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चंबल में बिहार से भी ज्यादा हथियारों के लाइसेंस, बंदूकों की देखरेख बनी पुलिस के लिए मुसीबत - बंदूक

ग्वालियर-चंबल अंचल में पुलिस लोकसभा चुनाव के मद्देनजर लाइसेंसी हथियारों को जमा करा रही है. लोकसभा चुनाव-2019 की आचार संहिता लगने के बाद से अब तक मध्य प्रदेश पुलिस ने करीब 2.39 लाख लाइसेंसी हथियार जमा करवाए है. जिन्में 20 प्रतिशत अकेले भिंड और मुरैना जिले से जमा हुए है.

पुलिस को हथियार जमा कराते लोग
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Published : Apr 4, 2019, 8:37 PM IST

भोपाल। चंबल अंचल में लाइसेंसी हथियार रखने को शान का प्रतीक माना जाता है. बागी और बीहड़ों के इलाके के नाम से अपनी पहचान रखने वाले ग्वालियर-चंबल के लोग आज भी हथियारों के सबसे ज्यादा शौकीन माने जाते हैं. बंदूक को वो अपने शान और रुतबे से भी जोड़कर देखते हैं. लेकिन हथियारों का शौक रखने वाले लोगों पर आचार संहिता की मार पड़ी है.

चंबल क्षेत्र लंबे समय तक बागियों और डाकुओं से प्रभावित रहा है. शुरुआत में बंदूक रखना यहां के लोगों को खुद को डाकुओं से बचाने के लिए मजबूरी थी. एक-एक घरों में कम से कम 3-4 बंदूके हुआ करती थी. यह मजबूरी धीरे धीरे लोंगों के शौक में बदल गयी. दस्यु प्रभावित क्षेत्र होने के कारण, यहां के लोगों को लाइसेंस भी आसानी से मिलने लगा. आलम यह है इस क्षेत्र का व्यक्ति रिवॉल्वर या राइफल को अपने प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखने लगा, और जिनके घर मे या जिनके पास किसी प्रकार की गन नही होती तो लोग उसे कमजोर और छोटे व्यक्ति के तौर पर देखते हैं,

लाइसेंसी बंदूक जमा कराते लोग।

कंधों पर बंदूके टांगे ये लोग इन्हें पुलिस में जमा कराने आए है. बंदूक को अपनी शानो-शौकत समझने वाले इन लोगों को चुनावी समर तक बिना हथियार के ही रहना पड़ेगा. गौर करने वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव-2019 की आचार संहिता लगने के बाद से अब तक मध्य प्रदेश पुलिस ने करीब 2.39 लाख लाइसेंसी हथियार जमा करवाए है. जिन्में 20 प्रतिशत अकेले भिंड और मुरैना जिले से जमा हुए है.

ताजा आंकड़ों पर गौर फरमाए तो अबतक इन दोनों जिलों से 47, 500 लाइसेंसी हथियार जमा कराए जा चुके है. जबकि पूरे प्रदेश में 2.47 लाख लाइसेंसी हथियार है, जिनमें सबसे ज्यादा 80 हजार केवल चंबल क्षेत्र में है. मुरैना देश का ऐसा पहला जिला है जहां सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार है. मध्यप्रदेश वर्तमान में बिहार से भी ज्यादा हथियार रखने वाला राज्य है. यही वजह है कि पुलिस को भी इन हथियारों को जमा कराना एक बड़ी चुनौती मानी जाती है. क्योंकि ग्वालियर चंबल में बात से ज्यादा बंदूक की गौली चलती है.

भोपाल। चंबल अंचल में लाइसेंसी हथियार रखने को शान का प्रतीक माना जाता है. बागी और बीहड़ों के इलाके के नाम से अपनी पहचान रखने वाले ग्वालियर-चंबल के लोग आज भी हथियारों के सबसे ज्यादा शौकीन माने जाते हैं. बंदूक को वो अपने शान और रुतबे से भी जोड़कर देखते हैं. लेकिन हथियारों का शौक रखने वाले लोगों पर आचार संहिता की मार पड़ी है.

चंबल क्षेत्र लंबे समय तक बागियों और डाकुओं से प्रभावित रहा है. शुरुआत में बंदूक रखना यहां के लोगों को खुद को डाकुओं से बचाने के लिए मजबूरी थी. एक-एक घरों में कम से कम 3-4 बंदूके हुआ करती थी. यह मजबूरी धीरे धीरे लोंगों के शौक में बदल गयी. दस्यु प्रभावित क्षेत्र होने के कारण, यहां के लोगों को लाइसेंस भी आसानी से मिलने लगा. आलम यह है इस क्षेत्र का व्यक्ति रिवॉल्वर या राइफल को अपने प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखने लगा, और जिनके घर मे या जिनके पास किसी प्रकार की गन नही होती तो लोग उसे कमजोर और छोटे व्यक्ति के तौर पर देखते हैं,

लाइसेंसी बंदूक जमा कराते लोग।

कंधों पर बंदूके टांगे ये लोग इन्हें पुलिस में जमा कराने आए है. बंदूक को अपनी शानो-शौकत समझने वाले इन लोगों को चुनावी समर तक बिना हथियार के ही रहना पड़ेगा. गौर करने वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव-2019 की आचार संहिता लगने के बाद से अब तक मध्य प्रदेश पुलिस ने करीब 2.39 लाख लाइसेंसी हथियार जमा करवाए है. जिन्में 20 प्रतिशत अकेले भिंड और मुरैना जिले से जमा हुए है.

ताजा आंकड़ों पर गौर फरमाए तो अबतक इन दोनों जिलों से 47, 500 लाइसेंसी हथियार जमा कराए जा चुके है. जबकि पूरे प्रदेश में 2.47 लाख लाइसेंसी हथियार है, जिनमें सबसे ज्यादा 80 हजार केवल चंबल क्षेत्र में है. मुरैना देश का ऐसा पहला जिला है जहां सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार है. मध्यप्रदेश वर्तमान में बिहार से भी ज्यादा हथियार रखने वाला राज्य है. यही वजह है कि पुलिस को भी इन हथियारों को जमा कराना एक बड़ी चुनौती मानी जाती है. क्योंकि ग्वालियर चंबल में बात से ज्यादा बंदूक की गौली चलती है.

Intro:भोपाल/ग्वालियर:
हथियार का शौक रखने वाले ग्वालियर चंबल के लोगो पर आचार सहिंता की मार पड़ी है। बिहार से भी ज्यादा हथियारो के लाइसेंस ग्वालियर चंबल इलाके में है। ऐसे मे लोकसभा चुनाव की आचार सहिंता लगने के बाद पुलिस प्रशासन ने लायसेंसी हथियार जमा करवा लिए है। यानी बंदूक को अपनी शानो-शौकत समझने वाले चंबल वाले लोग अब चुनाव तक बिना हथियार के रहेंगे।









Body:लोक सभा चुनाव-2019 के लिए अचार सहिता लगने के बाद से, अभी तक मध्य प्रदेश पुलिस ने करीब 2.39 लाख लाइसेंसी हथियार जमा करवा लिए है। इनमे से करीब 20% हथियार अकेल मुरैना और भिंड जिले में जमा किये गए है।
अपने बीहड़ और यहां के बागियो के लिए बदनाम, इस क्षेत्र में हर चुनाव के पहले पुलिस के लिए हथियार जमा करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। चुनाव आयोग भी इस पूरे क्षेत्र को अतिसंवेदनशील क्षेत्र मानता है।
पुलिस से प्राप्त आकड़ो के अनुसार, भिंड और मुरैना जिले में अब तक करीब 47, 500 लाइसेंसी हथियार जमा कराए जा चुके है। इन दो जिलो में लगभग 50 हजार लाइसेंसी पिस्टल और राइफल है, जिनमे से लगभग 95% हथियार जमा कराए जा चुकें है।
हालांकि, जिन हथियारो का उपयोग सेक्युरिटी- बैंक सिक्योरिटी या किसी सरकारी संस्थाओं में सिक्योरिटी- के लिए किया जाता है, उन्हें जमा नही कराया जाता ।
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बिहार के बराबर हथियार अकेले चम्बल क्षेत्र में-
सरकारी आकड़ो के मुताबिक पूरे मध्य प्रदेश करीब 2.47 लाख लाइसेंसी हथियार है, जिनमे से करीब 80 हजार केवल चम्बल क्षेत्र है।
केंद्रीय गृह विभाग के 2016 के आंकड़ो के मुताबिक मध्य प्रदेश देश चौथा राज्य है जहां सबसे ज्यादा लाइसेंस पब्लिक को दिया। गया है, जबकि बिहार जैसे बड़े राज्य में करीब 82 हजार लाइसेंसी हथियार हैं।
आंकड़ो के मुताबिक मुरैना देश पहला जिला है, जहां सबसे ज्यादा लाइसेंसी हथियार है। मुरैना में करीब 28 हजार लोगों के पास लाइसेंसी हथियार है। वही, भिंड में करीब 22 हजार लोगों के लाइसेंसी हथियार है।
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जमा हथियारों की सुरक्षा होती है चुनौती-
हर चुनाव के समय, चम्बल क्षेत्र में जमा हथियारों की सुरक्षा भी पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती होती है। चुनाव के पहले, पुलिस हर पुलिस थाना में एक या दो रूम खाली करते है, जहां पर जमा हथियारों को रखा जा सके। पुलिस अधिकारियों के अनुसार उन्हें एक चार की गॉर्ड 24 घंटे इन कमरों के बाहर हथियारों की सुरक्षा के लिए रखनी पड़ती।




Conclusion:मजबूरी बना शौक:
चम्बल क्षेत्र लंबे समय तक बागियों और दस्युओ से प्रभावित रहा है। शुरुआत में बंदूक रखना यहां के लोगों को खुदको दस्यु से बचने मजबूरी थी। एक एक घरों में कम से कम 3-4 बंदूके हुआ करती थी। यह मजबूरी धीरे धीरे लोंगों के शौक में बदल गयी। दस्यु प्रभावित क्षेत्र होने के कारण, यहाँ के लोगों को लाइसेंस भी आसानी से मिलने लगा। आज आलम यह है इस क्षेत्र का व्यक्ति रिवॉल्वर या राइफल को अपने प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखने लगा, और जिनके घर मे या जिनके पास किसी प्रकार की गन नही होती तो लोग उसे कमजोर और छोटे व्यक्ति के तौरपर देखते हैं।
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