पुरवा में पिछले 10 सालों से लाइट ना होने की वजह से यहां रहने वाले लोगों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है शाम ढलते ही पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है लाइक ना होने की वजह से यहां रहने वाले बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है गांव वालों की माने तो शाम ढलते ही बच्चे घरों से निकलना बंद कर देते हैं मजबूर होकर बच्चों को घरों के अंदर ही रहना पड़ता है!

शाम ढलते ही अगर बच्चों को पढ़ाई करनी है तो उन्हें या तो बाहर रोशनी में पढ़ना पड़ता है या फिर लालटेन की रोशनी में अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ती है गांव में रहने वाली महिला चांदनी बताती हैं कि पिछले कई सालों से उनके गांव में लाइट नहीं है लगातार विद्युत विभाग के अधिकारियों से घरों में लाइट देने के लिए आवेदन दिए हैं लेकिन कोई नहीं सुनता है!

बाइट_चांदनी ग्रामीण महिला

गांव में रहने वाली 8 साल की राजकुमारी बताती है कि वह कक्षा तीसरी में पढ़ती है शाम ढलते ही वह घर से निकलना बंद कर देती है घर में मच्छर काटते हैं कीड़े मकोड़ों का डर भी बना रहता है पढ़ाई करने में भी दिक्कत होती है!

बाइट_राजकुमारी ग्रामीण बच्ची

गांव में ही रहने वाला मनोज कुशवाहा कक्षा बारहवीं में पढ़ता है उसका कहना है कि मच्छरों के अलावा भी बहुत सारी समस्याएं गांव में है लाइट ना होने की वजह से परेशानी पढ़ाई को लेकर तो होती है साथ ही घरों से निकलना भी बंद हो जाता है!

बाइट_मनोज कुशवाहा

गांव में ही रहने वाला एक और छात्र दीपू कुशवाहा का कहना है कि गांव में लाइट नहीं है परीक्षाओं के समय बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है गांव के लोग कई बार विद्युत विभाग गए हैं लेकिन पता नहीं क्यों विद्युत विभाग के अधिकारी कोई भी जवाब ठीक से नहीं देते हैं!

बाइट_दीपू कुशवाहा

वहीं गांव के सरपंच अखिलेश पटेल का कहना है कि गांव के लोगों के साथ वह कई बार विद्युत विभाग गए हैं लेकिन विद्युत विभाग के अधिकारी सीबी प्रकार का ठीक-ठीक जवाब नहीं देते हैं हालांकि गांव के अंदर कृषि कार्यों के लिए लाइट मौजूद है और जब कभी यह किसान अपने घरों में लाइट को ले जाते हैं तो उन पर चालानी कार्यवाही भी की जाती है अखिलेश पटेल की मानें तो गांव के लोगों के अलावा वह खुद भी कई बार विद्युत विभाग के लोगों से मिले हैं लेकिन उन्होंने कभी भी कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दिया है!

क्योंकि मामला किसानों से जुड़ा हुआ है और जिस गांव में लाइट 10 सालों से नहीं है वहां ज्यादातर सभी खेती किसानी करने वाले लोग रहते हैं ऐसे में जब हमने बात महाराजपुर तहसीलदार से कि उनका कहना है कि क्योंकि मामला किसानों से जुड़ा हुआ है वह जल्द ही विद्युत विभाग के अधिकारियों से बात करेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर किन वजह से इस गांव में लाइट नहीं है और कोशिश की जाएगी कि जल्द से जल्द गांव में लाइट पहुंच जाए!

बाइट_संजय जैन_तहसीलदार


Conclusion:आपको बता दें कि भारत सरकार ने कुछ दिनों पहले ही इस बात की घोषणा की थी कि पूरे देश में शायद कोई भी ऐसा गांव नहीं है जहां बिजली ना पहुंची हो लेकिन बिदासन पुरवा में रहने वाले यह किसान पिछले 10 सालों से रोशनी से वंचित हैं दीपावली में पूरा देश रोशनी का त्योहार मनाएगा लेकिन शायद इन किसानों के घरों में तब भी अंधेरा ही रहेगा!
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