छतरपुर। बीजेपी का संबल भी इनको संबल नहीं दे पाया और न ही कांग्रेस का नया सवेरा इनके जीवन में उजाला कर सका, सूनी गलियां, मायूस चेहरे, खपरैल वाले कच्चे मकान और टिमटिमाती ढिबरी की रोशनी से भविष्य संवारते यहां के बच्चे. आज भी छतरपुरे के बिदासन पुरवा गांव के ज्यादातर घरों में अंधेरा है. इस दौरान कई बार सत्ता बदली, पर इनकी किस्मत अब भी सियासी अंधेरे में गुम है.
बीजेपी की अटल ज्योति भी यहां के ग्रामीणों के जीवन में ज्योति न फैला सकी और न ही सत्ता परिवर्तन के बाद कमलनाथ सरकार का नया सवेरा इनके जीवन में रोशनी का सवेरा ला सका. सत्ता परिवर्तन के बाद सरकारें योजनाओं का नाम बदल देती हैं, इसके बावजूद भी इन योजनाओं का अर्थ नहीं बदलता. हालांकि, इस अंधेरे के पीछे का कुछ ठोस वजह किसी को पता नहीं है.
इस गांव में रात का अंधेरा दूर करने के लिए ढिबरी व लालटेन का ही सहारा है. महिलाएं बताती हैं कि सालों से उनके गांव में लाइट नहीं है. कई बार आवेदन देने के बावजूद नतीजे वही ढाक के तीन पात जैसे ही हैं.
ढिबरी की रोशनी में पढ़ाई करते बच्चों पर जब ईटीवी भारत की नजर पड़ी, तब इस अंधेरे की अंधेरगर्दी के बारे में कलेक्टर साहब को बताया, जिस पर उन्होंने जल्द गांव में बिजली पहुंचाने का भरोसा दिलाया है.
मोदी सरकार की डिजिटल इंडिया हो या फिर मेक इन इंडिया, सारी की सारी योजनाएं इस गांव में धूल फांकती नजर आती हैं. यहां के लोगों के लिए मोबाइल-टीवी और इंटरनेट तो बस एक ख्वाब है क्योंकि जब बिजली ही नहीं है तो दुनिया से इनका नाता ही कैसा?