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कुपोषण ने छीन लिया बचपन, अपनी मर्जी से हिल भी नहीं पाता 12 साल का नीलकंठ

छतरपुर जिले के कर्री में रहने वाला 12 साल का नीलकंठ कुपोषण के ग्रसित है. बचपन में ही कुपोषण ने उसे अपनी जद में लिया था. धीरे-धीरे कर ये बीमारी भंयकर रूप ले चुकी है.

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कुपोषण ने छीन लिया बचपन
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Published : Nov 30, 2019, 8:00 PM IST

छतरपुर। मध्यप्रदेश का बुंदेलखंड अंचल कुपोषण का दंश झेल रहा है. छतरपुर के कर्री गांव से कुपोषण की भयावह तस्वीर सामने आयी है. कर्री में रहने वाला 12 साल का नीलकंठ कुपोषण के ग्रसित है. हालत इस कदर हैं कि वह अपनी मर्जी से हिल भी नहीं सकता. याददाश्त खोने के बाद नीलकंठ अपने शरीर से संतुलन खो बैठा है. नीलकंठ के पिता बताते हैं कि बचपन से ही नीलकंठ को कुपोषण ने घेर लिया और आगे जाकर उसने भयंकर बीमारी का रूप ले लिया.

कुपोषण ने छीन लिया बचपन
परिवार की माली हालत ठीक नहीं होने से नीलकंठ का बचपन में ठीक ढंग से इलाज नहीं हो सका, लिहाजा आज वह इस कगार पर पहुंच गया कि उसकी पूरी जिंदगी तबाह हो गई. हालांकि नीलकंठ को ठीक कराने परिवार कई बड़े डॉक्टरों के पास गया, लेकिन उसकी हालत सुधरने के बयान बिगड़ती चली गई. लिहाजा अब इस परिवार को सरकारी मदद की दरकार है.

परिवार की माली हालत बेहद खराब
नीलकंठ के पिता पेशे से शिक्षक हैं और गांव के ही प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं. महीने भर में मिलने बाले 15 सौ रुपये नीलकंठ के इलाज पर खर्च हो जाते हैं. आर्थिक तंगी के चलते कभी-कभी तो खाने के लाले भी पड़ जाते हैं. जब ईटीवी भारत ने नीलकंठ के परिवार का दर्द जिम्मेदारों को सुनाया तो एडीएम प्रेम सिंह चौहान ने जांच के बाद मदद का भरोसा दिया है.

खेलने की उम्र में बिस्तर पर है नीलकंठ
जिस उम्र में नीलकंठ को पढ़ना लिखना और खेलना कूंदना चाहिए उस उम्र में वह कुपोषण के कहर के चलते परिवार पर बोझ बना हुआ है. नीलकंठ के अलावा बुंदेलखंड अंचल में कई और भी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि मध्यप्रदेश से कुपोषण का कलंक मिटाने के लिए बेहतर प्रयास करे.

छतरपुर। मध्यप्रदेश का बुंदेलखंड अंचल कुपोषण का दंश झेल रहा है. छतरपुर के कर्री गांव से कुपोषण की भयावह तस्वीर सामने आयी है. कर्री में रहने वाला 12 साल का नीलकंठ कुपोषण के ग्रसित है. हालत इस कदर हैं कि वह अपनी मर्जी से हिल भी नहीं सकता. याददाश्त खोने के बाद नीलकंठ अपने शरीर से संतुलन खो बैठा है. नीलकंठ के पिता बताते हैं कि बचपन से ही नीलकंठ को कुपोषण ने घेर लिया और आगे जाकर उसने भयंकर बीमारी का रूप ले लिया.

कुपोषण ने छीन लिया बचपन
परिवार की माली हालत ठीक नहीं होने से नीलकंठ का बचपन में ठीक ढंग से इलाज नहीं हो सका, लिहाजा आज वह इस कगार पर पहुंच गया कि उसकी पूरी जिंदगी तबाह हो गई. हालांकि नीलकंठ को ठीक कराने परिवार कई बड़े डॉक्टरों के पास गया, लेकिन उसकी हालत सुधरने के बयान बिगड़ती चली गई. लिहाजा अब इस परिवार को सरकारी मदद की दरकार है.

परिवार की माली हालत बेहद खराब
नीलकंठ के पिता पेशे से शिक्षक हैं और गांव के ही प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं. महीने भर में मिलने बाले 15 सौ रुपये नीलकंठ के इलाज पर खर्च हो जाते हैं. आर्थिक तंगी के चलते कभी-कभी तो खाने के लाले भी पड़ जाते हैं. जब ईटीवी भारत ने नीलकंठ के परिवार का दर्द जिम्मेदारों को सुनाया तो एडीएम प्रेम सिंह चौहान ने जांच के बाद मदद का भरोसा दिया है.

खेलने की उम्र में बिस्तर पर है नीलकंठ
जिस उम्र में नीलकंठ को पढ़ना लिखना और खेलना कूंदना चाहिए उस उम्र में वह कुपोषण के कहर के चलते परिवार पर बोझ बना हुआ है. नीलकंठ के अलावा बुंदेलखंड अंचल में कई और भी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि मध्यप्रदेश से कुपोषण का कलंक मिटाने के लिए बेहतर प्रयास करे.

Intro:कुपोषण भारत में एक ऐसा कलंक है जो ना सिर्फ बच्चों का बचपन तबाह कर देता है बल्कि उनकी जिंदगी भी बीमारियों से भर देता है एक ऐसा ही मामला छतरपुर जिले के छोटे से गांव कर्री का है जहां रहने वाला 14 साल का नीलकंठ कुपोषण के चलते अपने परिवार एवं खुद के लिए परेशानी बना हुआ है परिवार की माली हालत भी ठीक नहीं है इसी वजह से परिवार के लोग उसकी ठीक से दवा भी नहीं करा पा रहे हैं!


Body:कुपोषण की यह भयानक तस्वीर छतरपुर जिले के एक छोटे से गांव कर्री से है जहां 12 साल का नीलकंठ सिर्फ सांसे ही ले रहा है उसका दिमाग एवं शरीर पूरी तरह से निष्क्रिय है नीलकंठ 12 साल का है वह न तो अपनी मर्जी से हिल पाता है और ना ही कोई काम कर सकता है नीलकंठ पूरी तरह से अपने शरीर से संतुलन खो बैठा है नीलकंठ के पिता बताते हैं कि बचपन में वह कुपोषण का शिकार था क्योंकि गरीबी बहुत ज्यादा थी इसलिए अपने बच्चे को ठीक से खिला पिला नहीं पाए और आगे जाकर यह कुपोषण एक भयंकर बीमारी में बदल गया जिससे नीलकंठ की पूरी जिंदगी खराब हो गई नीलकंठ महज 12 साल का है जिस उम्र में बच्चे पढ़ते लिखते हैं खेलते कूदते हैं और उनके मां बाप अपने बच्चे के लिए सुनहरे भविष्य के सपने देखते हैं उस समय में नीलकंठ अपने माता-पिता के लिए एक बोझ बना हुआ है और अपनी मर्जी से हिल भी नहीं पाता है!

रामकुमार तिवारी बताते हैं कि वह पेशे से एक प्राइवेट शिक्षक हैं स्कूल में पढ़ाते हैं 15 सो रुपए मिलता है क्योंकि स्कूल गांव का ही है इसलिए पैसे अधिक नहीं मिल पाते हैं घर में तीन बेटियां भी हैं जो कि नीलकंठ से छोटी हैं ज्यादातर पैसा नीलकंठ की दवाइयों में ही खर्च होता है! हालात ठीक नहीं है जैसे तैसे करके नीलकंठ का इलाज जारी रखा है कभी-कभी पैसे की तंगी के चलते खाने के भी लाले पड़ जाते हैं!

बाइट_रामकुमार तिवारी पिता

सरकारें भले ही कुपोषण को मिटाने के लिए तमाम वादे और दावे कर रही हो लेकिन हकीकत इसके ठीक विपरीत है आज भी कुपोषण के शिकार कुछ बच्चे न सिर्फ अपना बचपन खो चुके हैं बल्कि उनकी पूरी जिंदगी खराब हो चुकी है कुपोषण एक ऐसी भयानक बीमारी है जिसका सही समय पर इलाज नहीं किया गया तो बच्चे की नासिर जिंदगी खराब होती है बल्कि वह परिवार पर एक बोझ बन कर भी रह जाता है!

मामले में जब हमने छतरपुर एडीएम प्रेम सिंह चौहान से बात की तो उनका कहना था कि अगर बड़े बच्चों में इस प्रकार का कोई मामला निकल कर आता है तो निश्चित तौर पर यह चिंता का विषय है जल्दी अधिकारियों से बात कर एक टीम गठित कर दी जाएगी जो इस प्रकार के मामलों को देखेगी!

बाइट_एडीएम प्रेम सिंह चौहान






Conclusion:बुंदेलखंडी ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कई बच्चे कुपोषण का शिकार हैं नवजात शिशुओं के अलावा किशोरावस्था के बालक भी इस भयंकर बीमारी से ग्रसित है सरकारों को चाहिए कि जल्द से जल्द इस ओर ध्यान देते हुए बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए काम किया जाए ताकि बच्चे आने वाले समय में बेहतर स्वास्थ्य के साथ अपनी जिंदगी जी सकें!
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