भोपाल। चंबल अंचल में लाइसेंसी हथियार रखने को शान का प्रतीक माना जाता है. बागी और बीहड़ों के इलाके के नाम से अपनी पहचान रखने वाले ग्वालियर-चंबल के लोग आज भी हथियारों के सबसे ज्यादा शौकीन माने जाते हैं. बंदूक को वो अपने शान और रुतबे से भी जोड़कर देखते हैं. लेकिन हथियारों का शौक रखने वाले लोगों पर आचार संहिता की मार पड़ी है.
चंबल क्षेत्र लंबे समय तक बागियों और डाकुओं से प्रभावित रहा है. शुरुआत में बंदूक रखना यहां के लोगों को खुद को डाकुओं से बचाने के लिए मजबूरी थी. एक-एक घरों में कम से कम 3-4 बंदूके हुआ करती थी. यह मजबूरी धीरे धीरे लोंगों के शौक में बदल गयी. दस्यु प्रभावित क्षेत्र होने के कारण, यहां के लोगों को लाइसेंस भी आसानी से मिलने लगा. आलम यह है इस क्षेत्र का व्यक्ति रिवॉल्वर या राइफल को अपने प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखने लगा, और जिनके घर मे या जिनके पास किसी प्रकार की गन नही होती तो लोग उसे कमजोर और छोटे व्यक्ति के तौर पर देखते हैं,
कंधों पर बंदूके टांगे ये लोग इन्हें पुलिस में जमा कराने आए है. बंदूक को अपनी शानो-शौकत समझने वाले इन लोगों को चुनावी समर तक बिना हथियार के ही रहना पड़ेगा. गौर करने वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव-2019 की आचार संहिता लगने के बाद से अब तक मध्य प्रदेश पुलिस ने करीब 2.39 लाख लाइसेंसी हथियार जमा करवाए है. जिन्में 20 प्रतिशत अकेले भिंड और मुरैना जिले से जमा हुए है.
ताजा आंकड़ों पर गौर फरमाए तो अबतक इन दोनों जिलों से 47, 500 लाइसेंसी हथियार जमा कराए जा चुके है. जबकि पूरे प्रदेश में 2.47 लाख लाइसेंसी हथियार है, जिनमें सबसे ज्यादा 80 हजार केवल चंबल क्षेत्र में है. मुरैना देश का ऐसा पहला जिला है जहां सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार है. मध्यप्रदेश वर्तमान में बिहार से भी ज्यादा हथियार रखने वाला राज्य है. यही वजह है कि पुलिस को भी इन हथियारों को जमा कराना एक बड़ी चुनौती मानी जाती है. क्योंकि ग्वालियर चंबल में बात से ज्यादा बंदूक की गौली चलती है.